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रविवार, 26 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-1६) हे, गणतंत्र के एक अराजक मुख्यमंत्री -- -- हमारा गणतंत्र सदैव अमर रहेगा



लालकिले से  (भाग-18)

                           हे, गणतंत्र के  एक अराजक मुख्यमंत्री                            -- -- हमारा गणतंत्र सदैव अमर रहेगा




णतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आए दो बयानों ने हमारे गणतंत्र पर मंडरा रहे अराजकता के खतरे की ओर संकेत किया है। यानी अपना काम बनाने  के लिए नेता किसी भी हद कर जा रहे हैं यानी अराजकता का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। यानी इशारा सीधा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर है। यहां हमने इन बयानों का संविधान की सीमा में खोजने की कोशिश की है।
१. लोकलुभावन अराजकता लोकतंत्र का विकल्प नहीं हो सकती                                                           -                                                                                               -प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति भारत गणराज्य
२. संविधान में यह कहीं नहीं लिखा की एक मुख्यमंत्री धरना नहीं दे सकता                                                                                                                                          - अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली राज्य
भीड़ अराजक ही होती है। उसे नियंत्रण में लाकर अनुशासित या भागीदार बनाने की प्रक्रिया का नाम है गणतंत्र या रिपब्लिक । एक प्रक्रिया के माध्यम से उसी भीड़ से से कुछ गण चुनकर उन्हें ही उस अराजक भीड़ पर शासन करने का जिम्मा दिया जाता है। यह प्रक्रिया है लोकतंत्र या डेमाक्रेसी। गणतंत्र की यह प्रक्रिया यजुर्वेद के श्लोक- गणानां त्वां गणपति गुं हवामहे---- में निहित है। यानी गणों का पति या स्वामी ही गणेश यानी लीडर होता है। यानी हम सभी शुभ कामों के पहले एक ऐसे गणपति या लीडर को पूजते हैं जो अराजकता को अनुशासन और शासन में बदलता है।
केजरीवाल ने धरने के दौरान कहा मैं अराजक हूं। यानी वे चुने जाने के बाद भी अभी भी स्वीकार करते हैं कि- हां मैं अराजक हूं। उनकी कार्यशैली को देखें तो उसका आधार ही लोक  लुभावन बाते हैं। यानी दोनों को मिला दें तो लोकलुभावन अराजकता अस्तित्व में आती है। यानी की महामहिम ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में केजरीवाल ने जनहितों की आड़ लेकर दिल्ली को  धरने के माध्यम से 32 घंटे बंधक बनाने और लोकतंत्र की
लोगों को बिजली बिल नहीं भरने के लिए प्रेरित करना, बिना पैसे दिए बिजली का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना, पूरे नहीं किए जा सकने वाले वादे करना, पुलिस को विद्रोह के प्रेरित करना, बिना अुनमति लिए धरना देना, निषेघाज्ञा तोडऩा और कौन सा गणतंत्र वाला बयान अराजकता का जीता-जागता नमूना है।
केजरीवाल ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर यह कहा कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि मुख्यमंत्री धरना नहीं दे सकता। उनका मतलब शब्दत: लिखी बात  की ओर ही है तो यह भी सवाल उठता है कि संविधान में कहीं यह भी नहीं लिखा है कि मुख्यमंत्री धरना दे सकता है। सवाल है कि क्या राज्य में कानून बनाने वाली सर्वोच्य संस्था विधायिका का प्रमुख कानून तोड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और केन्द्र सरकार को इसी बात पर नोटिस भी दिए हुए हैं।
अगर केजरीवाल जी जानना चाहते हैं कि उन्होंने धरना देकर संविधान को कैसे तोड़ा है तो भारत का संविधान खोलकर बैठ जाएं। भारत में कानून का शासन यानी रूल आफ ला को तोड़ा। भारत में रूल आफ यानी संविधान सर्वोच्य है।
१. संविधान की तीसरी अनुसूची में अनुच्छेद 75(4), 84(क), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 173(क),188 और 219 को ध्यान में रखते हुए शपथ का प्रारूप बनाया है। यह शपथ तो अरविंद केजरीवाल ने रामलीला मैदान में हजारों लोगों के सामने ली थी। इसमें एक बात यह भी थी कि मैं अरविंद केजरीवाल विधि द्वारा प्रस्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्य रखूंगा। सबसे पहले उन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा और फिर एकता- अखंडता बनाए रखने की शपथ तोड़ी है।
२. कौन सा गणतंत्र कहकर उन्होंने संविधान और उसकी शपथ की अवमानना की है। आम तौर पर नक्सलवादी और प्रगतिवादी विचार के तौर  इस प्रकार गणतंत्र दिवस की अवहेलना करते हैं। चुने हुए मुख्यमंत्री का ऐसा कहने का मामला पहली बार आया है।
३. विधि के शासन के नियमों को ताक पर रखकर खुद धरने पर बैठ गए। धरने के लिए न तो उन्होंने नियमानुसार अनुमति ली और न ही सुप्रीम कोर्ट के नियमों का पालन किया। दिल्ली में अनुमति के बाद सिर्फ जंतर मंतर पर धरना दिया जा सकता है। लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शन को अपनी बात कहने का एक माध्यम माना जाता है इसलिए इस पर पूरी तरह रोक नहंीं है। अगर अरविंद केजरीवाल के लिए धरना देना इतना ही जरूरी था वे जंतर-मंतर, रामलीला मैदान पर सांकेतिक धरना दे सकते थे। सरदार सरोवर बांध के मुद्दे पर गुजरात के मुख्यमंत्री भी सांकेतिक धरना दे चुके हैं।
४. पुलिस को विद्रोह करने के लिए भडक़ाया। यानी राज्य या राष्ट्र के खिलाफ विद्रोह करने के लिए बात कही। सशस्त्र बलों के संदर्भ में ऐसा करना  भारतीय दंड संहिता के तहत भी गंभीर किस्म का अपराध है।
५. गृहमंत्री मुझे यानी केजरीवल को कैसे बता सकता है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कहां पाए न जाए यह कहकर उन्होंने यह संकेत देने का प्रयास किया कि वे संविधान से उपर हैं। इस देश में संविधान ही सर्वोपरि है बाकी सब उससे नीचे। यह भारत के संघीय ढांचे को भी चुनौती है। अगर कहीं निशेधाज्ञा लगी है तो मुख्यमंत्री भी उसे नहीं तोड़ सकत हेैं। यानी फिर उन्होंने कानून के शासन को तोड़ा हैद्ध
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस पद पर आने से पहले कंाग्रेसी थे इसलिए कुछ लोग उनके भाषण को राजनीति के चश्मे से भी देख रहे हैं। कारण कि भाषण को सरकार की नीति के रूप में देखा जाता है। अगर ऐसा भी है तो इसमें एक दूसरी किस्म की अराजकता की बात भी छुपी है। राष्ट्रपति ने जिस लोकलुभावन अराजकता का जिक्र किया है उसमें एक तो केजरीवाल के धरने के तौर पर दिख रही है और दूसरी जो दिख नहीं रही है जो कि ज्यादा खतरनाक है। वोट पाने के लिए पहले लोकलुभावन वादे करना फिर उन्हें पूरे नहीं करना या लागू करने के लिए शर्तें लागू करना जनता को पहले परेशान करती है फिर उन्हें लोकतांत्रिक प्रकिया से दूर करती है। इससे जनता मन में यह धारणा बना लेती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कुछ होना जान नहीं है। यानी मानसिक तौर पर पहले लोकतंत्र के प्रति नाराजगी का भाव आता है। एक समय बाद वह अराजकता के भाव में बदलने लगता है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
लेकिन चिंता की बात नहीं है हमारे संविधान निर्माता लोग दूरगामी थे। उन्होंने भविष्य में बनने वाली स्थितियों की पहले से ही कल्पना कर ली थी इसीलिए उन्होंने देश को व्यक्ति नहीं संविधान द्वार शासित बनाया और यही हमें इसी अराजकता से निपटने की ताकत देती है। तभी सुप्रीम कोर्ट जिसके पास कि संविधान की व्याखया करने का एक मात्र और अंतिम अधिकार है केन्द्र और दिल्ली सरकार ने धरना देने के अधिकार और पुलिस की मूकदर्शकता पर सवाल उठाए हैं। मान के चलिए कि अरविंद केजरीवाल, केन्द्र सरकार और दिल्ली पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की कम से कम फटकार तो तय है। साथ ही कोर्ट यह भी तय कर देगा कि मुख्यमंत्री धरना दे सकता है या नहीं और सांकेतिक रूप स अगर दे भी सकता है तो किस अनुशासन के साथ। कारण कि देश की सर्वोच्य अदालत के सामने प्रश्न है कि क्या कानून बनाने वाला कानून तोड़ सकता है। तय है जवाब नहीं ही आएगा।
यानी नारा लगाईए हमारा गणतंत्र अमर रहे।


मंगलवार, 21 जनवरी 2014

लालकिले से (भाग-1३) सुप्रीम कोर्ट के डर, गणतंत्र दिवस विरोधी बयान और अराजकता पर मीडिया के स्टंैड के कारण केजरीवाल को पीछे हटना पड़ा


लालकिले से  (भाग-1३)

सुप्रीम कोर्ट के डर, गणतंत्र दिवस विरोधी बयान और अराजकता पर मीडिया के स्टंैड के कारण केजरीवाल को पीछे हटना पड़ा

दोनों एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए केजरीवाल के पीएस राजेन्द्र ने राजी किया, केन्द्र सरकार ने एक भी शर्त नहीं मानी





दिल्ली पुलिस के तीन एसएचओ के बहाने देश भर में माहौल बनाने के लिए दस दिन तक धरने की तैयारी से आए केजरीवाल को 32 घंटे में ही अपना आंदोलन वापस लेना पड़ा। जिसे वह अपनी जीत बता रहे है वह उनकी हार है। दरअसल केन्द्र ने उनकी एक भी शर्त नहीं मानी। जिन दो एसएचओ को छुट़टी पर भेजे जाने की खबरें आ रही हैं उन्हें खुद केजरीवाल के सचिव राजेन्द्र ने लाखें मिन्नतें कर छु़ट़टी पर जाने को राजी किया। इसके बाद दोपहर 1 बजे उप राज्यपाल नजीब जंग के घर योगेन्द्र यादव लंच पर गए और धरना खत्म करने की पेशकश की। इसके बाद रात 8 बजे के बाद उप राज्यपाल ने अरविंद केजरीवाल से अपील की कि गणतंत्र दिवस और सुरक्षा के मुद्दे पर धरना खत्म कर दें। केजरीवाल तो उधार ही बैठे थे। उन्होंने अपने अधसच्चे भाषण के साथ धरना समाप्त करने का ऐलान कर दिया।  इस पांच मुद्दों के कारण केजरीवाल को पीछे हटना पड़ा और उनकी भारी किरकिरी हुई।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार 

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को धरने को लेकर अरविंद केजरीवाल और मंत्री सोमनाथ के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम ने  इस पर शुक्रवार को सुनावाई करेंगे। इस याचिका में धरने से होने वाली अव्यवस्था और सोमनाथ भारती को बचाने के विषय को उठाया गया है। जब तक केजरीवाल और उनकी टीम को इसकी भनक लगी कि याचिका स्वीकार हो गई है तब तक लुटियंस विला में अराजकता से  हालात बन चुके थे। तब लगा कि कहीं कोर्ट शुक्रवार को इस अराजकता पर कोई सख्त बात न कह दे ले इसलिए तुरत-फुरत धरना समेटने की पटकथा लिख दी गई। इसलिए आप ने केन्द्र के सामने हथियार डालते हुए सम्मानजनक फार्मूले की बात  उप राज्यपाल के मार्फत कही। सुप्रीम कोर्टमें इस विषय पर दिल्ली और केन्द्र सरकार की किरकिरी होनी तय है। कारण कि  धरना प्रकरण में केजरीवाल ने  संविधान और कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं।

गणतंत्र और मीडिया का विरोध महंगा पड़ा 

ये कोई गणतंत्र दिवस है। ये  गणतंत्र और वीआईपी लोगों के लिए है। असली गणतंत्र तो ये है। इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हुई। मीडिया और केजरीवाल के समर्थकों की ओर से भी इसकी विपरीत प्रतिक्रिया आने लगी। मीडिया भी इस तरीके को अराजक बताने लगा। मैट्रो और रास्ते बंद होने से जनता भी विरोध में आने लगी। अपेक्षित समर्थन भी नहीं मिला। केजरीवाल को लगने लगा कि गणतंत्र का विरोध करने से कहीं उन्हें देशद्रोही की उपमा न मिल जाए। उन्होंने धरना समाप्त करने का फैसला किया और दो टीमों को काम पर लगाया। पाकिस्तानी मीडिया ने आज केजरीवाल के गणतंत्र वाले मुद्दे पर जम्हूरियत का खूब मजाक उड़ाया।

खुद एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए राजी किया

दिल्ली सचिवालय में पहली टीमें में केजरीवाल के पीएस राजेन्द्र ने दोनों एसएचओ को छुट्टी पर जाने को राजी किया। इसी दौरान एलजी नफीज जंग के घर पर लंच के बहाने अरविंद के शांति दूत बनकर योगेन्द्र यादव गए। और कहा कि दो एसएचओ को छुट्टी पर जाने के लिए हमने राजी कर लिया है अत: आप जांच तक दोनों को छुृ्रट़टी पर भेजने की घोषणा करें। इसके बाद शाम को गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह राष्टपति से मिलने गए और उनसे इस मामले पर उनकी मुहर लगवाई।

पुलिस की सख्ती और सेना का डर 

दोहपर में बाधाएं हटाकर रेलवे भवन की ओर जाने को प्रयास कर रहे आप कार्यकर्ताओं पर दिल्ली पुलिस के लाठीचार्ज के बाद धरना स्थल को रैपिड एक् शन फोर्स ने घेर लिया। इससे भी केजरीवाल को लगा अब केन्द्र सख्ती कर सकता है। इसी बीच रेलवे भवन को बंद कर धरना स्थल  को कल तक खाली करने के लिए अल्टीमेटम दे दिया गया। कारण कि कल से इस सारे इलाके का कब्जा सेना अपने हाथ में ले लेगी। सेना को कल तक कैसे भी करके यह स्थान खाली करके देना था।

कांग्रेस ने केजरीवाल को आइना  दिखाया

केजरीवाल को गेमप्लान का था कि सरकार शहीद करवाकर वे नेशनल हीरो बन जाएं जाएंगे पर महाराष्ट्र पुलिस के एक पुराने कांस्टेबल ने उनका सारा खेल बिगाड़ दिया। न मांगे मानी और माहौल को इतना अराजक होने दिया कि देश में केजरीवाल की छवि बिगड़े। एसएचओ को छुट्टी पर भेजने के बारे में गृहमंत्री और एलजी की ओर से कोई आफिसियल बयान नहीं आया है। सारा समझौता राजनीतिक बयानबाजी पर आधारित था। लेकिन कांग्रेस ने न समर्थन वापस लिया, न सरकार बर्खास्त हुई और न ही गोली चली। वापस हुआ तो धरना। उसी से ठंडा उसी से गरम की तई पर कांग्रेस ने केजरीवाल से राजनीति खेल डाली।  कुल मिलाकर केजरीवाल का हाल खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना जैसा हो गया।