भारत सरकार की ओर से प्रकाशित संविधान में एक पेज अंग्रेजी और सामने उसी का हिन्दी अनुवाद है। इसमें अंग्रेजी में सेकुलर और हिन्दी में पथंनिरपेक्ष लिखा गया है। मतलब कि सेकुलर का अर्थ पंथनिरपेक्ष होता है। सुप्रीम कोर्ट भी कहती है कि सेकुलर का मतलब होता है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और वह धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करेगा। जब कानूनी तौर पर सेकुलर (पंथनिरपेक्षता) इतनी अच्छी तरह से परिभाषित है लेकिन राजनीति ने इस परिभाषा से भी राजनीति खेल ली और फायदे के अनुसार इसका इस्तेमाल किया। दरअसल इसके अर्थ का अनर्थ अनुवाद की त्रासदी के कारण हुआ।
अनुवाद की त्रासदी से हुआ अर्थ का अनर्थ
इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान 1976 में 42 वे संविधान संशोधन के जरिये सेकुलर शब्द जोड़ा। भारत में अभी भी कानून सबसे पहले अंग्रेजी में ही बनता है। बाद में इसका हिन्दी अनुवाद होता है। सेकुलर शब्द जोडऩे के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने इसका अर्थ धर्मनिरपेक्षता के रूप में प्रचारित किया। इसे हिन्दी और अन्य रीजनल मीडिया ने इसे इसी अर्थ में चलाया। जब संविधान का हिन्दी अनुवाद आया तो उसमें शब्द आया पंथनिरपेक्ष। इसके बाद अस्सी के दशक में यह बात उठी कि सेक्युलर का अर्थ धर्मनिरपेक्षता नहीं पंथनिरपेक्षता है तो फिर उसे गलत संदर्भों में क्यों लिया गया। दरअसल आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने मुस्लिमों के वोटों को पाने के लिए लोगों को इसका अर्थ धर्मनिरपेक्षता बताया (जो कि कभी था ही नहीं) और मुस्लिमों के संरक्षण से इस शब्द को जोड़ दिया। वैसे भी धर्म निरपेक्षता शब्द गलत है। कारण कि धर्म यानी अच्छे आचार विचार से दूर होकर राजनीति कभी भी आगे नहीं जा कसती ।
शाहबानो और राम जन्मभूमि
इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी भी इसी नीति पर चले। शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कानून बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि सीआपीसी के तहत शाहबानो अपने पति से गुजारा भत्ता लेने की हकदार है। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह शरीअत के खिलाफ है। दरअसल मुस्लिमों को लगा कि इस फैसले को मान लिया गया तो देश में युनिफार्म सिविल कोड का रास्ता खुल जाएगा। इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम महिला मेहर के अलावा किसी अन्य गुजारे भत्ते की हकदार नहीं है। अंतत: राजीव मुस्लिम तुष्टिकरण के आगे झुके और संसद के कानून बनाकर इस फैसले की व्यस्थाओं को खारिज कर दिया। इस मामले ने तूल पकड़ किया और हिन्दुओं ने नाराजगी जताई। हिन्दुओं के बढ़ते विरोध को देखते हुए राजीव गांधी ने अयोध्या में रामजन्मभूमि के ताले खोल दिए।
मुलायम ने इसे सत्ता के लिए साधा
अयोध्या में रामलला मंदिर के ताले खुलने के बाद मंदिर बनाने के लिए आंदोलन आरंभ हुआ। कार सेवा हुई। गोलियां चलीं। ढांचा टूटा। यूपी में मुलायमसिंह ने भी अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मुस्लिमों को अपने साथ करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने कारसेवकों पर गोलियां भी चलवाईं। इसी से वे सत्ता में आए। बीएसपी भी इसी लाइन पर चली। उसे मुस्लिमों के साथ दलितों को जोड़ लिया। वह भी सत्ता में आई। ममता बैनर्जी भी रास्ते से सत्ता में आईं। धर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी एक अलग परिभाषा गढ़ ली है। उनके अनुसार सेकुलर होने के मायने हैं- इंडिया फस्र्ट।
सेकुलरिज्म का बाजारीकरण
यानी इंदिरा गांधी सेकुलरिज्म की अपनी परिभाषा पर जो राजनीति बंद कमरे में करती थीं उसे राजीव गांधी बाजार में ले आए और मुलायमसिंह ने उसका बाजारीकरण कर दिया। पर इनकी परिभाषा संविधानसम्मत कम और वोट सम्मत ज्यादा रही। संरक्षण मुस्लिमों का ही क्यों हर भारतीय का होना चाहिए। हर भारतीय (सवर्ण जातियां जिनमें मुस्लिम, ईसाई भी शामिल हैं) जो आर्थिक तौर पर कमजोर है उसे आगे लाने के लिए राज्य को प्रयास करने चाहिए। पर राजनीतिक दल बजाय इसके मुस्लिम तुष्टिकरण को ही सेकुलरिज्म समझा रहे हैं। इसके अलावा हिन्दुओं के हितो की बात करना भी सेकुलरिज्म के खिलाफ माना गया। यानी सत्ता के लिए ये कमयुनल लोग सेकुलरिज्म की परिभाषा को मनमाफिक ढ़ालते रहते हैं।
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