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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-40) - हर बनाम हरि और हर बनाम मोदी




हर-हर मोदी के नारे से एक शंकराचार्य नाराज हो गए। सीधे नागपुर फोन लगा दिया। कुछ ही घंटों में मोदी की चिडिय़ा चहचहा उठी कि यानी ट्विट किया कि कार्यकर्ता हर-हर मोदी न बोलें। हर-हर को लेकर चल रहे इस ताजें विवाद के बीच हरि बनाम हर की समाज में प्रचलित एक धारणा और हर-हर का अर्थ आपके सामने लाना चाहता हूं। गुजरात और राजस्थान के शहरों में ये धारणाएं काफी प्रचलित हैं।
सूरत में गुजराती अखबार दिव्य भास्कर का संपादक था। वहां के कुछ डेस्क के साथी एक शहर के नाम को दो तरह से लिखते थे। कुछ लिखते थे हरिद्वार कुछ लिखते थे हरद्वार। मैंने जब इसका अंतर जाना तो मैं भी हैरान रह गया। चूंकि सूरत में वल्लभाचार्य महाराज की एक बैठक है इस नाते वहां बड़ी संख्या में वैष्णव धर्मावलंबी रहते हैं। वैष्णव लोग कहते हैं हरिद्वार यानी हरि यानी विष्णु यानी भगवान बद्री विशाल के यहां जाने का दरवाजा। वैष्णव गलती से भी हरद्वार नहीं बोलेते। उनका मानना है कि वे विष्णु के अवतारों के ही उपासक हैं। इसलिए शिव का नाम लेने से बचते हैं। ऐसा नहीं है कि वे शिव का सम्मान नहीं करते। पूरा सम्मान करते हैं पर उनका मानना है कि वे एक ही ईश्वर को मानते हैं। इसलिए दूसरे पर फोकस करके वे अपने ध्यान को भटकाना नहीं चाहते।
तभी एक पत्रकार साथी ने बताया कि शैव और शाक्त लोग हरिदर नहीं हरद्वार बोलते थे। यानी भगवान शंकर यानी केदारनाथ जाने का दरवाजा।
इसके पहले जब जयपुर में था तब पता चला कि वैष्णव लोग कभी भी दर्जी के पास जाकर यह नहीं कहते कि कपड़े सी देना या सिल देना। कारण की इस शब्द में शि शब्द की ध्वनि आती है जो कि शिव शब्द से मिलती-जुलती है। इसलिए वे दर्जी को कहते हैं- कपड़े बना देना।
अब इनको कौन समझाए कि गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जाए बगैर चार धाम की यात्रा पूरी नहीं होती। अब हरिद्वार कहो या हरद्वार क्या फरक पड़ता है। हमारे ग्रंथ साक्षी हैं कि जब भी देवताओं पर संकट आया भगवान विष्णु की सलाह पर ही वे भगवान शंकर के पास जाते थे और भगवान शंकर की मदद से ही उनके कष्ट्र दूर होते थे।
समुद्र मंथन में निकला विष पीकर भगवान शंकर नीलंठ बने और विष्णु की सलाह पर शंकरजी ने देवताओं और अपने भक्तों को संकट, ताप, विपत्तियों, आपदाओं से बचाकर हर बने। इसलिए देवता और भक्त जब भी संकट में होते हैं वे भगवान शंकर का आह्वान करते हैं कि हमें इन संकटों से उबारो। इसीलिए भक्त कहते हैं- हर-हर महादेव। हर-हर कहने में हरि की भी सहमति है। गंगा या पुण्य नदियों में स्नान के समय भी हर-हर महादेव कहा जाता है। इसका अर्थ है कि महादेव से हम कामना करते हैं कि हमारे सारे पाप धुल जाएं। रामायण से लेकर शिवपुराण तक पढ़ लीजिए आपको पता चलेगा कि भगवान शिव और विष्णु ने सारी योजनाओं और उन्हें अमल में लाने का काम ज्वाइंट एजवेंचर में ही किया है। यानी मिलकर किया है पर दोनों के भक्त अभी तक हर और हरि के विवाद में भी उलझे हुए हैं और भारतभूमि के सारे धर्माचार्य इसे सुलझाने में विफल रहे हैं।
और जब भगवान कृष्ण अपने अवतारों का वर्णन कर चुके होते हैं तो अर्जुन उनसे पूछते हैं कि प्रभु अब आप किस रूप में अवतरित होंगे। इस पर भगवान कहते हैं कि कलियुग में मैं मानव रूप में नहीं अवतार नहीं होगा। लोगों को मिलकर एक ताकत बनानी होगी यही ताकत अधर्म के खिलाफ तारण हार यानी हर-हर महादेव बनेगी। अब देश अपार सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संकटों से गुजर रहा है। इसमें भी यूपी के हाल ज्यादा खराब हैं। ऐसे में बनारस की सभा में कुछ पीडि़त लोगों के मुंह से निकल गया हर-हर मोदी और वह चल निकला तो ठीक है। शब्द को नहीं भाव को समझिये। देश को मंहगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और नैतिक पतन से छुटकारा हर हालत में चाहिए। इसलिए जनता हर-हर मोदी ही क्यों हम हर- हर गांधी और हर-हर केजरीवाल करने को भी तैयार है। हर-हर केजरीवाल तो दिल्ली में हो ही गया था, लगा था कि कोई तारणहार आ गया है पर वो तो पचास दिन पूरा होने से पहले ही भाग गया। पिछले दो चुनाव से देश की जनता हर-हर गांधी और हर-हर मनमोहन कर ही रही थी, पर क्या मिला। ऐसे में अब वह नए तारणहार के लिए हर-हर मोदी कर रही है तो परेशानी क्यों होनी चाहिए। परेशानी तो मोदी को होनी चाहिए कि अगर वो तारणहार नहीं बन पाए तो अगले चुनाव में जनता जनार्दन का शिव का तांडव देखने को भी तैयार रहें।

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