Translate

सोमवार, 19 मई 2014

लालकिले से (भाग-99) - अच्छे दिन तभी आएंगे जब हम दीवार नहीं बुनियाद हिलाएंगे


-----------------------------------------------------------------------------------------
हर सडक़ पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलाएंगे
--------------------------------------------------------------------------------------------
भारतीय जनता पार्टी ने 16वीं लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में नारा दिया है कि - अच्छे दिन आने वाले हैं। यह नारा कश्मीर से कन्याकुमारी और भुज से आसाम तक के लोगों की जुबां पर चढ़ भी गया है। हम हिन्दुस्तानी भी 66 साल से उम्मीद और सिर्फ एक अदद उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अच्छे दिन आएं और देश विश्वगुरू के ंिसंहासन पर फिर विराजित हो। आज से नहीं 66 साल से आजाद हिन्दुस्तान में अच्छे दिनों की चाह में हम सरकारें चुन रहे हैं। अभी तक 15 सरकारें और 15 प्रधानमंत्री चुन चुके हैं। ये 15 सरकारें भी हमने अच्छे दिन लाने के लिए ही चुनीं थी। विकास की राह पर हम अग्रसर थे पर स्वार्थों के मकडज़ाल में हमारी गति मंथर हो गई। लेकिन पिछले दस सालों मेंं देश कुशासन, अंतहीन भ्रष्टाचार, महंगाई, नेतृत्वहीनता, संवादहीनता, पालिसी पेरालिसीस, बेरोजगारी, कर्ज लेकर घी पीती अर्थव्यवस्था के कारण जिस तरह हर मोरचे पर विफल हुआ है उससे देश के आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है। खासकर सुनहरे भविष्य के सपने देखने वाले 50 करोड़ युवाओं को। आज हम 16 वी लोकसभा के परिणामों के माध्यम से देश के 16 वे प्रधानमंत्री का चुनाव करेंगे। यानी फिर अच्छे दिनों की उम्मीद। इस बार तो नारा भी चल रहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
हम अगर किसी एक व्यक्ति से उम्मीद करें कि वे अकेले अच्छे दिन ला देंगे तो यह असंभव है। वे इसकी पहल कर सकते हैं, माहौल बना सकते हैं, संसाधन उपलब्ध करवा सकते हैं पर जब तक हम हम 125 करोड़ हिन्दुस्तानी सुधरने की कसम नहीं खाते तब तक मेरे हिसाब से अच्छे दिन नहीं आ सकते। सुधरने का मतलब है मानसिक रूप से बदलना। जब हम मानसिक तौर पर बदल जाएंगे तो फिर हम जो भी काम करेंगे वह सौ फीसदी सही होगा। यानी दीवार नहीं बुनियाद हिलानी पड़ेगी
१. मसलन भ्रष्ट्राचार पर रोक तभी संभव जब हर हिन्दुस्तानी सोच ले कि वह न तो रिश्वत लेगा और न ही देगा।
२. सरकारी कार्यालयों में प्राइवेट वाला वर्क कल्चर, पारदर्शी और तेजी से काम करने वाला सिस्टम बनाना होगा।
३. सरकारी पैसे का विकास मेंअधिकतम और सही उपयोग। यानी सही व्यक्ति के लिए सही योजना।
४. कृषि प्रधान देश में खेती को रोजगार से जोडऩे का प्रबंध करना होगा।
५. बिजली, पानी, सडक़, रोजगार और स्थानीय रोजगार की व्यवस्था करना।
और इन सबके लिए आपको दीवार नहीं व्यवस्था की बुनियाद हिलानी पड़ेगी। इसलिए सिर्फ वोट देने से काम नहीं चलेगा। हमें देश के लिए और भी कई फर्ज निभाने होंगे बिना यह आशा किए कि देश ने हमें क्या दिया है बुनियाद हिलाने की प्रेरणा दुष्यंत कुमार कुछ यूं देते हैं।

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सडक़ पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें