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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-03) - जनता दरबार की इन तीन कहानियों से खुद तय करें करें कि कौन श्रेष्ठ है केजरीवाल, नीतिश कुमार या नरेन्द्र मोदी






चावल पकाते समय सिर्फ एक चावल को हाथ में लेते ही पता चल ज
ाता है कि वह पका है या नहीं। सारे चावल नहीं देखने पड़ते। इसी तरह जनता दरबार के माडल की एक कहानी से आप खुद तय कर लें कि केजरी, नीतिश और मोदी में कौन बेहतर है।

इन दिनों तीन राज्यों के माडल चर्चा में हैं। पहला गुजरात, दूसरा बिहार और तीसरी दिल्ली। अब इनमें से कौन सा बेहतर है यह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और मीडिया के पंडितों के लिए बहस का विषय हो सकता है। लेकिन पिछले तीन दिनों से दिल्ली में जनता दरबार की एक असफलता के उदाहरण ने दो माडलों की पोल खोलकर रख दी। दूसरा उदाहरण सोमवार को पटना में अनायास ही सामने आ गया। इस घटनाक्रम से जब गुजरात के तीसरे माडल की तुलना हुई तो वह मीलों आगे साबित हुआ। मसलन नरेन्द्र मोदी ने आज साबित कर दिया कि प्रशासनिक व्यवस्था को कैसे बेहतर प्रबंधन के साथ चलाया जाता है। इससे देश के दो बड़े राज्यों बिहार और दिल्ली के सत्ताधीशों के जनता दरबार पर सवालिया निशान लगे और मोदी के जनता दरबार की जय होती रही। श्रृंखला लाल किले से के पहले भाग में हमने चर्चा की थी कि केजरीवाल ने कहां से क्या कापी, पेस्ट किया। इसमें जनता दरबार का भी जिक्र था पर आयडिये के कापी पेस्ट में सावधानी नहीं रखी और दुर्घटना हो गई।
पहला वाकिया केजरी की दिल्ली का है। दिल्ली की जनता को उम्मीद थी कि केजरी के जनता दरवार में उनके दु:खड़ों और परेशानियों की सुनवाई होगी। पर पहले ही दिन के दरबार में हजारों की भीड़ और बेइंतजामी के बीच से केजरी ऐसे दुम दबाकर भागे कि जनता दरबार से तौबा कर ली। सोमवार को बाकायदा मीडिया से कहा कि वे अब वे जनता दरवार नहीं लगाएंगे। जनता अपनी शिकायतें आनलाइन, कालसेंटर और लिखित में दे सकती है। वे शनिवार को सिर्फ जनता से मिलेंगे पर उनकी शिकायतें नहीं लेंगे। मिलने के लिए भी वे खुद ही इलाके तय करेंगे। केजरीवाल जी जनता को पहले भी आनलाइन और लिखित में शिकायतें देती रही है पर उनकी सुनवाई हो जब ना। सिर्फ खबरों में बने रहने के लिए जनता दरबार को कांग्रेस के इशारे पर अधिकारियों से ऐसा फेल करवाया कि केजरीवाल को छत पर चढऩे के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं सूझा।
दूसरा वाकिये में सोमवार को पटना में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दरवार में बेरोजगारों ने हंगामा किया। इनका दर्द यह था कि चयनित होने के बाद भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी जा रही है। इनकी शिकायत थी कि मुख्यमंत्री दरबार में सुनवाई नहीं हो रही है जब सुनवाई ही नहीं होती तो इसे बंद कर देना चाहिए। नीतिश का सिस्टम भी गुजरात को कापी कर बनाया गया था। इन दोनों वाकियों से पता चलता है कि सत्ता मेंआने के बाद लोग जनता को कैसे हल्के में लेते हैं।
जनता की तकलीफ को सुनते हुए उनसे मिलो, उसका समाधान करो और जनता से आप अपने हिसाब से मिलो इसमें फर्क है। पहले माडल में आप जनता से दुख- दर्द से वाकिफ होते हैं। और दूसरे में आप अपनी सुविधा से मिलते हैं अगर आप उनकी शिकायतें नहीं लेंगे तो जनता से मिलना सिर्फ एक रस्म अदायगी मात्र है। छत्तीगढ़ में रमनसिंह के जनदर्शन में आने वाले लोगों में बड़ी संख्या में वे गरीब होते हैं जिन्हें इलाज के लिए सरकार से मदद की दरकार होती है। रमनसिंह पहली प्राथमिकता से उन्हें मदद देते भी हैं।
तीसरे वाकिये में शनिवार को केजरीवार के जनता दरबार कार्यक्र्रम की असफलता के बाद मोदी के जनता दरबार स्वागत का माडल चर्चा में था। इसमें मोदी महीने में एक बार खुद शिकायतों को देखते हैं और उनके निराकरण के बारे में खुद वीडियों कान्फ्रेन्सिंग से कलेक्टर, एसपी और अन्य अधिकारियों से बात करते हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के कर्मचारी संबंधित शिकायत का समाधान होने तक फालोअप करते हैं। इसके अलावा स्वागत दरबार चार स्तरीय है। पहला राज्य स्तरीय। इसमें मुख्यमंत्री और मंत्री समस्याएं सुनते हैं। दूसरा जिला स्तरीय है इसमें कलेक्टर, तीसरा तहसील स्तरीय है इसमें तहसीलदार और चौथा ग्राम स्तरीय है इसमें सरपंच समस्याओं का निकाकरण करते हैं। सभी को पता है कि खुद मुख्यमंत्री माह के तीसरे गुरूवार को बैठते हैं और पूरे सिस्टम की समीक्षा करते हैं इसलिए कोई भी कोताई नहीं बरतता।
इसी श्रृंखला के भाग-1 में बताया था कि मोदी के सिस्टम को बिहार ने भी कापी किया है। केजरीवाल ने भी आनन-फानन में कापी किया लेकिन बिना किसी तैयारी के। कहीं से कोई अच्छे आयडिया को ग्रहण करने में हर्ज नहीं है पर आयडिया की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने उस आयडिये को कितना समझा है और उसे कितना लागू किया है।

निष्कर्ष- इन तीनों उदाहरणों के अध्ययन से पता चलता है कि योजनाएं या कानून सभी जगह होते हैं उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें कितनी शिद्दत से लागू किया गया है। जैसे चुनाव आयोग पहले भी था पर बेअसर लेकिन टीएन शेषन ने उन्हीं अधिकारों का इस्तेमाल कर अच्छे- अच्छे नेताओं और राजनतिक दलों को नाकों चने चबवा दिए और साबित किया कि चुनाव आयोग बहुत ताकतवर है। यानी सारा खेल प्रबल इच्छाशक्ति का है। यही है मोदी की सफलता का राज।

न दिनों तीन राज्यों के माडल चर्चा में हैं। पहला गुजरात, दूसरा बिहार और तीसरी दिल्ली। अब इनमें से कौन सा बेहतर है यह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और मीडिया के पंडितों के लिए बहस का विषय हो सकता है। लेकिन पिछले तीन दिनों से दिल्ली में जनता दरबार की एक असफलता के उदाहरण ने दो माडलों की पोल खोलकर रख दी। दूसरा उदाहरण सोमवार को पटना में अनायास ही सामने आ गया। इस घटनाक्रम से जब गुजरात के तीसरे माडल की तुलना हुई तो वह मीलों आगे साबित हुआ। मसलन नरेन्द्र मोदी ने आज साबित कर दिया कि प्रशासनिक व्यवस्था को कैसे बेहतर प्रबंधन के साथ चलाया जाता है। इससे देश के दो बड़े राज्यों बिहार और दिल्ली के सत्ताधीशों के जनता दरबार पर सवालिया निशान लगे और मोदी के जनता दरबार की जय होती रही। श्रृंखला लाल किले से के पहले भाग में हमने चर्चा की थी कि केजरीवाल ने कहां से क्या कापी, पेस्ट किया। इसमें जनता दरबार का भी जिक्र था पर आयडिये के कापी पेस्ट में सावधानी नहीं रखी और दुर्घटना हो गई।पहला वाकिया केजरी की दिल्ली का है। दिल्ली की जनता को उम्मीद थी कि केजरी के जनता दरवार में उनके दु:खड़ों और परेशानियों की सुनवाई होगी। पर पहले ही दिन के दरबार में हजारों की भीड़ और बेइंतजामी के बीच से केजरी ऐसे दुम दबाकर भागे कि जनता दरबार से तौबा कर ली। सोमवार को बाकायदा मीडिया से कहा कि वे अब वे जनता दरवार नहीं लगाएंगे। जनता अपनी शिकायतें आनलाइन, कालसेंटर और लिखित में दे सकती है। वे शनिवार को सिर्फ जनता से मिलेंगे पर उनकी शिकायतें नहीं लेंगे। मिलने के लिए भी वे खुद ही इलाके तय करेंगे। केजरीवाल जी जनता को पहले भी आनलाइन और लिखित में शिकायतें देती रही है पर उनकी सुनवाई हो जब ना। सिर्फ खबरों में बने रहने के लिए जनता दरबार को कांग्रेस के इशारे पर अधिकारियों से ऐसा फेल करवाया कि केजरीवाल को छत पर चढऩे के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं सूझा।दूसरा वाकिये में सोमवार को पटना में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दरवार में बेरोजगारों ने हंगामा किया। इनका दर्द यह था कि चयनित होने के बाद भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी जा रही है। इनकी शिकायत थी कि मुख्यमंत्री दरबार में सुनवाई नहीं हो रही है जब सुनवाई ही नहीं होती तो इसे बंद कर देना चाहिए। नीतिश का सिस्टम भी गुजरात को कापी कर बनाया गया था। इन दोनों वाकियों से पता चलता है कि सत्ता मेंआने के बाद लोग जनता को कैसे हल्के में लेते हैं। जनता की तकलीफ को सुनते हुए उनसे मिलो, उसका समाधान करो और जनता से आप अपने हिसाब से मिलो इसमें फर्क है। पहले माडल में आप जनता से दुख- दर्द से वाकिफ होते हैं। और दूसरे में आप अपनी सुविधा से मिलते हैं अगर आप उनकी शिकायतें नहीं लेंगे तो जनता से मिलना सिर्फ एक रस्म अदायगी मात्र है। छत्तीगढ़ में रमनसिंह के जनदर्शन में आने वाले लोगों में बड़ी संख्या में वे गरीब होते हैं जिन्हें इलाज के लिए सरकार से मदद की दरकार होती है। रमनसिंह पहली प्राथमिकता से उन्हें मदद देते भी हैं।तीसरे वाकिये में शनिवार को केजरीवार के जनता दरबार कार्यक्र्रम की असफलता के बाद मोदी के जनता दरबार स्वागत का माडल चर्चा में था। इसमें मोदी महीने में एक बार खुद शिकायतों को देखते हैं और उनके निराकरण के बारे में खुद वीडियों कान्फ्रेन्सिंग से कलेक्टर, एसपी और अन्य अधिकारियों से बात करते हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के कर्मचारी संबंधित शिकायत का समाधान होने तक फालोअप करते हैं। इसके अलावा स्वागत दरबार चार स्तरीय है। पहला राज्य स्तरीय। इसमें मुख्यमंत्री और मंत्री समस्याएं सुनते हैं। दूसरा जिला स्तरीय है इसमें कलेक्टर, तीसरा तहसील स्तरीय है इसमें तहसीलदार और चौथा ग्राम स्तरीय है इसमें सरपंच समस्याओं का निकाकरण करते हैं। सभी को पता है कि खुद मुख्यमंत्री माह के तीसरे गुरूवार को बैठते हैं और पूरे सिस्टम की समीक्षा करते हैं इसलिए कोई भी कोताई नहीं बरतता। इसी श्रृंखला के भाग-1 में बताया था कि मोदी के सिस्टम को बिहार ने भी कापी किया है। केजरीवाल ने भी आनन-फानन में कापी किया लेकिन बिना किसी तैयारी के। कहीं से कोई अच्छे आयडिया को ग्रहण करने में हर्ज नहीं है पर आयडिया की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने उस आयडिये को कितना समझा है और उसे कितना लागू किया है। 
निष्कर्ष- इन तीनों उदाहरणों के अध्ययन से पता चलता है कि योजनाएं या कानून सभी जगह होते हैं उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें कितनी शिद्दत से लागू किया गया है। जैसे चुनाव आयोग पहले भी था पर बेअसर लेकिन टीएन शेषन ने उन्हीं अधिकारों का इस्तेमाल कर अच्छे- अच्छे नेताओं और राजनतिक दलों को नाकों चने चबवा दिए और साबित किया कि चुनाव आयोग बहुत ताकतवर है। यानी सारा खेल प्रबल इच्छाशक्ति का है। यही है मोदी की सफलता का राज।

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