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सोमवार, 31 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-52)- यंग इडिया मांगे मोर -मंदिर नहीं रोजगार और रोटी चाहिए - ले तेरी कंठी ले तेरी माला, भूखे भजन न होई रामा (गोपाला)




संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर और पांचजन्य ने देश के चुनावी मिजाज को समझने के लिए जो सर्वे किया उसमें लोगों ने मंदिर नहीं रोटी यानी रोजगार की चिंता की है। सर्वे का शीर्षक है- यंग इडिया मांगे मोर। इसमें कुछ भी नया नहीं है। हम थे जो इसे भूल गए थे। भारतीय समाज में प्राचीन काल से दादा-परदादा के माध्यम से कई कहावतें, दोहे प्रचलित हैं। इनमें से एक दोहे के संदेश में भूखे पेट भजन नहीं करने की बात कही गई है। कहा गया है कि- ले तेरी कंठी ले तेरी माला, भूखे भ्भजन न होई गोपाला। यानी भगवत भजन के लिए पेट भरा होना चाहिए। यह शब्दानुवाद है। भावानुवाद देखें तो यह मनुष्य के लिए आवश्यक बुनिवादी सवालों की ओर भी ईशारा करता है। जवाबदारियों को निभाने का भी संकेत करता है। यानी भजन करने से पहले स्वयं के पेट से लेकर समाज के प्रति अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन करें। इसके बिना किया भजन ठाकुरजी कभी भी स्वीकार नहीं करते हैं।
यही बात संघ के सर्वे में भी सामने आई है। अगर घर में बेटे के पास रोजगार का साधन नहीं हो तो रिटायर्डमेंट के कगार पर खड़े पिता की हालत दुबले और दो आषाढ़ सी हो जाती है। अगर रोजगार योग्यता के अनुरूप नहीं हो परिवार में कई परेशानियां, विकार और मानसिक तनाव पैदा करता है।
सर्वे में रोटी-रोजी के बाद देश भर के लोगों ने 4 मुद्दों यथा- बिजली, पानी, सडक़ और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है। मतलब साफ है कि आजादी को 66 साल होने के बाद भी कांग्रेस देश को बुनियादी चीजें यथा बिजली, पानी, सडक़ और स्वास्थ्य उस अनुपात में नहीं दे पाई जिस अनुपात में उसे देना था। जहां-जहां भी खासकर राज्य सरकारों ने इस पर काम किया उन्हें व्यापक जन समर्थन मिला है। बिजली , पानी और सडक़ के मुद्दे पर 2003में कांग्रेस मध्यप्रदेश में चुनाव हारी थी। कारण कि दिग्विजयसिंह ने अपने दस साल के कार्यकाल में इन विषयों पर काम ही नहीं किया। उसके बाद कांग्रेस यहां से 2008 और 2013 में दो और विधानसभा चुनाव हार चुकी है। इसका कारण यह है कि दिग्विजयसिंह के बाद आई भाजपा सरकार ने इन विषयों पर कुछ काम किया। इस पर जनता ने उसे जनता ने हाथों हाथ लिया। यही हाल छत्तीसगढ़ का है। बिजली के क्षेत्र में वह आत्मनिर्भर ही नही वरन देश की बड़ी जरूरत को पूरा करने वाला राज्य बन जाएगा।
राजस्थान में जयपुर मिसाल है कि भैरोसिंह शेखावत के दौर में बनी योजनाओं के कारण आज जयपुर देश के सर्वश्रेष्ठ शहरों में से एक बन चुका है। बिहार में नीतिश ने कुछ काम किया तो जनता ने उसे सराहा। गुजरात तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ही। लेकिन पूर्वी राज्यों यथा यूपी, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, बंगाल में बिजली , पानी और सडक़ की स्थिति काफी खराब है। पानी तो जैसे तैसे मिल जाता है पर बिजली और सडक़ों के हालात काफी खराब है। केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली और पानी पर सब्सिडी के वादों पर चुना जीत करकर इस विषय को नए सिरे से छेड़ दिया है।
कुल मिलाकर साफ है कि राममंदिर से पहले व्यक्ति को रोजी-रोटी, बिजली, पानी, सडक़ और स्वास्थ्य चाहिए। सेकुलरिज्म की राजनीति करने वालों को भी यह संदेश है कि देश के लोग विकास की ओर चलना नहीं दौडऩा चाहते हैं सरकारें उनकी ओर हाथ तो बढ़ाएं। यानी संघ से कई साल पहले मोदी ने इस चीज को समझ लिया था। चलो संघ ने देर से ही सही समझा तो। अगर इन पांचों मुद्दों के समाधान की दिशा में सार्थक प्रयास होते हैं तो देश में नए संदर्भाे में रामराज आएगा। जब रामराज आएगा तो मेरे रामजी ऐसे ही खुश हो जाएंगे। जब पेट भरा हो तो भजन भी अच्छा लगता है और मंदिर भी। बोलो जय रामजीकी।
http://epaper.organiser.org/epaper.aspx?lang=4&spage=Mpage&NB=2014-03-23#MPAGE_1














रविवार, 30 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-51) - सेकुलरज्मि न हो गया, वैशाली की नगर वधू हो गई


सेकुलरज्मि न हो गया वैशाली की नगरवधू हो गई गोया जो चाहे, जब चाहे अपने साथ ले जाता है। फैशन हो ठहरा। आज फिर कांग्रेस ने सेकुलरज्मि के नाम पर वामपंथियों को मोदी के खिलाफ एकजुट करने का आखिरी प्रयास किया है। कांग्रेस को अब साफ-साफ लग गया है केजरीवाल के बूते मोदी को रोकना मुश्किल है। कांग्रेस जब भी संकट में होती है उसे सेकुलरज्मि की याद आ जाती है और वो राजनीति के फर्श पर सेकुलरज्मि का तेल फैलाकर अपने विरोधी खासकर भाजपा को चित करने का प्रयास करती है। अब कांग्रेस वाजपेयी की 13 दिन की सरकार की तर्ज पर सेकुलरज्मि के जाल में मोदी को फांसने का अंतिम प्रयास कर रही है। प्रयास करने में हर्ज भी क्या है। सफल हुआ, नहीं हुआ। अगर हो गया तो फिर कहने ही क्या। आज की स्थिति में सेकुलरज्मि शब्द का संविधान के अनुसार अर्थ किसी भी पार्टी के किसी भी नेता को नहीं पता है। उसमें आडवाणी, मोदी, सुषमा, जेटली, सोनिया, राहुल, मुलायम, लालू ,नीतिश सहित सभी नेता शामिल हैं। यही कारण है कि विरोधी संघ और भाजपा पर सेकुलर नहीं होने के आरोप लगते हैं पर भाजपा कभी भी इसका सही तरीके से खंडन-मंडन नहीं कर पाई। विरोधी तो पहले दिन से सेकुलरज्मि का गलत अर्थ समझाकर देश को गुमराह कर रहे हैं। सेकुलरज्मि शब्द का इस्तेमाल करना एक फैशन बन चुका है। इस शब्द का प्रयोग करने वाले 99 प्रतिशत लोगों को इसके संदर्भ और मायने पता नहीं हैं। दरअसल यह अनुवाद के उपजी समस्या है। सेकुलरज्मि की राजनीति को समझने से पहले इस शब्द की उत्पत्ति, अर्थ, देशकाल और संदर्भ को जानना बेहतर होगा।

यूरोप के संदर्भ में- सेकुलरज्मि यानी राजा और चर्च की शक्तियों में अलगाव

भारत के पूर्व राष्ट्रपति, संविधानविद् और कांग्रेसी नेता डा शंकरदयाल शर्मा के अुनसार सेकुलरज्मि शब्द यूरोप से लिया गया है। इसका पहली बार उपयोग इंग्लैंड में1534 में राज्य की सत्ता को चर्च से अलग करने के लिए बनाए गए कानून के संदर्भ में किया गया।। इंग्लैंड की संसद ने एक कानून बनाकर राज्य सत्ता में चर्च और चर्च सत्ता में धर्म के हस्तक्षेप को समाप्त कर दिया। इसके बाद 1551 में चर्च की नीतियों के खिलाफ चले आंदोलन को सेकुलर मूवमेंट कहा गया।(राजा और चर्च के टकराव की कहानी जिसके कि कारण यह कानून आया इसकी विस्तृत कहानी इस लेख के अंत में है)

भारत के संदर्भ में- भारत में प्रारंभ से ही राजसत्ता और धर्म सत्ता अगल ही रहीं 

भारत में कभी भी धार्मिक सत्ता का राज्य सत्ता में हस्तक्षेप नहीं रहा। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और संतगण राजा को मांगने पर ही सलाह देते थे और वो भी सुझाव के रूप में। वे भी अपनी ओर से कुछ नहीं कहते थे। नीति शास्त्र, वृहतसंहिता, नारद संहिता और अन्य ग्रंथों को कोट करके अपने सुझाव देते थे। मानना या नहीं मानना राजा के हाथ में था। इसके अलावा गावों में पंच परमेश्वर की व्यवस्था थी जो कि दुनिया में लोकतंत्र का सबसे प्राचीन स्वरूप माना गया है। आजादी के बाद संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को जो संविधान पारित किया उसकी प्रस्तावना में सेकुलर शब्द नहीं था। लेकिन जो लिखा उसका मतलब यही था कि राज्य अवसर, धर्म और उपासना के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं करेगा।
१९७६ में आपातकाल के दौरान इंदिरा गंाधी ने 42 वां संविधान संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में sovereign democratic republic" यानी संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गण राज की जगह्य"sovereign socialist secular democratic republic यानी सोसलिस्ट सेकुलर शब्द लोकतंत्र के पहले जोड़ दिए। सोवियत संघ से दोस्ती का उन पर इतना अधिक प्रभाव था कि उन्होंने सोशल्सिट शब्द जुड़वा दिया। सेकुलर शब्द उन्होंने अपनी छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर चमकाने के लिए जोड़ा।

पहले भारत के संविधान में सेकुलर शब्द नहीं था

भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में सेकुलर शब्द का प्रयोग नहीं किया था। पर देश सेकुलर बना रहे इसकी सारी व्यवस्था संविधान की प्रस्तावना में कर दी थी। इसके अनुसार राज्य हर नागरिक को अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता देगा। यानी राज्य किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करेगा। यानी उसकी निगाह में सभी नागरिक समान होंगे।

26 नवंबर 1949 से 1976 तक यह थी प्रस्तावना

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्म गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्च्ति करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

1976 में जुड़े सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष (सेकुलर का अर्थ धर्मनिरपेक्ष नहीं होता) लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्च्ति करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

चर्च और राज्य की सत्ता को अलग करने का नाम है सेकुलरज्मि

15 वीं सदी में यूरोप में पोप की सत्ता थी। राजा नहीं था फिर भी राजा से बढक़र था। असीमित अधिकार थे उसके पास। राज्य सत्ता पर एक तरह से उसका सीधा नियंत्रण था। उसके पास नए राजा की नियुक्ति और किसी को भी धर्म से बायकाट करने के अधिकार थे। यहां तक की राजा को शादी करने और तलाक लेने से पहले पोप से अनुमति लेनी पड़ती थी।
1533 में इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्ठम (8 वें) ने अपनी रानी कैथरीन को तलाक देकर एन्ने नामक एक विधवा से शादी करने के लिए पोप क्लीमेंट से अनुमति मांगी । इस पर पोप ने हेनरी को अनुमति देने से इंकार किया और दंडस्वरूप हेनरी को कैथोलिक ईसाई धर्म से निकाल दया। प्रतिक्रिया में नाराज़ होकर हेनरी ने इंग्लैंड को पोप की सता से अलग कर लिया और पोप के समानांतर चर्च ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कर दी। इसके एक साल बाद यानी 1534 में राजा की पहल पर इंग्लैंड की संसद ने एक कानून पास किया। नाम था- एक्ट ऑफ़ सुप्रीमैसी । इसका शीर्षक था- सेपरेशन ऑफ़ चर्च एंड स्टेट । इसके मसौदे के अनुसार चर्च न तो राज्य के कामों में हस्तक्षेप कर सकता था और न ही राज्य चर्च के कामों में दखल दे सकता था। चर्च और राज्य के अलगाव के सिद्धांत के लिए सेकुलरिज्म शब्द का प्रयोग किया गया।
चर्च की नीतियों का विरोध करने का नाम भी है सेकुलरज्मि
इसके बाद बाद में 1851 जार्ज जकोब हालियेक ने चर्च की नीतियों के विरोध में सेकुलर मूवमेंट चलाया और सेकुलरज्मि शब्द का उपयोग किया। अमेरिका में भी सेकुलरिज्म शब्द इसी अर्थ में प्रयोग मेंलाया जाता है। इसके अलावा जो लोग समाज में रहते हुए ईसाई सन्यासियों की धर्म के काम में मदद करते
सेकुलर यानी इन द वल्र्ड
सेकुलर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सेकुलो शब्द से हुई है। इसका अंग्रेजी में अर्थ है इन द वल्र्ड ।
दरअसल कैथोलिक ईसाइयों में पुरुषों सन्यासियों को मौंक और महिलाओं को नन कहने की परंपरा थी। लेकिन जो व्यक्ति सामाजिक जीवन जीते हुए धार्मिक कार्यो में उनकी मदद करते उन्हें सेकुलर कहा जाता था। अर्थात संसार में रहते हुए सन्यासियों की मदद करने वाला।
क्रमश:

लालकिले से (भाग-50)- शिवसेना ने छेड़ा ध्रुवीकरण और हिंदुत्व का राग, कहा तुम मोदी को मारोगे तो क्या हम चुप बैठेगें


इस बयान से उन्होंने पहली बार दिखाए बाला साहेब वाले तेवर, जताया कि उनके विचारों के असली वारिस वे ही

सहारनपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद के नरेन्द्र मोदी की बोटी- बोटी काटने की धमकी के मामले में जहां भाजपा कोई भी विवादित बयान देने से बच रही है वहीं शिवसेना ने इमरान मसूद के साथ कांग्रेस को करारा जवाब दिया है। शिवसेना के अखबार सामना में उद्धव ठाकरे के हवाले से लिखा गया है कि अगर तुम मोदी को मारोगे तो क्या हम मूकदर्शक बने रहेंंंंगे। हम शिवसैनिक हैं किसी से नहीं डरते।

कांग्रेस ने शिवसेना को दिया मुद्दा

कुल मिलाकर कांग्रेस ने घर बैठे ठाले भाजपा को ध्रुवीकरण का एक हथियार दे दिया है। भाजपा इस मामले में संयत से बयान दे रही है और चुनाव आयोग से कार्रवाई करवाने के मूड में है पर शिवसेना हाथ में आए किसी मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहती। इसलिए शिवसेना के मुखपत्र सामना में उद्धव ठाकरे के हवाले से इमरान मसूद को चेतावनी के साथ ध्रुवीकरण का राग छेड़ दिया गया है। इसी के साथ इसी न्यूज के साथ उद्धव ठाकरे के साक्षत्कार की पहली कड़ी भी दी गई है। इसमें उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा नहीं होती तो महाराष्ट्र का
मराठी मानुस और हिन्दुस्तान का हिंदू कभी के खत्म हो गए होते। यह पहली कड़ी है यानी अभी आग और बाकी है। कल  देखते हैं क्या कहते हैं।

बाला साहेब वाले तेवर में आए उद्धव

दरअसल उद्धव ठाकरे ने इस बयान से यह साबित करने की कोशिश की है कि उनमे भी बाला साहेब वाला ही तेवर है। बाला साहेब के निधन के बाद यह पहली बार है कि उद्धव ने पहली बार क्रीज से बाहर निकलकर छक्का लगाया है। इसका कारण यह भी है कि लोग बाला साहेब की छवि राज ठाकरे में देख रहे थे। यह बयान देकर उद्धव ने भी यह भी बताया है कि बाले ठाकरे और उनकी राजनीति के वे ही असली वारिस हैं न कि राज ठाकरे। पिछले दिनों लोकसभा चुनाव के प्रीपोल सर्वे में भी राज को उद्धव से अधिक लोकप्रिय और ठाकरे के विचारों का असली वारिस बताया गया था। इसमें यह भी बताया गया था कि संगठन नहीं होने से वे इसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। चूंकि अभी लोकसभा और इसके साल भर बाद महाराष्ट्र में विधानसभा के भी चुनाव होंगे इसलिए मौका देकर उद्धव ने भी चौका मार दिया।



भाजपा और शिवसेना की मिली-जुली कुश्ती

इसमें भाजपा और शिवसेना की मिली-जुली कुश्ती भी हो सकती है। भाजपा ने यह तय कर लिया हो कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे भाजपा पर सांप्रदायिक उन्माद भडक़ाने का आरोप लगे इसलिए उसने इसलिए अपने पुराने सहयोगी को इस बारे में मोरचा संभालने का इशारा कर दिया।

शनिवार, 29 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-49) - भाजपा में सत्ता साकेत - हमें अपनों ने लूटा गैरो में कहां दम था, मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था




राजनाथसिंह इन दिनों डबल गेम खेल रहे हैं। बाहर से वे दिखा रहे हैं कि वे मोदी के साथ हैं पर भीतर ही भीतर ऐसा नहीं है। चूंकि राजनाथ का जनाधार सीमित है और 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी उन्हीं के कप्तान रहते चुनाव हारी थी। भाजपा का जनाधार भी काफी गिरा। कांग्रेस को लगभग 12 करोड़ वोट मिले वहीं भाजपा 8 करोड़ वोटों पर ही सिमट गई थी। इसलिए संघ का दबाव कहें, मोदी का जनाधार या परफारमेंस कहें कि वे मोदी का साथ देने को मजबूर हैं। इसी उम्मीद पर कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो कप्तान होने के नाते सफलता का सेहरा उनके भी सर बंधेगा। अगर किसी भी कारण से भाजपा की  सीटें कम आईं तो मोदी विरोधी खेमे से समर्थन लेना पड़ा तो वे एनडीए में प्रधानमंत्री पद के लिए आम सहमति के उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है एनडीए सबसे बड़ा दल बने पर उसकी सीटें 170 से कम हों। ऐसे में मोदी के लिए लगभग सौ सीटों का समर्थन जुटाना मुश्किल होगा।

टिकट बंटवारे में किया खेल

इसलिए राजनाथ ने टिकट बँटवारे में यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश में लगभग 30 सीटों पर गलत प्रत्याशी उतारकर मोदी का गेम बिगाडऩे की दिशा में पहला दांव चल दिया है। यूपी में अमित शाह की सूची में से आधे नाम उन्होंने उड़ा दिए। उन्हें आडवाणी, सुषमा और कांग्रेस का पूरा समर्थन प्राप्त है। आडवाणी और कांग्रेस इस मुद्दे पर एक नजर आ रहेंहै कि- मोदी को छोडक़र कोई भी प्रधानमंत्री बन जाए उन्हें मंजूर होगा। इसी खेमे के गेम प्लान के तह पहले आडवाणी रूठे और फिर जसवंत। यही खेमा भाजपा में दूसरी पार्टियों का कचरा लेकर आ रहा है। पिछले दिनों भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की गई थी इसमें सुषमा स्वराज और कांग्रेस के घालमेल पर प्रकाश डाला गया था।

इसीलिए संघ ने कहा सिर्फ मोदी

आरएसएस ने इसीलिए दो दिन पहले इन नेताओं को फिर संकेत किया कि- चुनाव बाद प्रधानमंत्री तो मोदी ही बनेंगे। उनकी देश में लहर है। बी प्लान का कोई सवाल ही नहीं उठता। अगर ऐसी नौबत आई भी तो वे फिर एक बार अपनी बारी का इंतजार करेंगे। यानी सीधे-सीधे विपक्ष में बैठने का संकेत हंै।

संघ का बी प्लाग अगर  हुआ तो 

दरअसल संघ का मानना है कि मोदी को बहुमत मिल ही जाएगा। लेकिन अगर किसी कारणवश बहुत मजबूरी में मोदी के स्थान पर किसी को लाना भी पड़ा तो वे नितिन गडक़री को प्राथमिकता देंगे। इसी कारण गडक़री इस बार नागपुर से चुनाव भी लड़ रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी का जेटली प्लान

प्रधानमंत्री पद की संभावित दौड़ के कारण ही भी अरूण जेटली अमृतसर से जीवन में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भले ही आप उन्हें अभी मोदी विरोधी खेमे में मानें पर अंदर की बात यह है कि वे मोदी के साथ हैं। गुजरात विधानसभा के पिछले तीन में दो चुनाव में ही वे मोदी के खास सिपाहासालार रहे हैं। मोदी ने ही उन्हें अमृतसर से चुनाव लडऩे की सलाह दी और सिद्धू को मनाया। अगर मोदी प्रधानमंत्री बने तो जेटली ही उनके डिप्टी होंगे। मोदी ने उन्हें सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर रखा है। जरूरत पडऩे पर अंतिम विकल्प के रूप में मोदी उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए भी आगे कर सकते हैं।

मोदी और राजनाथ में खटास का कारण

मोदी और राजनाथ के रिश्तो में खटास एक विधानसभा टिकट नहीं देने के कारण आई थी। दिसंबर 2007 की बात है। गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे का काम चल रहा था। राजनाथसिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन्होंने युवा मोर्चे के अध्यक्ष अमित ठाकुर के लिए अमदाबाद की एक सीट से टिकट मांगा था। बड़ी मिन्नतें की मोदी की। कहा युवा मोर्चे के नेता को टिकट दे दो नरेन्द्रभाई। कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश  जाएगा। मोदी ने राजनाथ को यह कहकर दो टूक जवाब दे दिया कि- राजनाथजी गुजरात के लिए बनाई गई मेरी कार्ययोजना में अमित ठाकर कहीं भी फिट नही बैठते। अंतत: मोदी ने अमित ठाकर को राजनाथसिंह के लाख कहने के बाद भी टिकट नहीं दिया।

मोदी और राजनाथ में खटास का कारण

दरअसल ये गेमप्लान है। यह सफल होगा या नहीं यह तो मतदान के बाद वोटों के प्रतिशत से पता चल ही जाएगा। एक बात तय है कि परिवर्तन के लिए संघ की ओर से लगातार दिए जा रहे संकेतों के बाद भी दिल्ली के एसी कमरों से देश की राजनीति चलाने समझ नहीं पा रहे हैं। शायद अब इन्हें जनता ही समझाएगी।

भाजपा के वर्तमान हालता पर ये शेर सटीक है-
हमें अपनों ने लूटा गैरो में कहां दम था, 
मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था।


5000 करोड का हवाला घोटाला


जनसत्ता के पुराने पत्रकार राम बहादुर राय इन दिनों एक मैगनीज यथावत निकाल रहे हैं। इस बार उन्होंने वित्त मंत्री पी चिदंबरम और एनडीटीवी के 5000 करोड़ के एक घोटाले को बेनकाब किया है। यह ब्लेक मनी को व्हाइट मनी बनाने यानी हवाला की तर्ज पर है। यथावत से साभार।







केजरीवाल का कबीरनामा


वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय की पत्रिका यथावत की पत्रिका ने केजरीवाल के एजनीओ कबीर के घोटालों यानी कबरीनामे की परतें उधेड़ कर रख दी हैं। गेंद अब आपके पाले में।

 

 





गोल्‍डमैन सैक्‍स ने बताया भारत के लिये क्यों जरूरी हैं नरेंद्र मोदी

लीडिंग अमेरिकन इनवेस्‍टमेंट बैंक गोल्‍डमैन सैक्‍स ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल बांधे हैं। गोल्‍डमैन सैक्‍स की शुक्रवार को जारी हुई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर देश में गुजरात की तरह लेबर लॉ होते तो देश में पिछले 10 वर्षों में 10 से 20 मिलियन भारतीय युवाओं को अच्‍छी नौकरियां मिल सकती थीं। अमेरिकन न्‍यूजपेपर वॉल स्‍ट्रीट जनरल में इस बात की जानकारी दी गई है। पढ़ें- मोदी विरोधी हैं तो पढ़ें इक्नॉमिक फ्रीडम की रिपोर्ट वॉल स्‍ट्रीट जनरल ने यह साफ कर दिया है कि इस रिपोर्ट से यह नहीं समझा जाना चाहिए गोल्‍डमैन सैक्‍स बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार और गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनावों के मद्देनजर किसी तरह की कै‍पेनिंग कर रहा है। बल्कि इस रिपोर्ट के जरिए सिर्फ यह बताने की कोशिश की जा रही है कि कैसे भारत ने मजदूरों और प्रोफेशनल्‍स को तकलीफ पहुंचाने वाले कड़े लेबर लॉ को अपनाया हुआ है। हालांकि यह भी सच है कि गोल्‍डमैन सैक्‍स पहले भी नरेंद्र मोदी की तारीफ कर चुका है। सात साल में सिर्फ दो मिलियन नौकरियां गोल्‍डमैन सैक्‍स ने लिखा है कि पिछले एक दशक में भारत में आर्थिक प्रगति तो हुई है लेकिन इस देश में लोगों की जरूरतों के हिसाब से नर्इ नौकरियों के अवसर पैदा नहीं किए जा सके हैं।
दुनिया का दूसरे सबसे ज्‍यादा जनसंख्‍या वाले और एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में पहचाने जाने वाले भारत में कृषि क्षेत्रों में नौकरियों के अवसरों को पैदा करने में अभी भी खासी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है। चीन, जापान और पूरे एशिया में किसान फैक्ट्रियों की ओर आ रहे हैं जिसकी वजह से इन जगहों पर सामाजिक बदलाव और शहरीकरण तेजी से हो रहा है लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता है। दूसरे कई अर्थशास्त्रियों की तरह ही गोल्‍डमैन का भी मानना है कि देश की आर्थिक तरक्‍की के बावजूद नौकरियों के अवसर न आने की सबसे बड़ी वजह है कि यहां पर कंपनियां जब लोगों को हायर करती हैं उन्‍हें सजा मिलती है। इंप्‍लॉयज की एक निश्वित संख्‍या साधारणतया 50 या 100 तक पहुंच जाने पर भारतीय कानूनों के तहत उन्‍हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसका नतीजा है कि उद्यमी यहां पर छोटे उद्योगों तक ही सीमित रहते हैं, इस तरह के उद्योगों से दूर रहते हैं जो मजदूरों को आकर्षित करें और लोगों को काम पर रखने के बजाय वह मशीनों का प्रयोग ज्‍यादा करते हैं।
गोल्‍डमैन के मुताबिक जब देश में ज्‍यादा से ज्‍यादा फैक्‍ट्री जॉब्‍स आनी चाहिए, बहुत कम नौकरियों के अवसर उत्‍पन्‍न हो रहे हैं। गोल्‍डमैन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 से साल 2010 के वित्‍तीय वर्षों के खत्‍म होने तक भारत में पांच मिलियन मैन्‍यूफैक्‍चरिंग जॉब्‍स के अवसर मिल सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
गोल्‍डमैन ने लिखा है, 'जिन उद्योगों से नौकरियां सबसे ज्‍यादा गायब हो रही हैं वह टेक्‍सटाइल, इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स और वस्‍त्र उद्योग हैं।' गोल्‍डमैन के एक अनुमान के मुताबिक साल 2005 से साल 2012 तक भारत में इंप्‍लॉयमेंट ग्रोथ सिर्फ दो मिलियन ही रही है। जबकि साल 2002 से साल 2005 तक यही ग्रोथ 12 मिलियन तक थी। जब सर्विसेज सेक्‍टर में अच्‍छी नौकरियां होनी चाहिए थी, लेबर लॉ ने उन पर रोक लगा दी। तो अगले10 वर्षों में होंगी 40 मिलियन नई नौकरियां गोल्‍डमैन ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि देश में जहां नौकरियों के अवसर कम आ रहे थे वहीं गुजरात पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
गोल्‍डमैन की रिपोर्ट की मानें तो गुजरात का रुख इन कानूनों के प्रति काफी लचीला था। यहां पर कंपनियों को आजादी दी गई कि वह अपनी इच्‍छा के मुताबिक लोगों को हायर करें या फिर उन्‍हें निकाल दें। इस तरह से गुजरात में मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर्स से जुड़ी ज्‍यादा से ज्‍यादा नौकरियों के अवसर सामने आए। गोल्‍डमैन ने अपनी रिपोर्ट में वेस्‍ट बंगाल का उदाहरण दिया जहां कड़े कानूनों की वजह से हालात अच्‍छे नहीं है। गोल्‍डमैन के मुताबिक भारत में अगर गुजरात की तर्ज पर ही नियमों में ढील दे जाए तो अगले 10 वर्षो के दौरान पूरे देश में मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर से जुड़ी 40 मिलियन नई नौकरियों के अवसर पैदा किए जा सकेंगे। वहीं अगर भारत इससे थोड़ा आगे जाए तो देश में इतने ही वर्षों में 110 मिलियन नई नौकरियां पैदा की जा सकेंगी। क्या लिखा है गोल्डमैन सैक्स ने।

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Goldman: If Only India Were More Like Gujarat


If only India were more like its state of Gujarat: Tens of millions of Indians could get nice, new jobs.
That’s one of the lessons from a Goldman Sachs report released Friday.
No, the U.S. investment bank is not campaigning for prime ministerial hopeful and Gujarat Chief Minister Narendra Modi (though it has not been shy about showing its support for so-called Modi Magic in the past.) It was trying to illustrate how India’s ridiculously-strict labor laws hurt laborers.
Despite India’s red-hot growth streak for most of the past decade, the country has not been creating enough jobs for its people. Most of the world’s second-largest population in what has become Asia’s second-largest economy is still stuck doing relatively unproductive jobs in agriculture.
The rapid urbanization of former farmers flocking to factories–which powered growth spurts and societal change in China, Japan and elsewhere across Asia—is not happening in India.
“India’s well-known demographic dividend is yet to be reaped,” the Goldman report said. “Migration from rural agriculture to urban manufacturing is slow, thus reducing productivity gains.”
Goldman, like many economists and executives, says that one of the main reasons India’s economic growth isn’t generating jobs is that companies get punished for hiring people. After growing to a certain number of employees—usually 50 or 100–Indian law makes it difficult to lay them off or even shut down a money-losing factory. The result is that entrepreneurs try to stay small, stay away from labor-intensive industries and use machines rather than hire people.
The upshot is that job growth has been anemic compared to the country’s economic expansion and most of the jobs created are in the informal sector—tiny businesses with fewer than a handful of employees.
When India should be creating more factory jobs, it is actually creating fewer. Five million manufacturing jobs disappeared in India between the fiscal year ending March 2005 and the fiscal year ending 2010, the Goldman report says.
“The industries which are losing jobs are the most labor-intensive ones—textiles, electronics, and apparel,” says the report. “Firms are substituting capital for labor.”
According to Goldman’s estimates, India’s employment growth has slowed to only about two million new jobs a year in the seven years ended March 2012 compared to 12 million a year from March 2002 to 2005. While there has been better growth in jobs in the services sector, the labor-intensive manufacturing slice of the economy has been largely stuck.
So what does that have to do with Gujarat?
The relatively affluent western state has done away with, or been more flexible in its interpretation of, some of the most stifling labor laws, says Goldman. By giving companies more freedom to hire and fire as they please, Gujarat has been able to create more manufacturing jobs than other states, such as West Bengal, with restrictive labor laws, the report says.
If the rest of India brought its restrictions down to the same level as Gujarat, the country could create 40 million new manufacturing jobs in the next 10 years, the report said. If it went even further and did more to revamp the regulations, India could add 110 million jobs during that period.

http://blogs.wsj.com/indiarealtime/2014/03/28/goldman-if-only-india-was-more-like-gujarat/

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-48) - 15 दिसंबर 2007 को मैंने अपने ब्लाग ई मिरची में लिखा था - मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी


गुजरात विधानसभा के 2007 के चुनावों के कवरेज के लिए मैं अमदाबाद गया था। दिव्यभास्कर के लिए विधानसभा चुनाव की कमान मेरे पास थी। तब 15 दिसंबर 2007 को मैंने अपने ब्लाग ई मिरची में लिखा था कि मोदी और इंदिरा गांधी में काफी समानताएं हैं। इसका शीर्षक था मोदी इज बीजेपी एंड बीजेपी इज मोदी। आज लगभग 6 साल बाद मोदी इस मुकाम पर पहुंच गए हैं। मोदी और इंदिरा गांधी की तुलना करने वाला यह देश में पहला लेख था।




 ब्लाग ई मिरची (15दिसंबर 2007  )
मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी

गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण के मतदान को अब 24 घंटे से भी कम का समय बचा है। इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव सत्‍तर और अस्‍सी के दशक के लोकसभा चुनाव से काफी मिलते जुलते हैं। तब तानाशाह इंदिरा गांधी का वन मैन शो चलता था और इमरजेंसी के बाद तो इंदिरा वर्सेज आल का नारा बुलंद हुआ था। उस दौर में कांग्रेसी दलील दिया करते थे इंदिरा इज़ कांग्रेस एंड कांग्रेस इज़ इंदिरा। लगता है आज इतिहास खुद को दोहरा रहा है गुजरात में नरेन्‍द्र मोदी के रूप में। गुजरात में मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी का फार्मला चल रहा है। वही शैली, वही अदा, वही जनता से सीधा संवाद, वही तल्‍खी, वही भीड़ से अलग दिखने की अदा। कहीं नरेन्‍द्र मोदी इंदिरा गांधी को कापी तो नहीं कर रहे हैं। खबरी का उत्‍तर है- हां। अगर मोदी चुनाव जीत गए तो मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी का फार्मला सुपर हिट हो जाएगा ।

इं‍दिरा और मोदी में समानताएं



  1. दोनों ही जिद़दी हैं और दोनों की सैली तानाशाह सरीखी है।
  2. दोनों के खिलाफ विपक्षी लामबंद हो गए। तब इंदिरा वर्सेस आल और अभी मोदी वर्सेज आल।
  3. दोनों के खिलाफ अपनी ही पार्टी के लोगों ने बगावत की थी। तब मोराराजी देसाई, चौधरी चरण‍सिंह और बाबू जगजीवन राम ने पार्टी छोडी थी और अभी सुरेश मेहता, शंकरसिंह वाघेला आदि ने।
  4. दोनों के अल्‍पसंख्‍यकों का दमन किया। एक ने करवाया था आपरेशन ब्‍लू स्‍टार दूजे ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगे को रोकने में राजधर्म का पालन नहीं किया।
  5. दोनों में जनता को अपनी ओर खींचने और उनसे संवाद की अनोखी शैली है।
  6. अंतिम समानता इस लेख के अंत में ।


मोदी वर्सेज आल

गुजरात के राजनीति इतिहास में यह पहला मौका है जब चुनाव में दोनों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पक्षों के लिए एक ही मुद्दा है और वह है मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी। भाजपा का सारा प्रचार अभियान, केम्‍पेन और विज्ञापन सभी मोदी के इर्द-‍गिर्द ही धूम रहे हैं। यानी गुजरात में मोदी आधारित चुनाव लड़ा जा रहा है। क्‍या गुजरात के साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों को मोदी चाहिए अथवा नहीं चाहिए के मुद़दे पर ही मतदान करना है। इतिहास गवाह है गुजरात के चुनाव में लहर होती है। इस चुनाव में अभी तक तो कोई लहर नहीं है। इस चुनाव में लगता है लहर अंतिम समय पर ही चलेगी। मोदी चा‍हिए अगर यह मुद़दा चला तो सारे गुजरात में चलेगा और नहीं चला तो सारे गुजरात में नहीं चलेगा। इससे एक बात तो तय लगती है कि जिसे सत्‍ता मिलेगी पूर्ण बहुमत के साथ मिलेगी। अगर हम शुरआती संकेतों की बात करें तो गुजरात को मोदी चाहिए का मुद़दा चलने की संभावना सबसे ज्‍यादा लगती है।

असंतुष्‍टों के कंधे पर कांग्रेस की बंदूक

पिछले एक वर्ष से कांग्रेस मोदी विरोधियों और भाजपा के असंतुष्‍टों के कंधे पर बंदूक रखकर गुजरात के सिंहासन को साधने में लगी थी। भाजपा के ये लोग सरकार चलाने की मोदी की तानाशाही शैली से नाराज थे। गुटों में बंटी कांग्रेस के लिए यह कम उपलब्धि नहीं है कि तमाम संभावनाओं के विपरीत उसने भाजपा को इस चुनाव में कड़ी चुनौती दी है। अब यह बात अलग है कि इसके लिए उसे भाजपा के असंतुष्‍टों की बैसाखी का सहारा लेना पड़ा है। अन्‍यथा एक साल पहले तो यहां तक कहा जा रहा था कि मोदी बड़ी ही आसानी से अगला चुनाव जीत जाएंगे।
टिकिट वितरण को लेकर दोनों ही प्रमुख दलों में अंतिम समय तक घमासान मचा रहा। चुनाव को मोदी वर्सेज आल करने के लिए कांग्रेस ने यूपीए के घटल दलों सहित भाजपा के असंतुष्‍टों को अपने में मिला लिया। इस कारण टिकिट वितरण में काफी असंतोष ही हुआ और असंतुष्‍टों को भी ऐन वक्‍त पर ही टिकिट मिल पाया।
इसके ठीक विपरीत भाजपा के लिए कुछ भी अच्‍छा नहीं था। भाजपा के कार्यकर्ताओं और व‍रिष्‍ठ नेताओं की नाराजगी, संघ परिवार, विश्‍व हिन्‍दू परिषद, किसान संघ का असहयोग, मीडिया और चुनाव आयोग के अंकुश से भाजपा काफी पस्‍त हो गई थी लेकिन अरूण जेटली ने दिल्‍ली से इलेक्‍शन मैनेजर्स की पूरी फौज गुजरात में लगा दी। अरूण जेटली पिछले कई सप्‍ताह से गुजरात में डेरा डाले हुए हैं ।

विकास का मुद़दा कहीं हेवी सेलिंग जैसा तो नहीं

गुजरात का चुनाव विकास के मुद़दे पर ही लड़ने की बारम्‍बार घोषणाएं भाजपा के आला नेता पिछले दो महीने से करते आए थे। इसलिए नरेन्‍द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत भी विकास के नारे से की। उन्‍होंने इसमें विकसित गुजरात, म‍हिलाओं, आदिवासियों के कल्‍याण सहित अपने समस्‍त प्रयासों को जनता के सामने रखा भी लेकिन जनता इससे कुछ प्रभावित भी हुई लेकिन कोई खास रिसपोन्‍स नहीं मिला और मिलना भी नहीं था। कारण कि अभी तक विकास के आधार पर इस देश में तो किसी सरकार ने चुनाव नहीं जीता है। हकीकत तो यह है भाजपा कभी भी विकास को चुनावी मुद़दा बनाना ही नहीं चाहती थी। कारण कि भाजपा को विकास ने नारे का हश्र पता है किस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव में शाइनिंग इंडिया के नारे की हवा निकल गई थी और अटलजी को सत्‍ता से हाथ धोना पड़ा था।

विकास से कांग्रेस को भ्रमित कर हिन्‍दुत्‍व की गोलाबारी
भाजपा का विकास का नारा कांग्रेस को भ्रमित करने की रणनीति का एक हिस्‍सा था। कांग्रेस इसके भ्रम में आ गई कि भाजपा इस चुनाव में विकास को मुद़दा बनागी। यह उसकी एक बड़ी रणनीतिक भूल भी है। युदध के मैदान में जब आपके लड़ाकू विमान, टैंक रेजीमेंट या पैराट्रूपर्स मूव करते हैं तो उनकी हलचल और टैंको के चलने की आवाज को छुपाने के लिए तोपखाने से भारी गोलाबारी की जाती है। इससे दुश्‍मन का ध्‍यान गोलबारी की ओर ही लगा रहता है, उसे टैंको के आने की खबर तभी मिल पाती है जब वह बिल्‍कुल ही सामने आ जाता है।
मोदी शुरुआत से हिन्‍दुत्‍व को ही चुनावी मुद़दा बनाना चाहते थे पर उसमें खतरा यह था कि कांग्रेस उसका काउन्‍टर अटैक कर देती। भाजपा ने रणनीति के मुताबिक कांग्रेस को विकास की गोलबारी में इतना उलझा दिया कि उसे लगने लगा कि कहीं विकास के मुद़दे पर मोदी कहीं चुनाव ही जीत लें। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने विकास के मुद़दे को भटकाने के लिए और मीडिया का ध्‍यान अपनी ओर करने के लिए सोहराबुददीन का मामला छेड़ दिया और मोदी को सोनिया के मुंह से कहलवा दिया मौत का सौदागर। कांग्रेस इस बयान से भी बार- बार अलटती-पलटती रही। भाजपा या कहें कि मोदी चाहते ही यही थे। कांग्रेस ने जैसे ही मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए जैसे ही सोहराबुददीन की एलओसी क्रास की मोदी ने अपने हिन्‍दुत्‍व के जंगी जहाज से उड़ान भरी और अपने भाषणों की बम बार्डिंग कांग्रेस पर शुरु कर दी।

गुजराती मुस्लिम तुष्टिकरण से नाराज

गुजरात से साढ़े पांच करोड़ गुजराती मोदी के भाषणों से प्रभावित हुए हैं ऐसा भी नहीं है परन्‍तु सोनिया की सभाओं के बाद उन्‍हें ऐसा लगने लगा कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है और इस बारे में लगाए गए भाजपा के आरोप सही हैं। गुजरात का बहुसंख्‍यक मतदाता यह सह नहीं सकता कि कांग्रेस उसकी उपेक्षा कर मुस्लिमों को खुश करे। चूंकि उसके पास इसके खिलाफ एक ही शस्‍त्र है और वह है नरेन्‍द्र मोदी। जब तक कांग्रेस अल्‍पसंख्‍यकों को लुभाने के लिए गुजरा‍तियों की उपेक्षा करती रहेगी तब तक नरेन्‍द्र मोदी का हरा पाना उसके लिए मुश्किल रहेगा।

मोदी ने कांग्रेस के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद़ध भी चला रखा है। मोदी ने यह लगभग सा सिद़ध कर दिया है कि उनके खिलाफ की गई कोई भी टिप्‍पणी गुजरात और वहां के साढ़े पांच करोड गुजरातियों का अपमान है। इसलिए वे सभाओं में कहते हैं कि यह गुजरात का अपमान है, यह गुजरात को गाली दी गई है।
मोदी ही भाजपा है यह नारा पिछले दो साल से उछल रहा है चुनाव आते ही मोदी ने नया नारा चलाया जीतेगा गुजरात। इसमें नारे में वे अपना प्रतिबिम्‍ब देखते रहे। भाजपा के नेताओं की आंख में यह नारा खटका भी लेकिन मोदी ने यह कहकर सभी को चुप कर दिया जीत का रास्‍ता इसी नारे से होकर जाता है। इसके बाद भाजपा आलाकमान के पास भी चुप रहने के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं था।

मोदी विरोधी बातें भी सुन रही है जनता

गुजरात में मोदी की सभाओं में बड़ी भीड़ उमड़ी और मोदी की बातों से लोग काफी प्रभावित भी दिखे। जतना से सीधे बात करते हुए अपनी बातें उनके मुंह से कहलाने का मोदी ने बड़ा अच्‍छा प्रयोग किया लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि जनता मोदी विरोधी बातें नहीं सुनना ही चाहती। मोदी विरोधी सभाओ में भी काफी भीड़ उमड़ी है।
कांग्रेस अध्‍यक्षा सोनिया गांधी ने गुजरात के चुनाव को काफी महत्‍व देते हुए काफी समय निकाला और कोई एक दर्जन चुनावी रैलियों को संबोधित किया। इनमें लाखों की संख्‍या में लोगों ने हिस्‍सा लिया और सोनिया की बातों को बड़े ही गौर से सुना। इसी तरह सरदार पटेल उत्‍कर्ष समिति के बैनर तले भाजपा के बागी गोवर्धन झड़‍पिया और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सौराष्‍ट्र के विभिन्‍न जिलों में हुईं सभाएं भी प्रभावी रहीं। इसी के कारण भाजपा को सौराष्‍ट्र में कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती हैं। अगर दूसरे चरण में भी कुछ ऐसा ही चला तो कहा जा सकता है जनता को मोदी नहीं परिवर्तन चाहिए।

मोदी का चुनावी जुआं


मोदी ने लिए इस बार एक चुनावी जुआं भी खेला है। पार्टी, संघ,विहिप कोई भी उनके साथ नहीं हैं सिर्फ और सिर्फ मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। शहरी इलाकों में मोदी के पक्ष में माहौल दिखता है। अगर यही स्थिति गावों खासकर मध्‍य गुजरात के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में रही तो मोदी ही चाहिए का मुद़दा काफी प्रभावी हो जाएगा। और भाजपा को पूरे बहुमत के सा‍थ सत्‍ता मिलेगी। आंखों में सत्‍ता सुंदरी का सपना संजोए मोदी विरोधी नेता शंकरसिंह वाघेला, भरतसिंह सोलंकी,गोवर्धन झड़पिया मानते हैं कि मोदी के विकास के मुद़दे का हश्र चंद्राबाबू नायडू और शाइनिंग इं‍डिया के नारे की तरह ही होगा।

मोदी का मै‍जिक चलेगा क्‍या


अब तो 23 दिसंबर को ही पता चलेगा कि गुजरात को मोदी चाहिए या नही। मोदी का मैजिक अथवा मास हिस्‍टेरिया चलेगा या नहीं। इल सभी के बीच एक बात तय है कि गुजरात के इतिहास में पहली बार हो रहे मुद़दा या लहर विहीन चुनाव में एक व्‍यक्ति ने अपने मैजिक से सरगरर्मी ला दी। अब नतीजा चाहे जो भी हो। जीते तो गुजरात का ताज, बाद में भाजपा का भी। साथ में इं‍दिरा गांधी जैसे एक और करिश्‍माई नेता का तमगा वो भी बिल्‍कुल मुफ़त। इस सारे सवालों के बीच दांव पर लगा है भाजपा का भविष्‍य। अगर ये चुनाव जीते तो अगले साल होने वाले लोकसभा ओर दस राज्‍यों के विधानसभा चुनाव का रास्‍ता काफी आसान हो जाएगा अन्‍यथा मोदी और भाजपा दोनों का पतन तय है ।
खबरी ने बात इंदिरा गांधी ने शुरु की थी तो समाप्‍त भी इंदिरा गांधी से।

इं‍दिरा और मोदी में अंतिम समानता


इंदिरा गांधी ने सेवादल सहित कांग्रेस के सभी संगठनों को खत्‍म कर दिया । इसके बाद अपने नाम से ही नई कांग्रेस खड़ी कर ली । मोदी भी इसी रास्‍ते पर चल चुके हैं वे संघ और विहिप को खत्‍म करने की ओर अग्रसर हैं । इसी वजह से भी संघ और विहिप इस चुनाव में उनके साथ नहीं दिख रहे हैं ।
सवाल - इं‍दिरा गांधी रूल बुक के हिसाब से मोदी का अगला कदम क्‍या होगा
जवाब- भाजपा मोदी का गठन------

लालकिले से (भाग-47) - लाल किले से श्रृंखला की 28 वीं कड़ी में बताया गया था कि सेनाओं के पासगोला- बारूद भी पर्याप्त नहीं है।


रूसी पंडुब्बियां हैं स्विमिंग काफिन, इन्हें नेवी से हटाओ, सेना को चाहिए गोला-बारूद

नेवी चीफ के इस्तीफे के दिन ही लाल किले से श्रृंखला की 28 वीं कड़ी में बताया गया था कि नेवी के साथ थल और वायु सेना के हालात ठीक नहीं हैं। सेनाओं के पास गोला- बारूद भी पर्याप्त नहीं है। दिल्ली का मीडिया अब इसे छाप रहा है। यह पोस्ट फेसबुक पर पोस्ट करने के कुछ ही दिनों के बाद गायब कर दी गई थी।  आप समझ गए होंगे कैसे गायब हुई होगी। नई सरकार के लिए सेना की मांगों को पूरा करना पहली प्राथमिकता होना चाहिए।

लालकिले से  (भाग-२८)
रूसी पंडुब्बियां हैं स्विमिंग काफिन, इन्हें नेवी से हटाओ
नेवी चीफ को क्यों, रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव को इस्तीफा देना चाहिए था।
आज हमारी सेना के एक अनुभवी सेनापति ने सेनाओं के आधुनिकीकरण में की जा रही लापरवाही के परिणामों से हताश होकर इस्तीफा दे दिया। यह चेतावनी है सरकार के लिए कि वह हमारी सेना के आधुनिकीकरण में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरते अन्यथा इतिहास उसे कभी भी माफ नहीं करेगा।
नेवी चीफ के इस्तीफे का मतलब - पंडुब्बी आईएनएस सिंधुरत्न में मंगलवार तडक़े मुंबई के अरबी समुद्र में हुए हादसे के बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल डीकेे जोशी ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस हादसे सहित नौसेना में पिछले 6 महीने में 3 पंडुब्बी हादसों सहित हुए 13 हादसों की नैतिक जवाबदारी लेते हुए यह इस्तीफा दिया। इससे पहले 14 अगस्त को सिधुरक्षक पुडुब्बी में भी हादसा हो चुका था। सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। जोशी का अभी डेढ़ साल का कार्यकाल बाकी था। सरकार नौसेना को जरूरी तकनीकी उपकरण मुहैया करवा नहीं रही थी इससे लगातार हादसे हो रहे थे। शांतिकाल में सैनिक मर रहे थे। रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव की नाकामी के कारण जोशी अपने को लाचार पा रहे थे। इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जबकि इस्तीफा देना चाहिए था रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव को। कारण कि हम रूस की एक्सपायर डेटेट पंंडुब्यिां इस्तेमाल कर रहे हैं। ये एक्सपायर डेटेड पंडुब्बियां अब नौसेना के लिए स्विमिंग काफिन बन चुकी हैं। नौसेना के लिए  घातक बन चुकी इन पंडुब्बियों के लिए में देश में पहली बार मैं एक नए शब्द स्विमिंग काफिन का इस्तेमाल कर रहा हूं। नेवी चीफ इसलिए परेशान थे प्लानिंग के बाद भी उपकरणों को बदला नहीं जा रहा था। सेना 15 साल पहले रक्षा मंत्रालय को बता देती है कि उससे ये ये उपकरण इस सन में सेना से बाहर हो जाएंगे। इसलिए उनके स्थान पर नए उपकरण चाहिए होंगे। पुराने उपकरण तो बाहर होते जा रहे हैं और नए  उपकरण खरीदे नहीं जा रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञ भरत वर्मा बताते हैं कि यह हालात सिर्फ नौसेना  के नहीं हैं, वायु सेना और थल सेना भी इसी परेशानी से गुजर रही हैं। वायु सेना के बेड़े से लड़ाकू विमान लगातार कम हो रहे हैं और नए विमान आ नहीं रहे हैं। यही हालात रहे तो हमें ट्रेनिंग विमानों से युद्ध लडऩा पड़ सकता है। सेना के पास पर्याप्त तोपें और एमुनेशन नहीं है। कायद से सेना के पास कम से कम 40 दिन का गोला-बारूद होना चाहिए। ताकि आपातकाल में कोई परेशानी नहीं हो। लेकिन अभी एक सप्ताह का गोला-बारूद भी हमारी सेना के पास नहीं है। यह सब पिछले दस साल में कांग्रेस की सरकार की लापरवाही के कारण हुआ है। नए सौदे सब कमीशन के लालच में अटके पड़े हैं। वायुसेना में फाइटर पायलट और सेना में अफसरों के हजारों पद खाली पड़े हैं।
सारी घटिया पंडुब्बियां रूस की- भारतीय नौसेना में ज्यादातर पंडुब्बियां रूस से ली गई हैं। ज्यादतर एक्सपायर डेटेड हैं। इन्हें अपडेट करके काम चलाया जा रहा है। जिस आईएनएस सिंधुरत्न में मंगलवार को हादसा हुआ वह भी दो महीने पहले अपग्रेड होकर आई थी। इससे पहले जिस पंडुब्बी सिंधुरक्षक में पिछले 14 अगस्त को हादसा हुआ था वह भी रूस से खरीदी हुई थी। दरअसल रूस का जब विघटन हुआ तो उसने भारत को कई किलो क्लास की पंडुब्बियां रिपेयर कर बेचीं। हमारे साहब बहादुरों ने भी अरबों के कमीशन के लालच में कबाड़ का माल रंग पोतकर खरीद लिया। इस तरह पिछले छह महीने में 3 पंडुब्बी सहित कुल 13 हादसे हो चुके हैं। अभी जर्मनी ने अपनी बहुत अच्छी पंडुब्बियों को कास्ट कटिंग के नाम पर बाहर कर दिया है। वे रूस की पंडुब्बियों की तुलना में हजार गुना बेहतर हैं। हमें उन्हें कम कीमत पर अच्छी डील के तहत क्यों नहीं खरीद सकते।
एअरफोर्स के भी हालात खराब- इसी तरह वायुसेना में रूसी मिग-21 विमान भी घटिया कल-पुर्जों की वजह से बेवजह ही फ्लाईंग काफिन बन गए। यानी घटिया पंडुब्बियां इसलिए स्विमिंग काफिन बनीं क्योंकि वे तो थी ही घटिया पर मिग विमान जो कि दुनिया के अच्छे फाइटर प्लेन थे को एंटी रूस लाबी ने घटिया कलपुर्जों से निपटा दिया। एक समय भारतीय वायुसेना में ज्यादातर विमान रूसी थे। पहली बार 80 के दशक में मिराज की एंट्री हुई। यूएस, यूके और फ्रासं भारतीय वायुसेना अपने फाइटर प्लेनों की एंट्री करवाना चाहते थे। इसलिए ये आवश्यक था कि पहले मिग श्रृंखला के विमानों को हटाया जाए। इसलिए इस लाबी ने रक्षा मंत्रालय के अफसरों से मिलकर मिग विमानों को घटिया कल पुर्जों की लगातार आपूर्ति करवाई। इससे लगातार हादसे होते गए और हमारे पास विमानों की कमी होती गई। स्वदेशी तेजस के निमार्ण में भी इसी अफसरशाही के कारण लगभग 8 साल का विलंब हुआ है।
आईएनएस विक्रांत का बायलर खराब - रूस से खरीदे और हाल ही  में अपडेट होकर आए 800 मिलियन डालर मूल्य के विमानवाहक पोत का बायलर खराब हो गया था। मजे की बात यह है कि इतने महंगे इस विमानवाहक पोत पर वायु रक्षा प्रणाली नहीं है।
सेना के पास गोला-बारूद नहीं- सेना के पास बोफोर्स जैसी तोपे, उनके गोला-बारूद और रायफल्स के गोलियों का तक पर्याप्त स्टाफ नहीं है। आम तौर पर सेना के पास कम से कम 40 दिनों का गोला बारूद स्टाक में होना चाहिए, ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में परेशानी नही ंहै पर अभी हमारे पास एक सप्ताह के गोला-बारूद का भी स्टाक नहीं है।
हम कारतूस तक देश में नहीं बनाते- देश में एके छप्पन और सैंतालीस टाइप की राइफलों के कारतूस तक नहंी बनते सब विदेशों से आते हैं। क्या भारत जैसा देश अपनी सेनाओं की बंदूक के लिए कारतूस तक नहीं बना सकता। लेकिन कमीशनबाजी के लालच में सारा एमुनेशन विदेशों से आता है।
बोफोर्स जैसी तोपें देश में क्यों नही बन सकतीं- टाटा, बिडला, अंबानी और एलएंडटी जैसी कंपनियां आसानी से बोफोर्स जैसी तोपे न केवल बना सकती हैं वरन विदेशों को बेच भी सकती हैं। लेकिन हम विदेशी घटिया हथियारों पर तो भरोसा कर सकते हैं लेकिन अपने देश की कंपनियोंपर भरोसा नहीं कर सकते। अब समय आ गया है कि हम रक्षा क्षेत्र को अपने देश की कंपनियों के लिए खोल दें। इससे हमारी रक्षा जरूरतें समय पर पूरी होंगी। विदेशी मुद्रा बचेगी और हम भविष्य में हम हथियार बेचकर विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं।
पर क्या एडमिरल जोशी के इस्तीफे से हम सबक लेंगे। यदि सबक ले लेते हैं तो उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। जरो सोचें।







लालकिले से (भाग-46 A)- केजरीवाल जैसों की मदद से आईएसआई का भारत को सोवियत संघ जैसा बांटने का इरादा- अफगान टाइम्स का लेख

Pakistan’s mysterious love for Indian anti-corruption crusaders


Opinion by By Aamna Shahwani
When electoral preparation is going on in full swing for upcoming general elections in both Afghanistan and India, the cadres are busy with placards and posters; the covert game of Pakistani Political Agents is underway in both these nations. Analyzing the recent developments will uncover the naked faces of the Pakistani political games going on in India that the innocent public of India will find hurting. Pakistan, whose birth was blessed by religious hatred against India, the same Pakistan whose very existence depends on the enmity towards India is bedfellow of some self-acclaimed custodians of the clear governance of India, is it just a coincidence or uppermost layer of a deep conspiracy? The story started two years back.

Indian politician and international economist Dr. Subramanian Swamy almost toppled the political scenario of the country which was rubbed by corruption, terrorism, strategic encircling etc. Dr. Swamy exposed a major corruption of telecommunication department and unearthed the dark faces of some top bosses of the ruling party and was about to expose some more corruption cases that’s when there was the rise of hitherto unknown self-styled Corruption Crusader Anna Hazare, who has played a key role from backstage in recent Delhi polls but none knew him three years ago. Anna presented before the public a dream of a magic wand that can wipe out all the corruption, currently Indians are facing and in this treachery the Indian media offered full cooperation. Anna gained one more plus point of being from an allegedly non-political background whereas Dr. Swamy is part of a powerful political party named BJP. Thus the typical Indian mentality sidelined the really working Dr. Swamy and brought in focus the ever-protesting-never-testing Anna Hazare. What is surprising is that it didn’t surprise the Indian mass that’s why does the under-matriculation Anna Hazare is so adamant about passing the Lokpal (Ombudsman) Bill that can wipe out all the corruption and what does an unqualified man know about legal aspects of such a complex thing. It didn’t surprise them why the highly qualified IAS, IPS, IFS officers of the team remained at backstage and Anna was projected as a hero! These things didn’t surprise because media didn’t let the Indian mass think that way. Indian media fully cooperated with this movement.

What is Lokpal Bill? It is a fantastic bill which claims to remove all corruption and has a dictatorial power over all the agencies of India, all the ministers and ministries etc. There is already a bulk of agencies to checkmate the corruption but they failed because the agents themselves have been defected, if similar things can happen to the Lokpal agent, it will be totally useless and then there will be again a similar movement and it will give birth to a good recursive function. Anna was adamant on his demand and wanted exactly no editing of his (read the backstage players) version of Lokpal. The Congress didn’t want the Lokpal Bill to come at that point and BJP wanted it to come with slight variation, they wanted to keep some offices like intelligence and security and foreign ministries away from the reach of Lokpal but still Anna was indomitable and arrogant on his demand and the hypnotized public was seconding the chorus.

The very points which were denied by BJP were the main weapon of the external intelligence agencies to exploit this Lokpal and meanwhile the US officially ‘advised’ India ‘to let the Lokpal movement go on’. Why was US interested in the so-called anti-corruption crusade in India? Because the US was trying hard to capture the retail market in India and try to install Wall-Mart there and was facing heavy protests from the nationalists and once they have either Lokpal set up in power they can get their work done via a corrupt Lokpal or gain sympathy of Anna team and use their hypnotism to take the public on their side. At meantime Pakistan also invited Anna Hazare and it was a party called Shive Saina that warned Anna not to go to Pakistan and entertain the Pakistanis telling the corruption tales of India.

The exploitation of Lokpal (Anna version) means direct access to India’s intelligence and security agencies and there can be no more fortune for ISI than this. However other than this, there was one more reason Pakistan favors Team Anna, that is the ingredients of the team. The team consists of politicians with anti-national mindset that I am coming just in a while.

After a long drama of being apolitical and staging protests finally Arvind Kajriwal, the second-in-command of Anna, the modern Nehru of modern Gandhi, launched a political party named Aam Aadmi Party and wasn’t even criticized by media which was a nosy critic of an Indian religious leader and Yogic mentor Swamy Ramdaiv. Anna in order to retain his image slightly criticized Kajri for namesake. Kajri fought elections in Delhi using the fan-club he gained through the India Against Corruption (IAC) movement. Kajri totally relied on the drama-style of Rahul Gandhi and started sleeping for a couple of minutes on railway platform without any bedsheet but with spongy and comfy pillow. He made a bulk of bizarre and cunning promises of free water up to 700 liter and demanded full payment if you used a milliliter extra. Fully analyzing the lazy and begging mentality Indian public has developed hit by inflations and price-rise, the AAP charter listed a bulk of subsidies and bizarre announcements and media fully cooperated with all the lies and propaganda of the AAP. Finally Kajri’s AAP won in 28 out of 70 seats in Delhi and 32 were won by BJP which swept out in all other 3 mega-sized provinces in India at the same time sharing as much as 80% of the poll but not only Indian media but also Pakistani media praised AAP. The Pakistani daily Dawn front page reported that AAP won Delhi even as BJP was ahead of AAP. Celebrations started in different cities of Pakistan especially in the Pakistan-administered-Kashmir based areas. Forgot to say, there was a massive online donation campaign by Pakistanis to donate AAP for the Delhi elections. Kajri was earning fame in Pakistan, among Pakistani media and politicians and mass for some unknown reasons, with open eye none can even find remotely a reason for that.

BJP gave a chance to ever-protesting-never-testing AAP to test their governance capabilities in Delhi. And the result was obvious; a lie can’t be held forever. Like Kajri couldn’t hold his lie of being an IT-Commissioner forever, he couldn’t fool the public for his so called magical capabilities the public was hypnotized to believe into. The AAP members started going to office by broom (their political symbol) decorated auto rickshaws for a couple of days and then ordered luxury cars; started posting pictures of normal lifestyle for a couple of days and then started booking costly villas out of government fund etc. The public which believed in the magic broom of AAP to be capable of giving 24x7 electricity ended up in total blackout. There are far more of his double stands that were exposed in his short regime which can’t be listed in a single article. Despite all these, the supreme sign of honesty, his majesty Anna Hazare never criticized the inept governance of Kajri who himself is a bigger sample than Anna; Kajri formed the government in collaboration with the corrupt party they pretended to be protesting. When Kajri realized that unless he leaves his post ASAP, the public will recognize his true capabilities and he may lose his chance to sabotage the upcoming general elections.

Despite this lack of quality Kajri was being praised in Pakistan. In last month an entire team of Pakistani journalists hailing from different media groups interviewed Kajri. Not only the Pakistani media persons but Pakistani leadership and moreover the PM Nawaz Sharif himself said that Kajri will be helpful in resolving the Kashmir-issue with India. Now what the Indians must be surprised at is what the hell the Pakistani media, politics and agencies have to do with a so-called anti-corruption crusader, a failed CM of a small state of India, in the issue of Kashmir? Pakistan has no reason to be happy with the true anti-corruption crusader of India since s/he will benefit and empower India which is certainly not what Pakistan wants. Pakistan doesn’t want a secure, progressive, well-governed and developed India but Pakistan loves Kajri. To say the truth Pakistan will always love the persons pretending to be anti-corruption crusader in India and capturing that post and blocking the real crusaders like Dr. Swamy.

The prime reason for Pakistan’s love for Kajri and AAP is their anti-Indian stand on Kashmir. So far at least 3 Members of Legislative Assembly (MLA’s) of AAP have delivered anti-Indian and pro-Pakistani statements on Kashmir issue and this includes referendum in separatist strongholds, giving Kashmir to Pakistan, ‘freeing’ Kashmir, telling ‘tales’ of alleged Indian Army atrocities on Kashmir and certifying the terrorists killed in Kashmir as innocent boys etc. In this department the major role is played by a famous lawyer named Prashant Bhushan. Kajri has never sacked anyone of them or at least talked against them but he has lodged FIRs against the nationalist protestors protesting antinational statements of AAP leaders. Kajri lodged charges of terrorism on those nationalist ‘terrorists’ who had ‘attacked’ flower vase of AAP office. Kajri is the mastermind behind all these without speaking a word himself.

ISI wants to play the same political game to Balkanize India which CIA played against USSR. ISI wants to install mouthpieces in Delhi which will bolster the political interests of Pakistan up and this would be huge propaganda supporting Pakistani interests in Kashmir. It will embarrass India highly at international forums if some elected politicians of India talk of Pakistani interests and that is what Pakistan wants. Day by day the potential of AAP to get more support from Pakistan is increasing and AAP is fetching all sorts of people who can loosen India’s grip in its foreign policies. The new entry in AAP is Rajmohan Gandhi, the grandson of pre-partition Congress politician MK Gandhi. Rajmohan Gandhi is the man who headed a campaign in America to free the ISI agent and lobbyist Mohammed Ghulam Nabi Fai who was running Pakistani projects to destabilize Kashmir through Kashmiri American Centers. Fai was arrested by FBI under the charge of being ISI agent. Also AAP has several members who have campaigned for the Indian parliament attacker terrorist named Mohammed Afzal Guru. Moreover the AAP leader from Chandigarh is a man named Harbir Singh Nain who is the husband of a zonal editor of an Indian newspaper. Harbir was partner of a Canadian journalist in their efforts to malign an Indian social leader and Punjab (India) Police and the attempt was foiled by members of a covert cyber team that is waiting to expose that group further in their next attempt to malign India and still kept the darker facts secret until a proper time comes to make them pubic. AAP is filling its space with all the malicious elements and that’s what Pakistan wants.

Second reason why Pakistan supports AAP is their one-eyed attitude towards Mullahists. AAP believes in a customized honesty that allows them bashing a corrupt person shouldering another corrupt who is the rival of the former and a financer of AAP. That is why AAP targets selected businessmen under the indications of their rivals and when the corrupt one AAP is exposing, shoulders them, AAP certifies them as honest, like AAP deleted the corruption-charge sheet prepared against ex-CM of Delhi Sheila Dixit and removed the document from site after post-poll collaboration. AAP has always maintained one-eyed blindness towards mega-corruptions by Mullahs. Imam Bukhari who hasn’t paid multi-millions of electricity bills, doesn’t fall in the definition of corruption by AAP. AAP leader who lectures that “communalism is worse than corruption” at Mullah’s hub Islamic India Center finds it secular to connive with rioter and crime-convicted Mullah Tauqeer Reza. The hypnotism of AAP can be exploited by ISI to project the enemies of India as the biggest patriots and nothing can be a bigger nightmare for India. The anti-corruption crusade was nothing but an excuse to come in limelight and if someone looks clearly into the scene, he will find that Kajri and team has done nothing to wipe out corruption what Dr. Swamy did but Anna and team has done a great work- overshadowed Dr. Swamy.

So was Anna exploited? Is it that innocent Anna was unaware of being used by Kajri? Not at all, if Kajri is Nehru, Anna is Gandhi! Anna was fighting the war for real players in a different front. One of the premier objectives of Pakistani political agents working to sabotage Indian elections is to stop the greatest PM candidate of India, Narendra Modi. Anna is using his certification tool to certify anyone he could project against Modi. After visible and shaming failure of Kajri, Anna had no ground for certifying Kajri as PM aspirant, Anna moved to Mamta Bannerjee in Kolkata just a couple of days after the connivance of Mamta and Bangladeshi jihadist group Jamat-e-Islami was exposed. Jamat is the group based on whose performance Osama Bin Laden dreamt of a Talibanistan in Bangladesh after Afghanistan. Jamat has anti-Indian policies as its prime objectives and Mamta was exposed as being collaborator to Jamat. The border districts of West Bengal have become the stronghold of Jamatis by uprooting the original inhabitants of the areas through continuous terrorist activities. The West Bengal border has been open to the Bangladeshi infiltrators on return of a bulk of promised votes and the Pakistani terrorists infiltrate through Bangladesh border as the Indo-Pakistan border is locked. If someone calls it a coincidence then s/he is encouraged to tell why was Mamta certified by Anna who had never spoken a couple of words earlier to each other? Development and clear governance? So is the biggest chit-fund scam by TMC leaders! TMC-MC leaders were also exposed by Covert Wires to have organized a “Free Kashmir” program in 13/02/2011 in collaboration with CPI-ML in West Bengal’s second biggest city Asansol.

Like Anna and Kajri had nothing to do with Pakistan, Mamta whose state shares no border or whose affairs have no relation with Pakistan, was invited to Pakistan. Why? This is because the embassies are lovers-point for political agents. The strategies are decided in official visits and in embassies. If these politicians meet in the Pakistani embassy in India, they would stand naked before public who will question why are they meeting with Pakistanis to run the states of India? However, the strategic dialogs and planning are paramount in smoothly doing their ‘work’. So Pakistan invites them officially and gives them excuse to visit Pakistan. A RAW agent named Colonel RSN Singh exposed the intentions of such visit by Nitish Kumar to Pakistan in a summit organized by ‘India Behind The Lens’ media group. He indirectly pointed the outcome of the meeting, the shift of Indian Mujahideen to Bihar from UP. To add one more fact, the Kishanganj district of Bihar has been the biggest stronghold of the Bangladeshi infiltrators who are around 5-6 Crores in India as various stats suggest. What RSN Singh didn’t mention about the meeting is that special care was taken by the organizers to stop any team intending to take up the cause of justice for Rinkel Kumari, plight of Pakistani Hindus etc but Nitish met with Mohajir representatives who threw Hindu inhabitants of Sindh out of their homes in 1947. The major objective strategized in the meeting was how to sabotage the chances of Narendra Modi in general election 2014.

This electoral suggestion I have for Indians is that don’t look at how big celebrity is luring you, don’t fall in trap of high class certifications (one IITian isn’t a superman but just another among tens of thousands IITians passing every year), nevertheless look at whether ‘you’ and your nation are benefiting from their electoral charter. Don’t fall in the promises they make but judge the performance they displayed. Don’t get lured by Page-3 celebrities, they do everything for money, their choices switch on endorsement values, from cosmetics to snacks. And finally remember, Political Agents can be of any form, “Jinhe Desh ki Fiqar Hai” they don’t do their stuffs for whole year and suddenly appear for a month with a intentional TV show, they perform for one decade no matter media flatter them or not. Your vote, your brain. Good Luck!

The authoress is a Baloch analyst and human rights activist and by profession she is a cryptographer.
http://www.afghanistantimes.af/news_details.php?id=6340