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आजादी के बाद पहली बार हिन्दुओं ने राजनेताओं ने संदेश दिया है कि
सरकार मुस्लिम वोटों के बगैर भी बन सकती है, और उसने बनवा दी
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2014 के आम चुनाव का जनादेश कांग्रेस (यूपीए) की मुस्लिम तुष्टिकरण और सो काल्ड सेकुलर राजनीति के खिलाफ भी है। यह जनादेश है मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति और बहुसंख्यक हिन्दुओं की घोर उपेक्षा के खिलाफ। यह जनादेश हैं बात-बात पर हिन्दुओं को सांप्रदायिक कहने वाली सो काल्ड सेकुलर ताकतों के खिलाफ। यह जनादेश है गुजरात में दो बार के चुनाव में नकार दिए गए दंगों के मामले को देश पर थोपने के खिलाफ।
यूपीए के सो काल्ड सेकुलर लोगों को लगता था कि सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोटों से ही उनका काम चल जाएगा। हिन्दू तो सदियों से जात-पात में बंटा हुआ है इसलिए उसका वोट भी हमेशा की तरह बंटेगा ही। इसलिए हिन्दू और उसके धर्म को कितनी भी गालियां दे दो, वह तो कोई प्रतिक्रिया देने से रहा। लिहाजा कांग्रेस सहित सभी सो काल्ड सेकुलर दलों ने अपना सारा फोकस मुस्लिम वोट कबाडऩे में लगा दिया। इसलिए सभी ने नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेन्डे के खिलाफ सेकुलर एजेन्डा खड़ा कर दिया। उसकी आड़ में 2004 के गुजरात दंगों के नाम पर मोदी, हिन्दुत्व और हिन्दुओं को गाली दी गई। अयोध्या के आंदोलन को लेकर एक स्टिंग लाकर मुस्लिमों का मसीहा बनने की कोशिश की गई।
आजमखान, बेनीप्रसाद वर्मा, सलमान खुर्शीद, लालू यादव, ममता बनर्जी, इमरान मसूद ने सोची समझी नीति के तहत मोदी और हिन्दुत्व को निशाना बनाया। हिन्दुओं को साम्प्रदायिक ठहराया जाने लगा। यानी गुजरात के तीन विधानसभा चुनाव में खारिज हो चुका एजेंडा कांग्रेस ने फिर से देश पर थोपने की कोशिश की। कोई मोदी को कसाई तो, कोई दंगा बाबू, कोई नपुसंक और कोठ्र बोटी-बोटी करने की बात करता। ये लोग सोच रहे थे कि मोदी को जितना निशाना बनाएंगे उनता ही मुस्लिम वोट उनकी तरफ आएगा। लिहाजा कांग्रेस आलाकमान की ओर से भी पूरी छूट मिली हुई थी।
चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले कांग्रसे अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद शाही ईमाम बुखारी ने कांग्रेस के पक्ष में फतवा जारी किया। मुस्लिम तुष्टिकरण की हद तब हो गई जब कांग्रेस ने बीच चुनाव में मुस्लिमों को ओबीसी और एससी कोटे से आरक्षण देने की बात कही। इसके लिए सप्लीमेंन्ट्री घोषणा पत्र भी मुस्लिम इलाकों में बंटवाए गए।
एकतरफा मुस्लिम तुष्टिकरण से अपर कास्ट का हिन्दू वोटर नाराज हो गया। उसे लगा कि उसके वोट की तो कोई कीमत ही नहीं है। इसी तरह ओबीसी और एसटी कोटे से मुस्लिमों को आरक्षण देने की घोषणा से बचा-खुचा ओबीसी, एसटी वर्ग की भाजपा के पास आ गया। मोदी के ओबीसी होने से ये वर्ग पहले से ही उनकी ओर झुकता प्रतीत होता था।
यूपी में सपा के राज्य में हुए दंगों से हिन्दू वैसे ही नाराज था। इन दंगों का एक बड़ा कारण हिन्दु लड़कियों से की जाने वाली छेड़छाड़ था। इससे भी वहां का बहुसंख्यक समुदाय भरा बैठा था। मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण वैसे भी ध्रुवीकरण के कारक पहले से ही मौजूद थे।
कम्युनल वाइलेंस बिल के विवादास्पद प्रावधानों ने भी बहुसंख्यकों को कांग्रेस से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई। इसे लेकर यूपी और बिहार में अंडर करंट सा था।
यानी हिन्दुओं को उपेक्षित कर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए राग सेकुलर गाना यूपीए को महंगा पड़ा। 15 प्रतिशत के लिए 85 प्रतिशत की उपेक्षा कांग्रेस को महंगी पड़ी। पहले से ही मंहगाई, भ्रष्टाचार से जूझ रहे लोगों को तुष्टिकरण की राजनीति और उसमें अपनी राजनीतिक उपेक्षा बहुत खली। यानी सोया शेर बहुसंख्यक शेर जाग गया। उसने बता दिया कि मुस्लिम वोटों से नही हिन्दू के वोटों से ही सरकार बनती है।
कांग्रेस चली थी अल्पसंख्यकों के वोटों का का ध्रुवीकरण करने और हो गया इसके विपरीत हिन्दुओं का मोदी के पक्ष में ध्रुवीकरण। यही कारण है कि देश भर से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। हिन्दुओं को गाली देने वाले नेता अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। यही कारण है कि इस लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या अभी तक के इतिहास में सबसे कम यानी 22 है और उसमें भी सबसे अधिक 80 सीटों वाले राज्य यूपी में से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। अगर इसी तरह से सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति चलती रही तो हो सकता है कि आने वाले चुनावों में मुस्लिम सांसदों की संख्या और कम हो जाए।