संविधान ने नाम पर खाई हर कसम और प्रावधान को तोड़ रहे देश के गृहमंत्री सुशील शिदें और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बर्खास्तगी के लिए पर्याप्त संवैधानिक आधार हैं।
@@@केस-1: मुजफ्फरनगर दंगों में जब सिर्फ मुस्लिम लोगों के मुआवजा देने की बात अखिलेश यादव सरकार ने की तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी कि राज्य धर्म के आधार मुआवजा नहीं दे सकता। इसलिए यूपी सरकार को सभी पीडि़तों को मजबूरी में मुआवजा देना पड़ा।
@@@केस-२: केन्द्रीय केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने राज्यों से फिर कहा है कि किसी की गिर$फतारी से पहले यह जांच लें कि इसमें कोई मुस्लिम तो नहीं है।
शहर में तनाव है क्या, पता करो चुनाव है क्या की तर्ज पर लोकसभा चुनाव सामने आते ही मुस्लिम वोटों के लिए राजनीति के बाजीगर मजमा लगाने,सजाने हैं। क्या आपको पता है कि धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति करना संविधान की प्रस्तावना, एवं पद और गोपनीयता की शपथ के खिलाफ और जनप्रतिनिधत्व कानून के खिलाफ है। आज इस मुद्दे को इसलिए रख रहा हूं कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए आज संविधान और शपथ का द्रोपदी की तरह चीरहरण किया जा रहा है। भारत में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका सर्वोच्य नहीं है। अगर कोई सर्वोच्य है तो वह है संविधान यानी कानून का शासन। आज जब देश के प्रमुख लोग ही संविधान को तोड़ रहे हैं। ऐसे में उन्हें पद पर रहने का एक मिनट भी अधिकार नहीं है। यह वह मुद्दा है जिस पर सरकार या मंत्री को बर्खास्त किया जा सकता है। नेता तो पहल करेंगे नहंी अब सुप्रीम कोर्ट पहल कर ऐसे लोगों को बर्खास्त घोषित करे। कारण कि सुुप्रीम कोर्ट के पास संविधान की रक्षा और उसका पालन सुनिश्चित कराने की शक्ति है। लोकसभा चुनाव से पहले किस- किस नेता ने मुस्लिम वोटों के लिए संविधान और शपथ तो तोड़ा उनका एक पोस्टमार्टम मेरी श्रृंखला लालकिले से के भाग-२ में प्रस्तुत है।
@@@केन्द्र सरकार ने मुस्लिम वोटों के लिए यह किया
१. केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे ने पहले विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों को कहा है कि वे आतंकवाद के मामले में जेल में बंद मुस्लिम लोगों के मामलों की समीक्षा करें।
२. सुशील शिंदे ने फिर राज्यों से कहा है कि किसी की गिर$फतारी से पहले यह जांच लें कि इसमें कोई मुस्लिम तो नहीं है।
@@@यहां किया संविधान और शपथ का उल्लंधन
@@@संविधान का उल्लंधन- संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि वह पंथनिरपेक्ष है यानी विभिन्न समुदायों से पंथ के आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा। कानूनन किसी भी बेगुनाह को जेल में बंद नहीं किया जाना चाहिए। फिर वह चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम। आतंकवाद जैसे गंभीर मसले पर संविधान खुद गृहमंत्री को कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं देता। वे गुनाहगार हैं या नहीं इसका फैसला तो अदालत करेगी। हां अगर वे सचमुच कुछ करना चाहते हैं तो न्याय प्रक्रिया की गति को तेज करवा सकते हैं। जो उन्हें करवानी भी चाहिए लेकिने वे इसे छोडक़र सब कर रहे हैं।
@@@शपथ का उल्लंधन- शिदें ने यह कहकर अपनी उस शपथ तो तोड़ा है जो उन्होंने संघ के मंत्री बनने के समय ली थी। संविधान की अुनसूची ३ और पैरा ५ के अनुसार उन्होंने जो शपथ ली थी उसमें ये बातें भी थी वे - विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखूंगा। मैँ सभी लोगों के साथ भय या पक्षपात, राग या द्वेश के बिना संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा। शिंदेजी आप तो संविधान की भावना के अनुसार एक धर्म विशेष के प्रति चुनावी राग दिखा रहे हैं। पर शिदेंजी क्या दोष वे तो वहीं करते हैं जो आलाकमान कहता है। इसमें संविधान टूटता है तो टूट जाए।
उत्तरप्रदेश में तो अखिलेश ने हद ही कर दी
१. यूपी की अखिलेश सरकार ने घोषणा की थी कि मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम पीडि़तो को मुआवजा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार के बाद कि राज्य किसी को भी धर्म के आधार पर मुआवजा नहीं दे सकता सरकार को सभी पीडि़तों को मुआवजा देने का फैसला करना पड़ा।२. मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम आरोपियों को छोडऩे पर यूपी सरकार विचार कर रही है।
३. मुजफ्फरनगर दंगों के पांच हजार से भी कम शरणार्थी शिविरों में सोनिया, राहुल, मनमोहन, लालू सहित सभी नेता जा चुके हैं पर ३० साल से विस्थापिम पांच लाख कश्मीरी पंडितों के शिविरों में इनमें से एक भी नेता नहीं गया।
यहां किया संविधान और शपथ का उल्लंधन
१. मुजफ्फरनगर दंगों में जब सिर्फ मुस्लिम लोगों को मुआवजा देने की बात आई तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई थी कि राज्य धर्म के आधार मुआवजा नहीं दे सकता। इसलिए यूपी सरकार को सभी पीडि़तों को मजबूरी में मुआवजा देना पड़ा। यह संविधान के सेक्यूलर ढांचे और उस शपथ के खिलाफ है जिसमें सभी के साथ न्याय करने की बात कही गई है।२. मुजफ्फरनगर दंगों के मुस्लिम आरोपियों को छोडऩे का विचार फिर संविधान और शपथ के खिलाफ जाता है।
३. मुजफ्फरनगर दंगों के ५००० से भी कम शरणार्थियों से राजनीतिक दल के नेताओं का विशेष राग और ५ लाख कश्मीरी पंडितों की उपेक्षा दर्शाती है कि संविधान की प्रस्तावना और शपथ के कथन के अनुसार स्टेट और उसके मंत्री लोगों से भेदभाव कर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले साम्प्रदायिकता के आरोपों से घिरे मौलाना तौकीर रजा खान का समर्थन लेने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी गए। तब तो केजरीवाल किसी पद पर नहीं थे और न ही उन्होंने संविधान के नाम की कमस खाई थी। अपने आप को नैतिकता का पुरोधा कहने वाले केजरीवाल एक नागरिक होने के नाते संविधान को कैसे तोड़ सकते हैं।@@@अंतंत: - सुशील शिंदे करें भी क्या करें अब संविधान को मानें या आलाकमान को। उनके हालात पर ये शेर ही काफी है।
ये बदन से नहीं जेहन से अपाहिज हैं, वही करेंगे जो रहनुमा बताएगा।
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