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रविवार, 4 मई 2014

लालकिले से (भाग-88 -1) - कश्मीर पंडितों का पलायन फारूख अब्दुल्ला के शासनकाल में हुआ था शुरू


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श्यामाप्रसाद मुखर्जी के आंदोलन के 

कारण ही जम्मू कश्मीर के शासक का पद प्रधानमंत्री के बजाय मुख्यमंत्री किया गया।

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पंडितों को भगाने का जो काम शेख 
अब्दुल्ला नहीं कर पाए वो काम उनके
बेटे फारूख अबदुला ने सन 86 से 90 
तक मुख्यमंत्री रहते कर दिया।

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लगता है फारूख अबदुल्ला को नरेन्द्र मोदी को सेकुलरिज्म का पाठ पढ़ाना महंगा गया है। गए थे सेकुलरिज्म का पाठ पढ़ाने पर बदले में कश्मीरी पंडितों के पलायन का मुद्दा गले पड़ गया। सन 1986 से 90 उन्हीं की सरकार के रहते पंडित कश्मीर छोडक़र अपने ही देश में शरणार्थी बनने का मजबूर हो गए थे। नरेन्द्र मोदी ने सेकुलरिज्म और कश्मीरी पंडितों के बहाने अब्दुल्ला परिवार को निशाने पर लिया है।
दरअसल कश्मीर से पंडितों का पलायन अब्दुल्ला परिवार (शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और उमर अबदुल्ला) के कारण ही हुआ है। कश्मीरी पंडितों को यहां से कैसे भगया गया यह जानने से पहले कश्मीर के प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के बारे में जानना आवश्यक है। इससे आपको यह समझने में आसानी रहेगी कि अबदुल्ला परिवार ने जम्मू -कश्मीर को दारूल इस्लाम यानी इस्लामिक राज्य बनाने के लिए कश्मीरी पंडितों को भगाया था। पंडितों को भगाने का जो काम शेख अब्दुल्ला नहीं कर पाए वो काम उनके बेटे फारूख अबदुला ने सन 86 से 90 तक मुख्यमंत्री रहते कर दिया। शासकों का समयकाल जानने से आपको यह भी पता चलेगा कि हिन्दू प्रधानमंत्रियों और कांग्रेस के कार्यकाल में अमूमन शांति रही और नेशनल कांफ्रेंस का शासन खासकर फारूख अबदुल्ला के मुख्यमंत्री बनते ही घाटी में भारत विरोधी स्वर मुखर होते गए।


प्रधानमंत्री का पद मुखर्जी के विरोध के कारण हुआ खत्म
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1947 से 65 तक यहां के शासक को प्रधानमंत्री कहा जाता था। पहले तीन प्रधानमंत्री हिन्दू थे। जनकसिंह, रामचंद्र काक (राजसी परिवार) और मेहरचंद्र महाजन (कांगेस)। इसके बाद तीन मुस्लिम प्रधानमंत्री शेख अबदुल्ला, बख्शी गुलाम मोहम्मद, ख्वाजा शमशुद्दी (नेशनल कान्फे्रन्स) और गुलाम मोहम्मद सादिक (कांगेस) हुए। इसके बाद श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को लेकर आंदोलन छेड़ दिया कि एक देश में दो विधान (धारा 370), दो निशान (दो झंडे), और दो प्रधान (दो प्रधानमंत्री) नहीं चलेंगे। इसके बाद केन्द्र सरकार ने दो झंडे खत्म कर तिरंगे को एकमात्र ध्वज के रूप में मान्यता दी। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री के पद को भारत के अन्य राज्यों के समान मुख्यमंत्री कर दिया गया। कारण कि जम्मू कश्मीर में शासक को प्रधानमंत्री कहा जाता था। सिर्फ दो विधान यानी धारा 370 कायम रही।


फारूख के दूसरी बार सीएम बनते ही हिंसा का दौर
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इसीके साथ 1965 में कांग्रेस के गुलाम मोहम्मद सादिक प्रधानमंत्री के पद से मुख्यमंत्री (सन 65 से 71) के पद पर आए। इसके बाद कांग्रेस के सैयद मीर कासिम(सन 71 से 75) तक मुख्यमंत्री रहे। यहां तक सब ठीक था। इसके बाद नेशनल कांफेन्स के शेख अब्दुल्ला 75 से 77 और फिर 77 से 82 तक जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद उनके बेटे फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। वे दो साल तक 82 से 84 तक पद पर रहे इसके बाद गुलाम मोहम्मद शाह 84 से 86 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा। इसे बाद फिर फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री(सन 86 से 90)बने । इसके लिए अहसान दर ने 1989 में पृथकतावादी संबठन हिजबुल मुजाहिदीन का गठन किया । गठन से पहले ही इसने आरंभ कर दिया था। इसी हिंसा का परिणाम था कि कश्मीर घाटी से पंडित भागने लगे। (क्रमश:)

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