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रविवार, 4 मई 2014

लालकिले से (भाग-90) - स्नूपगेट हुआ बूमरेंग- कांग्रेस समर्थित निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा आएंगे चपेट में


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प्रदीप शर्मा की हरकतों पर नजर रखने के लिए दोनों के  

फोन थे सर्वलेन्स पर
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स्नूपगेट कांड में कांग्रेस के लिए बुरी खबर है। गुजरात सरकार की ओर से बनाए गए जांच आयोग से समक्ष युवती ने पेरिस से आकर बयान दे दिए हैं। इस बयान की कापी राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भेजी गई है। दिल्ली खबरपालिका में चल रही अपुष्ट चर्चाओं के अनुसार लडक़ी ने आयोग के समक्ष यह कहा है कि उसे पता है कि उसका फोन सर्वलेन्स पर है। ऐसा इसलिए किया गया कि उसे राज्य के एक आईएएस अफसर प्रदीप शर्मा से (अब निलंबित) से खतरा था। वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसे किसी भी कीमत पर प्रभावित करना चाह रहे थे। उल्लेखनीय है कि यह मामला सामने आने के बाद युवती परिवार के साथ पेरिस चली गई थी। इस बयान के बाद इस निलंबित अधिकारी पर हरेसमेंट का केस चल सकता है। कौन सा हरेसमेंट आप समझ ही सकते हो। नए कानून के तहत यह गैर जमानती अपराध है। यानी प्रदीप शर्मा और उस युवती का फोन इसलिए सर्वलेन्स पर था जिससे कि प्रदीप शर्मा की हरकतों पर नजर रखी जा सके। यह मामला सामने आने के बाद युवती अपने पति के साथ पेरिस चली गई है। पेरिस में लडक़ी का भाई बड़ा कारोबारी है।
इस मामले में खोजी पोर्टल गुलेल और कोबरा पोस्ट ने अपने कथित स्टिंग में कुछ टेपों के आधार पर खुलासा किया था कि अमित शाह ने नरेन्द्र मोदी के लिए 62 दिनों तक जासूसी की थी। इन टेपों में नरेन्द्र मोदी का नाम नहीं था।
सिर्फ अनुमान के आधार पर गुलेल और कोबरा पोस्ट ने नरेन्द्र मोदी का नाम लिया था। रिकार्डिंग में कहीं भी नरेन्द्र मोदी के नाम का जिक्र नहीं है। सिर्फ साहेब का जिक्र है। कानूनी तौर पर साहेब नाम के आधार पर मोदी के नाम का निष्कर्ष निकालना गलत है। गुजरात के सर को साहेब कहते हैं। वह कोई भी हो सकता है। वह मोदी ही है इसके कोई सबूत नहीं हैं।

मोदीनामा की लेखिका मधु किश्वर ने एक चैनल पर बहस के दौरान कहा था कि- मेरी जानकारी है कि भुज पुनर्वास में एक प्रोजेक्ट दिलवाने के बदले प्रदीप शर्मा उस लडक़ी का नाजायज फायदा उठाना चाहते थे।
अगर कांग्रेस मोदी के खिलाफ केन्द्र का जांच आयोग बैठाती है तो केन्द्र में सरकार बनने की दशा में भाजपा इस आदेश को रद्द भी कर सकती है। इसका आधार यह होगा कि चंूकि एक आयोग जांच कर रहा है इसलिए दूसरे आयोग की जांच की जरूरत नहीं है। यह आयोग उसी कानून से भंग किया जाएगा जिसके तहत कि इसे बनाया गया है।
क्रमश:

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