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रविवार, 4 मई 2014

लालकिले से (भाग-89)- जगद्गुरू भारती तीर्थ, निश्चलालंद सरस्वती, स्वरूपानंद, जयेन्द्र सरस्वती (उत्तराधिकारी विजयेन्द्र सरस्वती) के अलावा सारे शंकराचार्य फर्जी या स्वयंभू

आदिगुरू शंकराचार्य
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मुख्य श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य हैं भारती तीर्थ महाराज, कांग्रेस समर्थित 
शंकराचार्य स्वरूपानदं सरस्वती का दो पीठों द्वारका और ज्योतिष पर 
कब्जा, अब कांग्रेस अधोक्षानंददेव तीर्थ को शंकराचार्य बनाने में लगी, 
ज्योतिष पीठ पर कब्जा कराने की योजना। 
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नकली शंकराचार्य

सोशल मीडिया और अखबार में एक खबर पढक़र चौंका कि पुरी के शंकराचार्य अधोक्षानंददेव तीर्थ नरेन्द्र मोदी के खिलाफ काशी में चुनाव प्रचार करेंगे। कांग्रेस की वेबसाइट पर भी इन शंकराचार्य का जिक्र है। कारण कि मैं पुरी, उड़ीसा की गोवर्धन पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महराज को पिछले 20 वर्षों से जानता हूं। फिल मुझे लगा कि उन्होंने अपना उत्तराधिकारी तो घोषित नहीं कर दिया। फिर गोर्वर्धन पीठ पुरी की आफिशियल वेबसाइट पर चैक किया तो तसल्ली हुइ कि पुरी के शंकराचार्य तो निश्चलानंद सरस्वती महराज ही हैं। निश्चलानंद सरस्वती तो जगदगुरू शंकराचार्य करपात्रीजी महाराज के शिष्य हैं। आदिगुरू शंकराचार्य के बाद यदि कोई परिवर्तनकारी शंकराचार्य हुए हैं तो वे करपात्रीजी महाराज। करपात्रीजी महाराज काशी के ही एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। यानी कांग्रेस मोदी विरोध के लिए एक और नक ली शंकराचार्य खड़ा कर रही है। देश में चार मूल पीठ में तीन शंकराचार्य ही है। द्वारका और बद्रिाकश्रम पीठ पर एक ही शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का कब्जा है।


     मूल दक्षिण पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य हैं    

                     भारती तीर्थ महाराज
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शंकराचार्य का मूल मठ है कर्नाटक के श्रृंगेरी में। यहां पर 820 ई में आदिगुरू शंकराचार्य ने यहां पर वैदिक धर्म के प्रसार के लिए देश में चार पीठों की स्थापना की थी। अभी यहां आदिगुरू की परंपरा में 36 वें शंकराचार्य भारती तीर्थ महाराज हैं। इनका वेद है यजुर्वेद।


पुरी पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य हैं                 

निश्चलानंद सरस्वतीमहाराज
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यह पूर्वी भारत की पीठ है। इसका नाम गोवर्धन मठ है। इसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती है।निश्चलानंद सरस्वती तो जगदगुरू शंकराचार्य करपात्रीजी महाराज के शिष्य हैं। आदिगुरू शंकराचार्य के बाद यदि कोई परिवर्तनकारी शंकराचार्य हुए हैं तो वे करपात्रीजी महाराज।   इनका वेद है ऋग्वेद।


द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती
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पश्चिम की पीठ को द्वारका या शारदा पीठ कहते हैं। इसके शंकराचार्य हैं स्वरूपानंद सरस्वती। इन पर कांग्रेस समर्थक होने का आरोप लगाया जाता है।
  इनका वेद है सामवेद।

ज्योतिष पीठ के भी स्वरूपानंद सरस्वती
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उत्तर की पीठ को बद्री ज्योतिष पीठ कहते हैं। इसके शंकराचार्य भी स्वरूपानंद सरस्वती हैं। बद्री पीठ के शंकराचार्य को लेकर 1951 से 80 तक काफी विवाद रहे हैं। इस दौरान कांग्रेस ने स्वरूपानद सरस्वती को ही यहां का शंकराचार्य बनवा दिया।
  इनका वेद है अथर्ववेद।



कांचि काम कोटि में जयेन्द्र सरस्वती, उत्तराधिकारी  विजयेन्द्र
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इसके अलावा शंकराचार्य ने दक्षिण में कांचि काम कोटि में एक और पीठ स्थापित की थी। उनकी योजना थी कि श्रृंगेरी मूल पीठ रहेगी और दक्षिण के लिए कांचि काम कोटि को पीठ बनाया जाएगा। वे दोनों जगह रहते थे। यहां के शंकराचार्य हैं जयेन्द्र सरस्वती। 
अब उन्होंने विजयेन्द्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। हत्या के मामले में जेल जाने के कारण जयेन्द्र सरस्वती काफी चर्चित रहे हैं। वहां से वे निर्दोष छूट गए। इनकी गिनती सर्वाधिक सेवा कार्य करने वाले शंकराचार्य के रूप में होती है।  

इनका वेद है यजुर्वेद।
http://www.kamakoti.org/

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