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सोमवार, 19 मई 2014

लालकिले से (भाग-102) - यह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ बहुसंख्यक हिन्दुओं का जनादेश है


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आजादी के बाद पहली बार हिन्दुओं ने राजनेताओं ने संदेश दिया है कि 

सरकार मुस्लिम वोटों के बगैर भी बन सकती है, और उसने बनवा दी
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2014 के आम चुनाव का जनादेश कांग्रेस (यूपीए) की मुस्लिम तुष्टिकरण और सो काल्ड सेकुलर राजनीति के खिलाफ भी है। यह जनादेश है मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति और बहुसंख्यक हिन्दुओं की घोर उपेक्षा के खिलाफ। यह जनादेश हैं बात-बात पर हिन्दुओं को सांप्रदायिक कहने वाली सो काल्ड सेकुलर ताकतों के खिलाफ। यह जनादेश है गुजरात में दो बार के चुनाव में नकार दिए गए दंगों के मामले को देश पर थोपने के खिलाफ।
यूपीए के सो काल्ड सेकुलर लोगों को लगता था कि सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोटों से ही उनका काम चल जाएगा। हिन्दू तो सदियों से जात-पात में बंटा हुआ है इसलिए उसका वोट भी हमेशा की तरह बंटेगा ही। इसलिए हिन्दू और उसके धर्म को कितनी भी गालियां दे दो, वह तो कोई प्रतिक्रिया देने से रहा। लिहाजा कांग्रेस सहित सभी सो काल्ड सेकुलर दलों ने अपना सारा फोकस मुस्लिम वोट कबाडऩे में लगा दिया। इसलिए सभी ने नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेन्डे के खिलाफ सेकुलर एजेन्डा खड़ा कर दिया। उसकी आड़ में 2004 के गुजरात दंगों के नाम पर मोदी, हिन्दुत्व और हिन्दुओं को गाली दी गई। अयोध्या के आंदोलन को लेकर एक स्टिंग लाकर मुस्लिमों का मसीहा बनने की कोशिश की गई।
आजमखान, बेनीप्रसाद वर्मा, सलमान खुर्शीद, लालू यादव, ममता बनर्जी, इमरान मसूद ने सोची समझी नीति के तहत मोदी और हिन्दुत्व को निशाना बनाया। हिन्दुओं को साम्प्रदायिक ठहराया जाने लगा। यानी गुजरात के तीन विधानसभा चुनाव में खारिज हो चुका एजेंडा कांग्रेस ने फिर से देश पर थोपने की कोशिश की। कोई मोदी को कसाई तो, कोई दंगा बाबू, कोई नपुसंक और कोठ्र बोटी-बोटी करने की बात करता। ये लोग सोच रहे थे कि मोदी को जितना निशाना बनाएंगे उनता ही मुस्लिम वोट उनकी तरफ आएगा। लिहाजा कांग्रेस आलाकमान की ओर से भी पूरी छूट मिली हुई थी।
चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले कांग्रसे अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद शाही ईमाम बुखारी ने कांग्रेस के पक्ष में फतवा जारी किया। मुस्लिम तुष्टिकरण की हद तब हो गई जब कांग्रेस ने बीच चुनाव में मुस्लिमों को ओबीसी और एससी कोटे से आरक्षण देने की बात कही। इसके लिए सप्लीमेंन्ट्री घोषणा पत्र भी मुस्लिम इलाकों में बंटवाए गए।
एकतरफा मुस्लिम तुष्टिकरण से अपर कास्ट का हिन्दू वोटर नाराज हो गया। उसे लगा कि उसके वोट की तो कोई कीमत ही नहीं है। इसी तरह ओबीसी और एसटी कोटे से मुस्लिमों को आरक्षण देने की घोषणा से बचा-खुचा ओबीसी, एसटी वर्ग की भाजपा के पास आ गया। मोदी के ओबीसी होने से ये वर्ग पहले से ही उनकी ओर झुकता प्रतीत होता था।
यूपी में सपा के राज्य में हुए दंगों से हिन्दू वैसे ही नाराज था। इन दंगों का एक बड़ा कारण हिन्दु लड़कियों से की जाने वाली छेड़छाड़ था। इससे भी वहां का बहुसंख्यक समुदाय भरा बैठा था। मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण वैसे भी ध्रुवीकरण के कारक पहले से ही मौजूद थे।
कम्युनल वाइलेंस बिल के विवादास्पद प्रावधानों ने भी बहुसंख्यकों को कांग्रेस से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई। इसे लेकर यूपी और बिहार में अंडर करंट सा था।
यानी हिन्दुओं को उपेक्षित कर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए राग सेकुलर गाना यूपीए को महंगा पड़ा। 15 प्रतिशत के लिए 85 प्रतिशत की उपेक्षा कांग्रेस को महंगी पड़ी। पहले से ही मंहगाई, भ्रष्टाचार से जूझ रहे लोगों को तुष्टिकरण की राजनीति और उसमें अपनी राजनीतिक उपेक्षा बहुत खली। यानी सोया शेर बहुसंख्यक शेर जाग गया। उसने बता दिया कि मुस्लिम वोटों से नही हिन्दू के वोटों से ही सरकार बनती है।
कांग्रेस चली थी अल्पसंख्यकों के वोटों का का ध्रुवीकरण करने और हो गया इसके विपरीत हिन्दुओं का मोदी के पक्ष में ध्रुवीकरण। यही कारण है कि देश भर से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। हिन्दुओं को गाली देने वाले नेता अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। यही कारण है कि इस लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या अभी तक के इतिहास में सबसे कम यानी 22 है और उसमें भी सबसे अधिक 80 सीटों वाले राज्य यूपी में से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। अगर इसी तरह से सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति चलती रही तो हो सकता है कि आने वाले चुनावों में मुस्लिम सांसदों की संख्या और कम हो जाए।

लालकिले से (भाग-101)- लोकसभा चुनाव के चार टर्निंग प्वाइंट : मोदी की पटना सभा में बम विष्फोट, मणिशंकर अय्यर का मोदी के चाय बेचने के अतीत का मजाक उड़ाना, मोदी की बोटी बोटी करने वाला वीडियो और प्रियंका के नीच राजनीति वाले बयान ने कांग्रेस विरोध की आग को और भडक़ा दिया



सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में बेतहाशा बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, राजनीतिक नेतृत्व का अभाव और पालिसी पेरालिसीस के मुददे यूपीए सरकार के खिलाफ गए। इसके अलावा चुनाव के दौरान हुई ये चार घटनाएं टर्निंग प्वाइंट साबित हुईं। इन्होंने आग में घी का काम किया। ये घटनाएं थीं पटना में मोदी की सभा में बम विष्फोट और उस पर राजनीति, मणिशंकर अय्यर का मोदी के चाय बेचने के अतीत का मजाक उड़ाना, सहारनपुर से मोदी की बोटी-बोटी करने वाला वीडियो सामने आना और प्रियंका गांधी का नीच राजनीति वाला बयान। इनमें से बम धमाके और बोटी-बोटी वाले बयान से धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण किया तो चाय वाले का मजाक और नीच राजनीति वाले बयान को मोदी ने पिछड़े बनाम अमीर राजघराने की लड़ाई में बदल दिया।
पटना की सभा में धमाके पर राजनीति  महंगी पड़ी
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पटना के गांधी मैदान में मोदी की हुंकार रैली के पहले और रैली के दौरान आंतकियों के बम विष्फोट और उसके बाद केन्द्र और राज्य की नीतिश सरकार का उस पर राजनीति करना लोगों को पसंद नहीं आया। देश की जनता ने यह भी देखा की सुरक्षा एजेंसियों की मनाही के बावजूद मोदी सभा स्थल पर आए। कारण कि वहां 5 लाख से भी अधिक भीड़ थी। सभा के दौरान धमाके हुए। मोदी के चेहरे पर पसीना था पर उन्होंने किसी को भी धमाके होने का अहसास नहीं होने दिया। रूमाल निकालकर पसीना पोछा और भाषण पूरा किया और सारी जनता से ये वादा लिया कि वे शांति के साथ अपने जाएंगे। कोई विवाद नहीं करेंगे। इसमें सारे देश ने देखा कि मोदी ने बतौर एक लीडर विपरीत परिस्थितियों से लोगों को निकाला। इसका अच्छा संदेश गया। इससे जनता को यह भी लगा कि देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को पाक समर्थित आतंकी उड़ाना चाहते हैं और नेता इस पर राजनीति कर रहे हैं। यह देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। केन्द्र और राज्य ने मोदी की सुरक्षा में लापरवाही बरती थी। लिहाजा मोदी के पक्ष में देश और खासकर बिहार में इससे सकारात्मक माहौल बना। नीतिश, लालू और कांग्रेस को इससे काफी नुकसान हुआ।

मणिशंकर का चाय वाला बयान कांग्रेस को भारी पड़ा
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कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक से पहले कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी का यह कहकर मजाक उड़ाया था कि अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने तो उन्हें कांग्रेस वर्किग कमेटी के बाहर एक स्टाल दे दिया जाएगा वे आकर वहां चाय बेचें। इस बयान पर कांग्रेस की खूब भद पिटी। कांग्रेस ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया लेकिन मध्यम और निचले वर्ग में इसका गलत संकेत गया। भारत में आज भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से गरीबी पर संघर्ष पर सफलता पाने वाले को समाज सम्मान से देखता है। इसलिए मोदी पर मणिशंकर का यह बयान कांग्रेस को काफी महंगा पड़ा। इस बयान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया करते हुए भाजपा ने देश भर में मोदी टी स्टाल और चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए। इसके माध्यम से मोदी और भाजपा कार्यकर्ताओं ने लाखों लोगों से संपर्क किया। यानी बोनस।

इमरान मसूद के वीडियो से यूपी में धुवीकरण की शुरूआत

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पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चुनाव से प्रहले सहारनपुर से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद का एक वीडियो सामने आया। इसमें वे लोगों से कह रहे थे - ये यूपी है, यहां चालीस प्रतिशत मुसलमान हैं। मोदी की बोटी-बोटी करके रख देंगे। खैर कांग्रेस ने यह कर अपना बचाव करने की कोशिश की कि यह वीडियों कुछ दिन पुराना है। उस समय इमराज मसूद सपा में थे। दरअसल ये वीडियो खुद मसूद ने मुस्लिम वोटों के अपने पक्ष में ध्रवीकरण के लिए बनवाया था और सोश्यल मीडिया पर अपलोड करवा दिया। कारण कि वीडियो बनाने वाला लडक़ा उसीके मोहल्ले में रहता है। चुनाव के दौरान उसे दिल्ली में छुपा दिया गया था। लेकिन यह वीडियो बूमरेंग कर गया। इससे मुस्लिमों के बजाय हिन्दुओं का ध्रुवीकरण आरंभ हो गया। यह सब ऐसे समय में हुआ जब मुजफ्फरगनगर सहित करीब सवा सौ दंगों के कारण यूपी पहले से ही धु्रवीकरण की आग में झुलस रहा था।

प्रियंका का मोदी पर नीच राजनीति का आरोप
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प्रियंका गांधी का यह कहना कि मोदी नीच राजनीति करते हैं कांग्रेस के लिए घातक हुआ। भारत में नीच शब्द जातिसूचक उपमा ही है। इसे आप किसी भी संदर्भ में कहें। मोदी ने इस पर पलटवार करते हुए खुद को पिछड़ा और दलित कार्ड खेल दिया। कांग्रेस बाद में भले ही कहती रही की नीच राजनीति का अर्थ जाति से नहीं है। उन्होंने इस लड़ाई को पिछड़े, दलित, गरीब, आम आदमी बनाम राजपरिवार बना दिया।

लालकिले से (भाग-100) - न लहर, न सुनामी ये तो है मोदी की महासुनामी



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भाजपा के आठ करोड़ वोट बढक़र 17.15 करोड़ हो गए। 9.15 करोड़ का इजाफा। भाजपा के पक्ष में 9.77 % और 5.24 करोड़ वोटों का महास्विंग। भाजपा के वोट दुगुने हुए और सीटें ढाई गुना बढ़ गई। कांग्रेस के वोट कम होने से उसकी 172 सीटें कम हुई।
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16 वी लोकसभा के चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया है कि इस बार चुनाव में न मोदी की लहर थी और न ही सुनामी। थी तो इससे भी बढक़र मोदी की महासुनामी। जिसने एक झटके में भाजपा के 8 करोड़ से भी कुछ कम वोटों को एक झटके में बढ़ाकर 17.15 करोड़ तक पहुंचा दिया। यानी 9.15 करोड़ वोटों का पिछले चुनाव की तुलना में सीधा-सीधा फायदा। अगर इसमें एनडीए के घटक दलों के प्रतिशत के अनुसार अनुमानित वोट जोड़ दें तो ये संख्या उन्नीस से बीस करोड़ के बीच पहुंच जाएगी। इसके निकालने में अभी समय लगेेगा। कारण कि हर स्टेट की सीटें देखकर ये आंकड़ा निकालना पड़ेगा। इन आंकडों से आपको यह समझने में मदद मिलेगी की मोदी का असर लहर और सुनामी से कहीं बढक़र था।
जहां भाजपा को वोट इस चुनाव में दो गुने बढ़े वहीं सीटें ढाई गुना बढ़ी। यानी 9 करोड़ वोटों से भाजपा की सीटें 116 से बढक़र 283 होग गई। और वोट नहीं बढऩे से कांग्रेस को 1.33 करोड़ वोटों के नुकसान से 172 सीटों का नुकसान हुआ और वह 44 सीटों पर सिमट गई।
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कांग्रेस को 2009 में 28.55% (12 करोड़ वोट) मिले थे। सीटें मिलीं 206। 2014 में वोट प्रतिशत घटकर 19.40%( 1०.६७ करोड़ वोट) हो गया। सीटें मिली 44 । दोनों का अंतर 9.15%( 1.33 करोड़ वोट)। यानी 172 सीटों का नुकसान।
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भाजपा को 2009 में 18.80% (8 करोड़ वोट) मिले थे। सीटें थी 116। 2014 में 31.20% ( 17.15 करोड़ वोट) । सीटें बढक़र हो गई 283। दोनों का अंतर 10.40%( 9.15 करोड़ वोट)। यानी वोट डबल हुआ और सीटें लगभग ढाई गुना बढ़ गई।
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भाजपा के पक्ष में 9.77 % और 5.24 करोड़ वोटों का महास्विंग।
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चूंकि एनडीए का अभी सही-सही प्रतिशत नहीं आया है। अन्यथा में इसमें दो करोड़ और वोटों का इजाफा होने का अनुमान है।

लालकिले से (भाग-99) - अच्छे दिन तभी आएंगे जब हम दीवार नहीं बुनियाद हिलाएंगे


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हर सडक़ पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलाएंगे
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भारतीय जनता पार्टी ने 16वीं लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में नारा दिया है कि - अच्छे दिन आने वाले हैं। यह नारा कश्मीर से कन्याकुमारी और भुज से आसाम तक के लोगों की जुबां पर चढ़ भी गया है। हम हिन्दुस्तानी भी 66 साल से उम्मीद और सिर्फ एक अदद उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अच्छे दिन आएं और देश विश्वगुरू के ंिसंहासन पर फिर विराजित हो। आज से नहीं 66 साल से आजाद हिन्दुस्तान में अच्छे दिनों की चाह में हम सरकारें चुन रहे हैं। अभी तक 15 सरकारें और 15 प्रधानमंत्री चुन चुके हैं। ये 15 सरकारें भी हमने अच्छे दिन लाने के लिए ही चुनीं थी। विकास की राह पर हम अग्रसर थे पर स्वार्थों के मकडज़ाल में हमारी गति मंथर हो गई। लेकिन पिछले दस सालों मेंं देश कुशासन, अंतहीन भ्रष्टाचार, महंगाई, नेतृत्वहीनता, संवादहीनता, पालिसी पेरालिसीस, बेरोजगारी, कर्ज लेकर घी पीती अर्थव्यवस्था के कारण जिस तरह हर मोरचे पर विफल हुआ है उससे देश के आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है। खासकर सुनहरे भविष्य के सपने देखने वाले 50 करोड़ युवाओं को। आज हम 16 वी लोकसभा के परिणामों के माध्यम से देश के 16 वे प्रधानमंत्री का चुनाव करेंगे। यानी फिर अच्छे दिनों की उम्मीद। इस बार तो नारा भी चल रहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
हम अगर किसी एक व्यक्ति से उम्मीद करें कि वे अकेले अच्छे दिन ला देंगे तो यह असंभव है। वे इसकी पहल कर सकते हैं, माहौल बना सकते हैं, संसाधन उपलब्ध करवा सकते हैं पर जब तक हम हम 125 करोड़ हिन्दुस्तानी सुधरने की कसम नहीं खाते तब तक मेरे हिसाब से अच्छे दिन नहीं आ सकते। सुधरने का मतलब है मानसिक रूप से बदलना। जब हम मानसिक तौर पर बदल जाएंगे तो फिर हम जो भी काम करेंगे वह सौ फीसदी सही होगा। यानी दीवार नहीं बुनियाद हिलानी पड़ेगी
१. मसलन भ्रष्ट्राचार पर रोक तभी संभव जब हर हिन्दुस्तानी सोच ले कि वह न तो रिश्वत लेगा और न ही देगा।
२. सरकारी कार्यालयों में प्राइवेट वाला वर्क कल्चर, पारदर्शी और तेजी से काम करने वाला सिस्टम बनाना होगा।
३. सरकारी पैसे का विकास मेंअधिकतम और सही उपयोग। यानी सही व्यक्ति के लिए सही योजना।
४. कृषि प्रधान देश में खेती को रोजगार से जोडऩे का प्रबंध करना होगा।
५. बिजली, पानी, सडक़, रोजगार और स्थानीय रोजगार की व्यवस्था करना।
और इन सबके लिए आपको दीवार नहीं व्यवस्था की बुनियाद हिलानी पड़ेगी। इसलिए सिर्फ वोट देने से काम नहीं चलेगा। हमें देश के लिए और भी कई फर्ज निभाने होंगे बिना यह आशा किए कि देश ने हमें क्या दिया है बुनियाद हिलाने की प्रेरणा दुष्यंत कुमार कुछ यूं देते हैं।

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सडक़ पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

लालकिले से (भाग-98) - एक्जिट पोल तो ठीक है पर 16 मई को ईवीएम से आंखें चकाचौंध कर देने वाला सुनामी निकलेगा




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भाजपा और कांग्रेस में लगभग 5 करोड़ वोटों का अंतर और 1.5 करोड़ 

वोटो का महास्विंग, सीटों में कहना मुश्किल 
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1. एक्जिट पोल के औसत वोट प्रतिशत , इस बार डाले गए कुल वोट और 2009 के चुनाव में बार डाले गए कुल वोटों की तुलनात्कम स्टडी कहती है कि- भाजपा को 17. 5 करोड़ के अधिक ( पिछली बार 8 करोड़), एनडीए के सहयोगियों को 2 से 2. 5 करोड़ से बीच वोट मिलेंगे। यानी कुल 20 करोड़ वोट। 2. कांग्रेस को 12करोड़ या इससे कम पिछली बार 12 करोड़ )और उनके सहयोगियों को 2 से 2. 5 करोड़ से बीच वोट मिलेंगे। बसपा और आम आदमी पार्टी को भी दो से ढाई करोड़ वोट मिल सकते हैं। 


अन्य दलों को मिल सकते हैं 16 करोड़ वोट
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सोमवार को आए एक्जिट पोल ने संकेत दे दिए हैं कि दस साल में दो पारीाखेलने के बाद यूपीए सत्ता से एक्जिट हो रही है। अंतिम फैसला 16 मई के दोपहर 12 बजे तक लगभग स्पष्ट हो जाएगा। सवाल उठता है कि क्या जनता-जर्नादन का फैसला इस एक्जिट पोल के अनुसार ही आएगा। इससे कम या इससे ज्यादा नहींआ सकता। बिल्कुल आ सकता है। इस बार लोकसभा चुनाव में ईवीएम से चौंकाने वाले नतीजे निकलेंगे। खासकर पहली बार वोट डाल रहे मतदाता सौ फीसदी निर्णायक होंगे। इससे इस बात का भी पता चलता है कि मोदी की सभाओं में भीड़ कहां से आ रही है। इन युवाओं का रूझान मोदी की तरफ ज्यादा दिखाई देता है। मोदी ने भी अपने हर भाषण में 5 से 10 मिनट तक का समय इन युवाओं को भविष्य से सपने दिखाने में खर्च किया है।


बढ़ा हुए वोट में 9 फीसदी फस्र्ट टाइम वोटर
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देश में मोटे तौर पर 84 करोड़ मतदाता हैं। इसमें 12 करोड़ यानी लगभग साढ़े 14 फीसदी नए मतदाता या फस्र्ट टाइम वोटर है। इस आंकडें को दूसरी तरह से समझने के लिए पिछले लोकसभा चुनाव के दो आंकडों को देखें। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 12 करोड़, भाजपा को 8 करोड़ और बसपा को ढाई करोड़ वोट मिले थे। यानी पिछले चुनाव में कांग्रेस को जितने वोट मिले थे उतने फस्र्ट टाइम वोटर इस चुनाव में बढ़ गए हैं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु को अगर छोड़ दे तो देश में औसत 8 से 10 फीसदी प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ है। यह मतदान राज्यों में नए वोटरों की बढ़ोतरी के अनुपात में ही हुआ है। यानी सीधा-सीधा अनुमान यह है कि बढ़ा हुआ औसत 9 प्रतिशत वोट खासकर हिन्दी हार्टबेल्ट में फस्र्ट टाइम वोटर का है। इसका एक बड़ा हिस्सा मोदी के खाते में जाने का अनुमान है।

कुल 55. 5 करोड़ मतदाताओं ने डाले वोट
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इस बार लोकसभा चुनाव में कुल 66 प्रतिशत वोटिंग हुआ है। यह अब तक के चुनाव में सर्वाधिक हैं। इससे पहले 1984 में इंदिरा गांधी के निधन के बाद सर्वाधिक 64 प्रतिशत वोट पड़े थे। यदि हम इस बार के वोटिंग प्रतिशत को वोटों की कुल संख्या में बदलें तो इस बार लगभग 55. 5 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले हैं। एक्जिट पोल के औसत के मान से भाजपा का वोट प्रतिशत 30 से 32 और एनडीए का 36 से 38 प्रतिशत तक जाने का अनुमान है। कांग्रेस को 20 से 22 और यूपीए को 26 फीसदी वोटों का अनुमान है। अन्य दलों को 36 से 38 फीसदी वोटों का अनुमान है। यानी भाजपा नीत एनडीए को लगभग 10 से 12 फीसदी की बढ़त।
वोटों की संख्या में बात करें तो भाजपा को 17. 5 करोड़ के अधिक, एनडीए के सहयोगियों को 2 से 2. 5 करोड़ से बीच वोट मिलेंगे। यानी एनडीए बीस करोड़ वोटों के आस-पास रहेगा।
कांग्रेस को १2 करोड़ और उनके सहयोगियों को 2 से 2. 5 करोड़ से बीच वोट मिलेंगे। बसपा और आम आदमी पार्टी को भी दो से ढाई करोड़ वोट मिल सकते हैं। कांग्रेस 14 करोड़ वोटों के आस पास रह सकती है। अगर नेगेटिव स्ंिवग ज्यादा गया खासकर, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के संदर्भ में देखें तो इसमें भी 2 करोड़ वोटों का नुकसान भी हो सकता है।
अन्य दलों को लगभग 16 करोड़ वोट मिलने का अनुमान है। 

वोटों का स्विंग
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१. 2009 के चुनाव में भाजपा औ कांग्रेस के वोटों का अंतर यानी 4 करोड़ वोट।(12 करोड़ -8 करोड़ = ४ करोड़)
२. 2014 के एक्जिट पोल के औसत प्रतिशत के आधार पर इस बार भाजपा और कांग्रेस के वोटों का अंतर 5. 5 करोड वोट। (17. 5 करोड़ -12 करोड़ = 5. 5 करोड़)
३. अगर हम 2014 और 2009 के वोटों का अंतर निकालेंगे तो स्विग आ जाएगा। यह स्विंग लगभग 1. 5 करोड़ वोटों का होगा।
नोट- ये सिर्फ भाजपा और कंाग्रेस के आंकडें हैं। यूपीए और एनडीए के सहयोगी दलों के वोटों की संख्या स्विंग में शामिल नहीं है। कारण की गठबंधन में दलों के लगातार बदलाव से इनकी गणना काफी कठिन हो रही है।

शनिवार, 10 मई 2014

लालकिले से (भाग-97) - एक तरफा फैसलों से प्यादा आयोग के प्यादों में दो फाड़, नाराज होकर बाहर निकला एक प्यादा तब जाकर काशी में नियुक्त हुआ विशेष पर्यवेक्षक


कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी को पूर्ण बहुमत से रोकने के लिए अंतिम शस्त्र के 

तौर पर प्यादा आयोग को किया आगे
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कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी को पूर्ण बहुमत से रोकने के लिए अब प्यादा आयोग में अपने कुछ प्यादों को आगे कर दिया है। इससे प्यादा आयोग में दो फाड़ हो गए हैं। इसमें एक प्यादा सीनियर प्यादे की एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज हैं। दो बड़े प्यादों में विवाद का कारण बूथ केप्चरिंग की घटनाओं की अनदेखी, किसी एक दल के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करना, मोदी को अपने ही चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने से रोकने जैसे विषय थे। इस बैठक में अपने सीनियर के अडियल रवैये को देखते हुए दूसरे प्यादे ने अपने गुस्से का इजहार किया और वे बैठक से बाहर निकल गए। इस नाराजगी के बाद बनारस में विशेष पर्यवेक्षक की नियुक्ति की गई। इस प्यादे का कहना है कि अगर आयोग ऐसे ही काम करता रहा तो हम जनता को क्या मुंह दिखाएंगे। प्यादों के विवाद की लीपापोती करने के लिए खुद एक सीनियर प्यादा खुद बाहर आया। मीडिया ने भी इस खबर को लगभग दबा ही दिया। यहां उल्लेखनीय है कि प्यादा आयोग के दो प्यादे पूर्व में उर्जा सचिव रह चुके हैं और उनमें से एक का नाम कोयला घोटाले से भी जुड़ रहा है। सूत्रों का कहना है कि कोयला घोटाले से बचाने का उपकार वे इस चुनाव में कांग्रेस को चुका रहे हैं।

प्यादा आयोग पर इसलिए उठ रही हैं अंगुलिया
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१. पूर्वी यूपी के माफिया डान मुख्यात अंसारी को चुनाव प्रचार करने के लिए शनिवार की शाम आगरा जेल से पैरोल पर छोड़ा गया। जब चुनाव प्रचार ही थम गया तो फिर प्रचार के लिए छोडऩे का क्या औचित्य। मलबल साफ है कि बूथ कैप्चरिंग और वोटिंग के लिए लोगों को डराने-धमकाने के लिए उसे छोड़ा गया है। प्यादा आयोग क्यों मौन है।
२. जिस इलाके में सुरक्षा कारणों से नरेन्द्र मोदी को रोड शो और सभा की अनुमति नहीं दी उस इलाके में राहुल गांधी और अखिलेश यादव को रोड शो की अनुमति कैसे मिल गई। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राहुल की सुरक्षा नरेन्द्र मोदी से भी एक पायदान उपर की है।
३. देश में सवा करोड़ मतदाताओं के नाम मतदाता सूचियों से गायब। खाली प्यादा आयोग की माफी से काम नहीं चलेगा। दोषियों पर कार्रवाई कौन करेगा।
४. अमेठी में राहुल मतदान केन्द्र में घुसने के मामले में दोषी नहीं है यह खुद एक आला प्यादे ने खुद मीडिया को बताया। राहुल को क्लिन चिट देने की इतनी जल्दी क्यों थी।
५. बिहार, यूपी और पश्चिमी बंगाल में में बूथ कैप्चरिंग की सैकड़ों घटनाओं के बाद भी गिनती की ही सीटों पर पुर्नमतदान।
६. मध्यप्रदेश में चार बड़े कांग्रेस नेताओं को हार से बचाने के लिए उनके जिलों के निर्वाचन अधिकारियों को आनन-फानन में बदला गया।ं
७. बिहार में कई स्थानों पर हजारों मतदाताओं को वोट नहीं डालने दिया गया।
८. जम्मू कश्मीर के एक सितारा होटल में ईवीएम मशीनों से छेडछाड़।
९. नेताओं के बयानों के मामले में एक समान कार्रवाई नहीं।

लालकिले से (भाग-96) - ब्रह्मराक्षस, तुलसीदास, संकटमोचन हनुमान मंदिर और काशी की कथा





बात तब की है जब गोस्वामी तुलसीदास मात्र तुलसी हुआ करते थे। रोज वन जाते और नित्यकर्म से निवृत होकर आते। वापसी में वे लोटे में बचा हुआ पानी नियमित रूप से एक पेड़ की जड़ों में डाल देते। महीनों से यह क्रम जारी था। उस पेड़ पर एक ब्रह्मराक्षथ रहता था। लगातार पानी मिलने से एक दिन वह प्रसन्न हो गया और तुलसी के सामने प्रकट हो गया। उसने कहा तुम महीनों से बिना स्वार्थ से इस पेड़ में पानी डालकर मुझे तृप्त करते रहे। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, जो मांगना चाहते हो मांग लो मैं तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी कर दूंगा। तुलसी पहले तो ब्रह्मराक्षस से डरे और फिर कुछ संभलकर बोले कि - अगर तुम देना ही चाहते तो मुझे प्रभु राम से साक्षात्कार करवा दो।

तुलसी की बात सुनकर ब्रह्मराक्षस भी संकोच में पड़ गया और बोला कि- तुमने मुझसे जो मांगा है वह मेरी शक्ति और सामथ्र्य से बाहर है। अगर मैं इतना सामथ्र्यवान होता खुद उनके दर्शन कर मुक्ति पा लेता। लेकिन ब्रह्मराक्षस हंू मैं, तुम्हें खाली हाथ तो जाने नहीं दूंगा, इसलिए मैं तुम्हें प्रभु श्रीराम तक पहुंचने का मार्ग बतलाता हूं। ऐसा करो जहां भी प्रभु श्रीराम की कथा हो वहां जाओ और देखो कि वहां सबसे पहले कौन आता और सबके बाद कौन जाता है। उसे पहचान कर उसके पैर पकड़ लेना। वे कोई नहीं महावीर बजरंगबली हुनुमान होंगे। वेही तुम्हें भगवान राम से साक्षात्कार करवा सकते हैं। ब्रह्मराक्षस ने कहा कि विद्वान ब्राह्मण की भटकती आत्मा ब्रह्मराक्षस की योनि में प्रवेश कर जाती है। मैं भी इसी योनि में भटक रहा हूं। ब्राह्मण भले ही कि तनी ही कमतर योनि में क्यों न हो वह जगत के कल्याण का मार्ग अंतत: प्रशस्त कर ही देता है।

ब्रह्मराक्षस की बात सुनकर तुलसी वहां से चल दिए रामकथा स्थल की खोज में। खोज करते-करते काशी नगरी में पंहुच गए। एक स्थान पर राम कथा हो रही है। वे कथा स्थल पर कथा आरंभ होने से काफी पहले आ जाते और खत्म होने के बाद ही जाते। दो तीन तक यही क्रम जारी रहा। आखिरकार एक दिन उन्होंने ढंूढ ही लिया कि कंबल ओढ़े हुए एक बूढ़ा ब्राह्मण सबसे पहले आता है सबसे बाद में जाता है। एक दिन उसका पीछा किया, पर ब्राह्मण हाथ में नहीं आया, दूसरे दिन भी यही हुआ। तीसरे दिन आखिर वे उस ब्राह्मण के पास पंहुचने में सफल हो ही गए। पास पंहुचते ही उस ब्राह्मण के पैर से ऐसे लिपटे जैसे शहद से मुधमक्खी। और बोले प्रभु रामभक्त हनुमान मैंने आपको पहचान लिया है। मैं आपकी शरण में हूं। मेरा कल्याण करो। जब तक प्रभु हनुमान ने उन्हें उठाकर अपने गले नहीं लगा लिया तब तक वे प्रभु के पैरों में ही गिरे रहे।




ब्राह्मण वेशधारी हनुमानजी महाराज ने अंतत: उन्हें वानराधीश के रूप में दर्शन दिए और बोले भक्त मै तुमसे प्रसन्न हूं। क्या इच्छा है तुम्हारी। तब तुलसी बोले प्रभु मुझे अपने प्रभु राम का साक्षात्कार करवा दो। तब गंगा किनारे और शिव के त्रिशूल की नोंक पर बसी काशी नगरी में हनुमानजी ने तुलसी को भगवान रामचंद्र के दर्शन करवाए। रामजी ने तुलसी की भक्ति से प्रसन्न होकर अपने अवतरण की कथा खुद उन्हें अपने मुखारविंद से सुनाई। इसी कथा को लिखकर तुलसी तुलसीदास बनकर अमर हो गए। भगवान के मुख से निकले रामायण के शब्द महापातकनाशनं माने गए हैं। तुलसी को जिस स्थान पर भगवान हुनमान ने दर्शन दिए थे वह स्थान है काशी, वाणारसी या बनारस का
संकटमोचन हुनमान मंदिर।

लालकिले से (भाग-95) - नरेन्द्र मोदी तेली नहीं मोड़ घांची समुदाय के हैं और मंडल/बक्षी आयोग की सिफारिश के बाद इसे 25 जुलाई 94 को ओबीसी में किया गया था शामिल

जिस मंडल के खिलाफ लालकृष्ण आडवाणी ने कमंडल (रथयात्रा) यात्रा निकाली थी उसके सारथी नरेन्द्र मोदी ही थे और उसी मंडल की राजनीति से उन्हेंआज यूपी और बिहार में अपना जनाधार बनाने में मदद कर रही है।



प्रियंका गांधी के नीच राजनीति वाले बयान और उस पर नरेन्द्र मोदी के पलटवार से जाति आधारति राजनीति का मुद्दा गरमा गया है। मोदी कई बार सभाओं में स्वयं का पिछड़ी जाति का बता चुके हैं। नीच राजनीति के बयान के बाद बहन मायावती भी उनसे उनकी जाति पूछ चुकी हैं। वे यूपी में ये प्रचार कर रही हैं मोदी तेली जाति से पिछड़ा वर्ग में आते हैं। दरअसल मोदी मोदी मोड घांची समुदाय के हैं। बक्षी आयोग की सूची के तहत 25 जुलाई 94 को उनके समुदाय को गुजरात में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया। बाद में मंडल आयोग के बाद इस सूची को अपडेट किया गया। बड़े की आश्चर्य की बात है कि जिस मंडल के खिलाफ लालकृष्ण आडवाणी ने कमंडल (रथयात्रा)यात्रा निकाली थी उसके सारथी नरेन्द्र मोदी ही थे और उसी मंडल की राजनीति उन्हेंआज यूपी और बिहार में अपना जनाधार बनाने में मदद कर रही है।
दरअसल मोदी के घांची समुदाय के लोग छोटे-मोटे व्यापार चाय की दुकान, छोटी कि राने की दुकान, सिलाई जैसे छोटे धंधों में लगे रहते हैं। सूरत शहर में इनका खास असर और संख्या है। सूरत में ये लोग अब अपने आप को मोड़ वणिक कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं। जिस आदेश के तहत मोदी की जाति को ओबीसी का दर्जा मिला है उसके ठीक एक स्थान पहले तेली जाति को यह दर्जा मिला हुआ है इसलिए मायावती उन्हें यूपी में तेली जाति का बताने का अभियान छेड़ा हुआ है।
आज कांग्रेस प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने भी उन पर आरोप लगाया कि वे नकली ओबीसी हैं और मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जाति को ओबीसी में शामिल करवाया। उनका आरोप है कि 1 जनवरी 2002 के आदेश में जिस घांची जाति को ओबीसी में शामिल किया गया है वे मुस्लिम घांची हैं। दरअसल मोदी की जाति मोड़ घांची को 94 में ही ओबीसी में शामिल किया गया। गुजरात में ओबीसी के लिए बने बक्षी आयोग की सूची शायद उन्होंने नहीं देखी। बक्षी आयोग की सिफारिशों के बाद भी कई जातियां ओबीसी में शामिल की गईं हैं। संघ ने गुजरात में ओबीसी और जनरल वोटों के काम्बीनेशन से ही कांग्रेस की खाम थ्योरी यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम के जोड़ को कमजोर किया था।
संलगन पत्र के दूसरे पेज में मोड़ घांची जाति का उल्लेख है।

लालकिले से (भाग-94) - नेहरू-गांधी और संघ परिवार में पहली बार आर-पार

1963 की गणतंत्र दिवस परेड में संघ के साढ़े तीन हजार स्वयंसेवकों ने बैंड के साथ राजपथ पर मार्च किया।
नेहरू-गांधी परिवार
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समझौता ब्लास्ट, मालेगांव ब्लास्ट और हिन्दू आंतकवाद के नाम पर संघ को घेरा जाने लगा। इससे संघ विचलित होने लगा था लेकिन उसने धैर्य बनाए रखा। इसके बाद जैसे ही कांग्रेस ने लक्षित सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने का प्रयास किया संघ का धैर्य जवाब दे गया। संघ का मानना था कि यह बिल हिन्दुओं को अपने ही देश में कमजोर कर देगा। इसलिए उसने इस लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को आगे किया है।
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देश की आजादी के बाद यह पहला मौका है जबकि संघ परिवार और नेहरू-गांधी परिवार में आर-पार की लड़ाई शुरू होग गई है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और पूर्व संघ प्रचार नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में गांधी परिवार को जिस तरह से निशाने पर लिया है इससे पहले किसी ने नहीं लिया। दरअसल यूपीए की सरकार के आने के बाद केन्द्र सरकार जिस तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेन्डे पर गई, हिन्दू आतंकवाद और लक्षित सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने की तैयारी दिखाई उससे संघ को लग गया कि यह हिन्दुओं के हितों के खिलाफ है। इसलिए उसने नरेन्द्र मोदी को आगे कर अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया है और कांग्रेस भी इसी कोशिश में है कि भले ही एनडीए की सरकार बन जाए पर मोदी किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए।
गुरूजी
संघ और जनसंघ व्यक्तिगत हमलों से सदा बचे
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गांधीजी हत्या के बाद 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कानूनी रूप से प्रतिबंध साबित नहीं किया जा सका और नेहरू सरकार को झुकना पड़ा। प्रतिबंध स्वत: ही वापस हो गया। समय बीतता गया संघ और नेहरू परिवार में एक समझ विकसित हो गई। इसके दो कारण थे। नेहरू और संघ के प्रमुख लोगों का ब्राह्मण होना और दूसरा कमला नेहरू के आध्यात्मिक गुरू के स्ंाघ प्रमुख माधव शदाशिव गोलवलकर गुरूजी से अच्छे संबंध। सजातीय होने और गुरू के संबंधों के कारण दोनों परिवार में एक आपसी समझ विकसित हो गई थी। इसी कारण संघ या उसके राजनीतिक संगठन जनसंघ के नेताओं ने कभी भी नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ विरोध में शिष्टता और सीमा का ध्यान रखा। विरोध मुद्दों का किया जाता था परिवार का नहीं। इस बीच भारत- चीन युद्ध छिड़ गया। इस दौरान संघ ने सिविल डिफेंस और घायल सैनिकों की मदद के लिए सेना का कंधे से कंधा मिलाया। इससे पं नेहरू प्रभावित हुए कि उन्होंने 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए संघ को भी आमंत्रण दे डाला। संघ के साढ़े तीन हजार स्वयंसेवकों ने बैंड के साथ राजपथ पर मार्च किया। इससे दोनों परिवारों में समझ और बढ़ी
राजीव गांधी और राव तक सब ठीक चला
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नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने भी इस समझ को बरकरार रखा और राजीव गांधी ने भी। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में संघ ने इंदिरा की नीतियों का विरोध किया लेकिन वह उन पर व्यक्गित हमलों से बचता रहा। इसके बाद जनसंघ भी भाजपा में बदल गया। तब भी अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस शिष्टता की सीमा को बनाए रखा। जब मंडल के बाद समाज बिखराव की ओर था तो इस बिखराव को रोकने के लिए संघ ने १९९१ के लोकसभा चुनाव में गुप्त तौर पर कांग्रेस का साथ दिया। इसी कारण नरसिंहाराव की अल्पमत सरकार बनी और भाजपा के सार्थक सहयोग से पूरे पांच साल भी चली।
सोनिया के कमान संभालने के बाद रिश्तों में आई खटास
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सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने और खासकर 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद नेहरू-गांधी और संघ परिवार के संबंधों में खटास आनी शुरू हुई। इसका पहला कारण था कि सोनिया संबंधों की उस भावना को कभी नहीं समझ पाईं जिसकी कि नींव ब्राह्मणवाद के आधार पर रखी गई थी कारण कि वे आज भी ईसाई धर्म को मानती हैं। दूसरा कारण कि सोनिया के आने और अहमद पटेल के उनके राजनीतिक सचिव बनने के बाद कांग्रेस ईसाई और मुस्लिम तुष्टिकरण के हाई मोड पर चली गई। समझौता ब्लास्ट, मालेगांव ब्लास्ट और हिन्दू आंतकवाद के नाम पर संघ को घेरा जाने लगा। इससे संघ विचलित होने लगा था लेकिन उसने धैर्य बनाए रखा।

सांप्रदायिक हिंसा बिल से संघ का धैर्य टूट गया
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इसके बाद जैसे ही कांग्रेस ने लक्षित सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने का प्रयास किया संघ का धैर्य जवाब दे गया। संघ का मानना था कि यह बिल एकतरफा हिन्दुओं को अपने ही देश में कमजोर कर मुस्लिमों और इसाईयों को इस देश में इतना ताकतवर बना देगा कि हिन्दु अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। तब संघ को लगा कि अगर अब भी चुप रहे तो हिन्दुओं के हितों की रक्षा करना मुश्किल हो जाएगा और संघ कमजोर होगा सो अलग। तब यह भी बात सामने आई कि अभी तक नेहरू-गांधी परिवार का खुला विरोध नहीं करने का संघ परिवार का फैसला सही नहीं था।
इसलिए नेहरू-गांधी परिवार पर मोदी ने किया टार्गेट
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इसलिए संघ ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा में घोर विरोध के बाद भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनवाया। संघ के वर्तमान प्रमुख मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी संघ में साथ-साथ ही आए थे। दोनों की आपसी समझ बेहतर है। इसीके साथ संघ ने मोदी के मार्फत नेहरू-गांधी परिवार को निशाना बनाना शुरू किया। सरदार पटेल का मुद्दा उठाकर नेहरू का कद छोटा करने का प्रयार किया। आपातकाल के नाम पर इंदिरा गांधी को घेरा। सोनिया और राहुल गांधी को तो नरेन्द्र मोदी ने खुलकर निशाने पर ले रखा है। सोनिया गांधी को भी लग गया था कि कि नेहरू-गांधी परिवार की राजनीति गद्दी को सबसे बड़ी चुनौती मोदी ने ही दी है और उनके एजेंडे की राह में सबसे बड़ी बाधा नरेन्द्र मोदी हैं। इसी कारण पिछले पांच सालों से मोदी को टार्गेट किया जा रहा है। मोदी ने भी चुनावी सभाओं में गांधी-नेहरू परिवार को जितना निशाने पर लिया है आज से पहले कभी नहीं लिया। खैर संघ के लिए यह कड़े इंतिहान की घड़ी है। अभी नहीं तो कभी
नहीं।

लालकिले से (भाग-93) - गुजरात के विकास माडल पर खुद यूपीए सरकार ने लगा दी मोहर, राहुल गांधी का टाफी माडल वाला हथियार छिना


केन्द्रीय वाणिज्य एंव उदयोग मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि

गुजरात का भूमि अधिग्रहण माडल सबसे अच्छा, अन्य राज्य भी कर 

सकते हैं इसका अनुसरण, पर्यावरण क्लियरेंस की पालिसी भी बेहतर।


कां
ग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पास गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर हमला करने करने के लिए एक मात्र हथियार था टाफी माडल। टाफी माडल (यानी 1 रूपए वर्ग मीटर में) के जरिये वे गुजरात में अडानी और टाटा को सस्ती जमीनों के मामलों में मोदी को घेरते थे। अब उन्हीं की कांग्रेस पार्टी की अगुआई वाली यूपीए सरकार के एक मंत्रालय ने उनसे उनका यह हथियार छीन लिया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट ने गुजरात के भूमि अधिग्रहण मॉडल की न सिर्फ तारीफ की है वरन उसे सबसे अच्छा बताया है। साथ में रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया गया है कि अन्य राज्य भी अपने यहां उद्योगों और निवेश को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय आवश्यकताओं के हिसाब से इस लागू कर सकते हैं। इस रिपोर्ट में योजना आयोग, सीआईआई & केपीएमजी, पिक्की & ब्रेन रिपोर्ट की तुलना कर संयुक्त तौर पर प्रेक्टिली तौर पर सही निष्कर्षों को सामने लाया गया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी जमीन अधिग्रहण के गुजरात माडल को श्रेष्ठ बताते हुए कहा था कि अन्य राज्य भी इसके अनुसार नीति बना सकते हैं।

गुजरात की नीति सरल और प्रेटिकल, सरकारी हस्तक्षेप कम
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औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) की ओर से एडवाजरी फर्म एक्सेंचर ने यह रिपोर्ट तैयार की। इसमें कहा गया है कि अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में गुजरात इंड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट कारर्पोरेशन (डीआईपीपी) का माडल सरल और प्रेक्टिकल है। गुजरात में जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया बहुत ही सरल है। इसमें सीधा सरकारी हस्तक्षेप बहुत ही कम है। एक उद्यमी को कम बाधाओं के साथ तेजी से भूमि अधिग्रहण में जीआईडीसी पूरी मदद करता है।


प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रक्रिया की सराहना 
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रिपोर्ट में पर्यावरण संबंधी मंजूरियों के मामले में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया की सराहना की गई है। इसमें क्लियरेंस के लिए बनाई गए सिस्टम की सराहना की गई है। इसके अलावा लेबर मेनेजमेंट और इनवेस्टमेंट से जुड़़े मुद्दों पर कर्नाटक और महाराष्ट्र में उत्कृष्ट व्यवस्था की भी चर्चा की गई है।

पारदर्शी नीति और सिंगल विंडो का कमाल
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दरअसल पारदर्शी नीति, सिंगल विंडों सिस्टम और सारी व्यवस्था आनलाइन होने से गुजरात का भूमि अधिग्रहण और इनवाइरमेंट क्लियरेंस का माडल हिट है। इसके अलावा पूरे गुजरात में रोड, बिजली, पानी, रोजगार और महिला सुरक्षा की स्थिति भारत के किसी भी राज्य से बेहतर है। सौ फीसदी तो नहीं कह सकते पर विशेष योगयता वाले 75 फीसदी अंक तो दिए ही जा सकते हैं।
http://dipp.nic.in/English/Publications/Reports/improve_BusinessEnvironment_06May2014.pdf

सोमवार, 5 मई 2014

लालकिले से (भाग-92) - स्नूपगेट कांड में राष्ट्रपति भवन के संकेत के बाद कांग्रेस बैकफुट पर, जज की नियुक्ति का फैसला नई सरकार पर छोड़ा


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इन दस कारणों से स्नूपगेट कांड में कांग्रेस का पक्ष हुआ कमजोर
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राष्ट्रपति भवन के संकेतों के बाद केन्द्र की यूपीए- 2 सरकार ने नई सरकार के गठन के मात्र 2 सप्ताह पहले स्नूपगेट कांड की जांच के लिए जज की नियुक्ति का इरादा छोड़ दिया है। कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि अब नई सरकार ही इसंपर फैसला करेगी। यूपीए के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और नेशनल कान्फ्रेंस ने भी सरकार के इस कदम को गलत बताया था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने बाकायदा इसके लिए प्रधानमंत्री डा मनमोहनसिंह से टेलीफोन पर बात भी की थी। चुनाव आयोग भी जज की नियुक्ति के बारे में हरी झंडी दे चुका है।
इससे पहले चुनाव की घोषणा से पहले 6 बिलों को अध्यादेश की शक्ल में लाने और सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने के कांग्रेस के अरमानों पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पहले दो बार भी पानी फेर चुके हैं। दरअसल स्नूपगेट कांड में कांग्रेस को इन राजनीतिक और कानूनी पेचों के कारण पीछे हटना पड़ा।

राजनीतिक कारण : अल्पमत सरकार फैसले नहीं ले सकती
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१. चुनाव घोषित होने के बाद केन्द्र सरकार सिर्फ रोजमर्रा के साधारण काम-काज ही कर सकती है। उसे बड़े या नीतिगत फैसले लेने का अधिकार नहीं है। अगर अल्पमत और गठबंधन की सरकार हो तो उसके अधिकार तो और भी कम हो जाते हैं।
२. राष्ट्रपति भवन से भी इसी आशय के संकेत मिलने के बाद कांग्रेस के पास कोई और रास्ता शेष नहीं बचा था।
३. चूंकि यूपीए के दो घटक दल ही इसका विरोध कर चुके थे। इसलिए भी कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा। ये दोनों दलों ने अगली सरकार (संभवत: एनडीए ) में अपनी संभावनाओं को बनाए रखने के मोदी के खिलाफ जज की नियुक्ति का विरोध किया।
४. लोकतंत्र में स्थापित परंपराओं के अनुसार चुनाव प्रक्रिया के दौरान सरकार नीतिगत फैसले नहीं करती है।
५. अगर अगली सरकार एनडीए की बनी तो कैबिनेट के पास उसी तरह से इस आयोग को भंग करने का अधिकार था जैसे कि इसे बनाया गया था।

कानूनी उलझनें : फिर से कैबिनेट की बैठक नहीं बुला सकते थे
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निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा ने प्रशांतभूषण के माध्यम से स्नूपगेट कांड की सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाते हुए कहा कि इसमें से मोदी पर किसी लडक़ी की जासूसी के आरोप को हटायें अन्यथा वे इस याचिका की सुनवाई नहीं करेंगे।
१. इसी कारण स्नूपगेट कांड की जांच करने से पहले केन्द्र सरकार को भी मोदी के नाम के आरोप जांच से हटाने पड़ते और मात्र जासूसी की जांच होती। यानी मोदी को घेरने की कांग्रेस की कोशिश नाकाम हो        जाती।
२. चूंकि कांग्रेस जांच किसी रिटायर्ड जज से करवाना चाहती थी और किसी रिटायर्ड जज ने इस राजनीतिक मामले में रूचि नहीं ली इसलिए कांग्रेस ने इसकी जांच किसी मौजूदा जज से कराने का फैसला                किया।
३. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मोदी का नाम हटाने और मौजूदा जज से जांच कराने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाकर आयोग स्थापना की शर्तों और उददेश्यों में परिवर्तन करना होता। आचार संहिता लगी होने के कारण केन्द्र सरकार ऐसा नहीं कर सकती थी। विशेष परिस्थितियों में चुनाव आयोग की अनुमति से फैसले लिए जाते हैं।
४. चूंकि कांग्रेस राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा कर रही थी इसलिए भी चुनाव आयोग कैबिनेट के नए फैसले को किसी भी हालत में मंजूरी नहंी देता। 
५. आयोग गठन के फैसले के पांच महीने बाद तक रिटायर्ड जज की नियुक्ति नहीं कर पाना।

रविवार, 4 मई 2014

लालकिले से (भाग-91) - स्नूपगेट का सच- मोदी पर किसी लडक़ी की जासूसी के अपमानजनक आरोप को याचिका से हटाएं अन्यथा सुनवाई नहीं- सुप्रीम कोर्ट (17 जनवरी 2014)


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स्नूपगेट वाली महिला से संबध बताने पर सुप्रीम कोर्ट निलंबित 


आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को एक बार नहीं पूरे दो बार 

फटकार लगा चुका है।
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जिस स्नूप गेट कांड में कांग्रेस भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी को फंसाने की कोशिश कर रही है या जिस लडक़ी से नरेन्द्र मोदी की नजदीकी बताने की कोशिश कर रही है उसी लडक़ी से नरेन्द्र मोदी के संबंध जोडऩे पर गुजरात के निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को दो बार सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुकी है।


पहली फटकार - 2011 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में प्रदीप शर्मा ने कहा था कि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप इसलिए लगाए गए है कि वे इस लडक़ी से मोदी की नजदीकियों के बारे में जानते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका से यह पैरा हटाने का निर्देश दिया था। उल्लेखनीय है कच्छ के भूकंप पुनर्वास के मामले में गड़बडिय़ों के चलते गुजरात सरकार ने 2008 में शर्मा को निलंबित कर दिया था। उन्हें खुद को निर्दोष साबित करने के लिए मोदी को कठघरे में साबित करना ही था। जब सुप्रीम कोर्ट में पहला दांव खाली गया तो उन्होंने कान घुमाकर पकड़ा। यानी कोबरा पोस्ट और गुलेल की मदद से जासूसी की खबरें चलवाईं।

दूसरी फटकार -18 जनवरी 2014 को प्रदीप शर्मा और आप ने नेता और वकील प्रशांत भूषण 
ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्नूपगेट कांड की सीबीआई जांच की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण और प्रदीप शर्मा को लताड़ते हुए कहा कि वे नरेन्द्र मोदी पर किसी लडक़ी की जासूसी करने का अपमानजनक आरोप याचिका से हटाएं अन्यथा इस पर सुनवाई नहीं होगी। शर्मा मोदी पर आरोप लगाकर अपने पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को हल्का करवान चाहते थे ताकि उन्हें राहत मिल सके।

मोदी पर पुस्तक साजिश की कहानी, तथ्यों की जुबानी लिखने वाले संदीप देव अपनी पुस्तक में बताते हैं कि प्रदीप शर्मा ने उस लडक़ी की अश्लील सीडी बनवाई थी। इसका जिक्र उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में भी किया था। शर्मा इस सीडी के आधार पर लडक़ी को ब्लेकमेल कर रहे थे। इसके बाद लडक़ी ने सीडी वाली बात अपने पिता को बताई। चूंकि उसके पिता संघ से जुड़े हुए और मोदी के करीबी थे इसलिए उन्होंने मोदी से गुहार लगाई कि- मेरी बेटी को प्रदीप शर्मा से बचाएं। इस पर मोदी ने खुद जांच आरंभ करवाई। दोनों के फोन सर्वलेन्स पर रखे गए। इसे नाम दे दिया गया जासूसी कांड। इसके बावजूद मोदी ने इसकी जांच के लिए खुद एक आयोग बना दिया।
http://www.thehindu.com/news/national/snoopgate-delete-allegations-against-modi-says-sc/article5586563.ece

लालकिले से (भाग-90) - स्नूपगेट हुआ बूमरेंग- कांग्रेस समर्थित निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा आएंगे चपेट में


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प्रदीप शर्मा की हरकतों पर नजर रखने के लिए दोनों के  

फोन थे सर्वलेन्स पर
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स्नूपगेट कांड में कांग्रेस के लिए बुरी खबर है। गुजरात सरकार की ओर से बनाए गए जांच आयोग से समक्ष युवती ने पेरिस से आकर बयान दे दिए हैं। इस बयान की कापी राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भेजी गई है। दिल्ली खबरपालिका में चल रही अपुष्ट चर्चाओं के अनुसार लडक़ी ने आयोग के समक्ष यह कहा है कि उसे पता है कि उसका फोन सर्वलेन्स पर है। ऐसा इसलिए किया गया कि उसे राज्य के एक आईएएस अफसर प्रदीप शर्मा से (अब निलंबित) से खतरा था। वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसे किसी भी कीमत पर प्रभावित करना चाह रहे थे। उल्लेखनीय है कि यह मामला सामने आने के बाद युवती परिवार के साथ पेरिस चली गई थी। इस बयान के बाद इस निलंबित अधिकारी पर हरेसमेंट का केस चल सकता है। कौन सा हरेसमेंट आप समझ ही सकते हो। नए कानून के तहत यह गैर जमानती अपराध है। यानी प्रदीप शर्मा और उस युवती का फोन इसलिए सर्वलेन्स पर था जिससे कि प्रदीप शर्मा की हरकतों पर नजर रखी जा सके। यह मामला सामने आने के बाद युवती अपने पति के साथ पेरिस चली गई है। पेरिस में लडक़ी का भाई बड़ा कारोबारी है।
इस मामले में खोजी पोर्टल गुलेल और कोबरा पोस्ट ने अपने कथित स्टिंग में कुछ टेपों के आधार पर खुलासा किया था कि अमित शाह ने नरेन्द्र मोदी के लिए 62 दिनों तक जासूसी की थी। इन टेपों में नरेन्द्र मोदी का नाम नहीं था।
सिर्फ अनुमान के आधार पर गुलेल और कोबरा पोस्ट ने नरेन्द्र मोदी का नाम लिया था। रिकार्डिंग में कहीं भी नरेन्द्र मोदी के नाम का जिक्र नहीं है। सिर्फ साहेब का जिक्र है। कानूनी तौर पर साहेब नाम के आधार पर मोदी के नाम का निष्कर्ष निकालना गलत है। गुजरात के सर को साहेब कहते हैं। वह कोई भी हो सकता है। वह मोदी ही है इसके कोई सबूत नहीं हैं।

मोदीनामा की लेखिका मधु किश्वर ने एक चैनल पर बहस के दौरान कहा था कि- मेरी जानकारी है कि भुज पुनर्वास में एक प्रोजेक्ट दिलवाने के बदले प्रदीप शर्मा उस लडक़ी का नाजायज फायदा उठाना चाहते थे।
अगर कांग्रेस मोदी के खिलाफ केन्द्र का जांच आयोग बैठाती है तो केन्द्र में सरकार बनने की दशा में भाजपा इस आदेश को रद्द भी कर सकती है। इसका आधार यह होगा कि चंूकि एक आयोग जांच कर रहा है इसलिए दूसरे आयोग की जांच की जरूरत नहीं है। यह आयोग उसी कानून से भंग किया जाएगा जिसके तहत कि इसे बनाया गया है।
क्रमश:

लालकिले से (भाग-89)- जगद्गुरू भारती तीर्थ, निश्चलालंद सरस्वती, स्वरूपानंद, जयेन्द्र सरस्वती (उत्तराधिकारी विजयेन्द्र सरस्वती) के अलावा सारे शंकराचार्य फर्जी या स्वयंभू

आदिगुरू शंकराचार्य
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मुख्य श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य हैं भारती तीर्थ महाराज, कांग्रेस समर्थित 
शंकराचार्य स्वरूपानदं सरस्वती का दो पीठों द्वारका और ज्योतिष पर 
कब्जा, अब कांग्रेस अधोक्षानंददेव तीर्थ को शंकराचार्य बनाने में लगी, 
ज्योतिष पीठ पर कब्जा कराने की योजना। 
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नकली शंकराचार्य

सोशल मीडिया और अखबार में एक खबर पढक़र चौंका कि पुरी के शंकराचार्य अधोक्षानंददेव तीर्थ नरेन्द्र मोदी के खिलाफ काशी में चुनाव प्रचार करेंगे। कांग्रेस की वेबसाइट पर भी इन शंकराचार्य का जिक्र है। कारण कि मैं पुरी, उड़ीसा की गोवर्धन पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महराज को पिछले 20 वर्षों से जानता हूं। फिल मुझे लगा कि उन्होंने अपना उत्तराधिकारी तो घोषित नहीं कर दिया। फिर गोर्वर्धन पीठ पुरी की आफिशियल वेबसाइट पर चैक किया तो तसल्ली हुइ कि पुरी के शंकराचार्य तो निश्चलानंद सरस्वती महराज ही हैं। निश्चलानंद सरस्वती तो जगदगुरू शंकराचार्य करपात्रीजी महाराज के शिष्य हैं। आदिगुरू शंकराचार्य के बाद यदि कोई परिवर्तनकारी शंकराचार्य हुए हैं तो वे करपात्रीजी महाराज। करपात्रीजी महाराज काशी के ही एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। यानी कांग्रेस मोदी विरोध के लिए एक और नक ली शंकराचार्य खड़ा कर रही है। देश में चार मूल पीठ में तीन शंकराचार्य ही है। द्वारका और बद्रिाकश्रम पीठ पर एक ही शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का कब्जा है।


     मूल दक्षिण पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य हैं    

                     भारती तीर्थ महाराज
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शंकराचार्य का मूल मठ है कर्नाटक के श्रृंगेरी में। यहां पर 820 ई में आदिगुरू शंकराचार्य ने यहां पर वैदिक धर्म के प्रसार के लिए देश में चार पीठों की स्थापना की थी। अभी यहां आदिगुरू की परंपरा में 36 वें शंकराचार्य भारती तीर्थ महाराज हैं। इनका वेद है यजुर्वेद।


पुरी पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य हैं                 

निश्चलानंद सरस्वतीमहाराज
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यह पूर्वी भारत की पीठ है। इसका नाम गोवर्धन मठ है। इसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती है।निश्चलानंद सरस्वती तो जगदगुरू शंकराचार्य करपात्रीजी महाराज के शिष्य हैं। आदिगुरू शंकराचार्य के बाद यदि कोई परिवर्तनकारी शंकराचार्य हुए हैं तो वे करपात्रीजी महाराज।   इनका वेद है ऋग्वेद।


द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती
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पश्चिम की पीठ को द्वारका या शारदा पीठ कहते हैं। इसके शंकराचार्य हैं स्वरूपानंद सरस्वती। इन पर कांग्रेस समर्थक होने का आरोप लगाया जाता है।
  इनका वेद है सामवेद।

ज्योतिष पीठ के भी स्वरूपानंद सरस्वती
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उत्तर की पीठ को बद्री ज्योतिष पीठ कहते हैं। इसके शंकराचार्य भी स्वरूपानंद सरस्वती हैं। बद्री पीठ के शंकराचार्य को लेकर 1951 से 80 तक काफी विवाद रहे हैं। इस दौरान कांग्रेस ने स्वरूपानद सरस्वती को ही यहां का शंकराचार्य बनवा दिया।
  इनका वेद है अथर्ववेद।



कांचि काम कोटि में जयेन्द्र सरस्वती, उत्तराधिकारी  विजयेन्द्र
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इसके अलावा शंकराचार्य ने दक्षिण में कांचि काम कोटि में एक और पीठ स्थापित की थी। उनकी योजना थी कि श्रृंगेरी मूल पीठ रहेगी और दक्षिण के लिए कांचि काम कोटि को पीठ बनाया जाएगा। वे दोनों जगह रहते थे। यहां के शंकराचार्य हैं जयेन्द्र सरस्वती। 
अब उन्होंने विजयेन्द्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। हत्या के मामले में जेल जाने के कारण जयेन्द्र सरस्वती काफी चर्चित रहे हैं। वहां से वे निर्दोष छूट गए। इनकी गिनती सर्वाधिक सेवा कार्य करने वाले शंकराचार्य के रूप में होती है।  

इनका वेद है यजुर्वेद।
http://www.kamakoti.org/

लालकिले से (भाग-88/3) - धारा-370 : पहली बार अपने सेकुलरिजम के हथियार से पर खुद घायल हो गए फारूख अबदुल्ला

 

धारा-370 पर पहली बार कश्मीर की हुकूमत तिलमिलाई है। इस बार उन पर उन्हीं के हथियार से जो वार किया गया है। यह हथियार है सेकुलरिज्म का। जनसंघ, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के जमाने से लेकर भाजपा तक इस मुद्दे को कानूनी नजरिये और समानता के आधार पर ही देखती रही है। श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भी धारा-370के खिलाफ दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे का नारा दिया था।

1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई।
नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।
दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।


धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।
1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई। नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।


1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई। नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।

दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।