बनारस से नरेन्द्र मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल ने चुनाव लडऩे
की घोषणा करके साबित कर दिया है कि वे कांग्रेस के इशारे की कठपुतली मात्र हैं। लोकतंत्र
में कोई भी कहीं से चुनाव लड़ सकता है पर केजरीवाल ने मोदी के मुकाबले में उतरकर साबित
कर दिया है कि उनके लिए कांग्रेस का भ्रष्टाचार यानी टूजी, कोयला घोटाला, बढ़ती महंगाई, कुशासन और पालिसी पेरालिसीस
जैसे मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं। अगर रखते तो वे मोदी के बजाय सोनिया या राहुल
गांधी के सामने लड़ते। राहुल और सोनिया के सामने चुनाव नहीं लडऩा पड़े इसलिए उन्होंने
पहले ही राहुल के सामने अमेठी से कुमार विश्वास और सोनिया के सामने राय बरेली से साजिया
इल्मी के नाम की घोषणा की। कुमार तो दो महीन पहले से ही अमेठी में जमे बैठे हैं। केजरीवाल
का हिडन एजेंडा तभी सामने आ गया था जब साजिया
ने रायबरेली में सोनिया गांधी के सामने चुनाव लडऩे से मना कर दिया। अब तो सारी चीजें
आइने की तरह साफ हो गई हैं कि केजरीवाल कांग्रेस विरोधी लहर को कमजोर करना का एजेंडा
लेकर चल रहे हैं।
कांग्रेस विरोधी लहर को कमजोर करने का गेम प्लान
महंगाई, भ्रष्टाचार और कुशासन के कारण देश भर में कांग्रेस विरोधी लहर
है। इससे कांग्रेस दो अगले चुनाव में दो अंकों में भी सिमट सकती है। इसलिए कांग्रेस
के गेमप्लान के अनुसार केजरीवाल महंगाई और भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए गुजरात
और मोदी को टार्गेग करेंगे। अब वे यूपी में दंगों को लेकर मोदी को घेरेंगे। यानी कुल
मिलाकर कांग्रेस महंगाई, भ्रष्टाचार
और कुशासन के मुद्दों से मतदाताओं का ध्यान हटाने के लिए मुकाबले को मोदी वर्सेस राहुल
के बजाय मोदी वर्सेज केजरीवाल बनाने पर लगे हैं।
एनडीए की सरकार बन भी जाए तो मोदी पीएम न बने
कांग्रेस का गणित यह भी है कैसे भी हो भाजपा को २०० से पहले रोका
जाए और अपनी सीटें सवा सौ से डेढ़ के बीच की जाए। इससे तीसरे मोरचे की लूली-लंगडी सरकार
बनवाने में कांग्रेस हार्स सीट पर बैठने की भूमिका में आ जाएगी या यूं कहें कि वह पिछले
दरवाजे से सरकार चलवाएगी। इसके बाद दो साल मेंसरकार गिरवाकर लोकसभा के मध्यावधि चुनाव
करवाकर जनता से यह कहा जाएगा कि विरोधियों का सरकार चलाना नहीं आता इसलिए स्थाई सरकार
के लिए कांग्रेस को वोट दें। कांग्रेस का दूसरा गणित यह है कि भाजपा को १८० और एडीए
को २०० सीटों के पार न जाने दिया जाए। इससे मोदी के प्रधानमंत्री बनने की राह में सहयोगी
जुटाने का गणित आड़े आ जाएगा। यानी मोदी की जगह आडवाणी, राजनाथ या सुषमा कोई
भी प्रधानमंत्री बने कांग्रेस का उतनी परेशानी नहीं है। इसके लिए देश भर में शहरी क्षेत्रों में भाजपा
के वोट काटने के लिए आप ने अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। इस माडल का प्रयोग दिल्ली
विधानसभा चुनाव में हो चुका है। पर वह कांग्रेस की मंशा से कई गुना अधिक सफल रहा यानी
लगभग उल्टा हो गया। इसमें कांग्रेस को जितनी सीटें आनी थी उतनी आम आदमी पार्टी की आ
गई और जितनी आम आदमी पार्टी को आनी थी उतकी कांग्रेस को आ गई। पर घी खिचड़ी में ही
गिरा, इसलिए किसी
को परेशानी नहीं हुई। बस रेफरेंडम का नाटक करकर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना डाली
और फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बचाने के लिए दिल्ली की सरकार छोड़ दी।
यूपी में मुस्लिम वोटों को बांटकर सपा को कमजोर करना
कांग्रेस यूपी में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी खड़े करवाकर सपा
के मुस्लिम वोट बैंक को भी बांटना चाहती है। केजरीवाल इस काम में मौलाना तौकीर रजा
की मदद ले रहे हैं। कांग्रेस का अनुमान है कि मुस्लिम वोट बैंक बंटने से कांग्रेस की
सीटें बढ जाएंगी। इसमें एक खतरा यह है कि मुस्लिम वोट बंटने से कहीं इसका फायदा भाजपा
को न मिल जाए।
भारत में अमेरिकी हित वाली गैर भाजपा सरकार बनाना
अमेरिका के हित में है
कि भारत में गठबंधन की पंगु सरकार बने। गांधीनगर में अमेरिकी राजदूत ने नरेन्द्र मोदी
से मुलाकात की और उसके दो दिन बाद ही केजरीवाल ने सीएम का पद छोड़ दिया। इस बात की
जांच होनी चाहिए कि इस्तीफे से पूर्व दिल्ली
सरकार के दो प्रमुख जनप्रतिनिधियों के प्राइवेट सेल फोन पर अमेरिकी दूतावास से किसका
फोन आया था। कारण कि सीआईए और फोर्ड फाउंडेशन से रिश्तों के चलते केजरीवाल पर अमेरिका
का पिछलग्गू होने के आरोप लगते रहे हैं।
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