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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-24) - मोदी को 30 सीटों का नुकसान कर तीसरे मोरचे की सरकार के लिए केजरीवाल ने छोड़ी दिल्ली की गद्दी



अन्ना हजारे ने ममता को प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार बताया और उनके लिए चुनाव प्रचार करने की बात कही और उसके एक दिन बाद ही उनके पुराने चेले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडक़र लोकसभा चुनाव के समर में कूदने का ऐलान कर दिया। ये दोनों घटनाएं महज संयोग नहीं है। यह कांग्रेस की रणनीति के तहत तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने की कवायद का एक हिस्सा है। कांग्रेस मान चुकी है कि वह अकेले दम 60 से 70 सीटें ले आए तो भी बहुत होगा। दिन ब दिन इसमें आ रही कमी के चलते कांग्रेस को डर है कि वह कहीं 50 तक न सिमट जाए। इसी कारण कांग्रेस ने अपने बचाव में तीसरे मोरचे का राग छेड़ दिया है। कांग्रेस का गणित है कि अगर एनडीए को 200 या 210 सीटों के आस-पास रोक दिया जाए तो फिर तीसरे मोरचे की सरकार अच्छी संभावनाएं बनती हैं। ऐसे में केजरीवाल को भाजपा को लगभग तीस सीटों पर नुकसान पहुंचाने का जिम्मा दिया गया है।
लोकसभा चुनाव के लिए आ रहे प्री पोल सर्वेक्षणों के अनुसार भाजपा नीत एनडीए गठबंधन सत्ता से तीस से चालीस सीटें ही दूर है। कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन भी 100 सीटों से अंदर सिमटता दिखाई दे रही है। भाजपा का आंध्र में तेलगुदेशम और असम में एजीपी से गठबंधन लगभग तय है। इससे उसे 20 अतितिरक्त सीटों का फायदा हो सकता है। यानी ढाई सौ सीटों का गणित बैठ गया है। ऐसे में तीसरे मोरचे का कोई रोल नहीं रहता। कारण कि एनडीए की 250 सीटें आने की स्थिति में वायएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल, जयललिता या द्रमुक में से कोई एक एनडीए को समर्थन दे सकते हैं। ये पहले भी एनडीए के घटक रह चुके हैं। लेकिन अगर एनडीए को तीस सीटों का घाटा हो जाए यानी वह दो सौ के आस-पास सिमट जाए तो फिर कांग्रेस अपने समर्थन से तीसरे मोर्चेकी सरकार बनवाकर 2016 में मध्यावधि चुनाव करवाने की योजना बना रही है।
इसीलिए पहले से तय योजना के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्र्रेस की योजनानुसार अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई। कांग्रेस के वोट भाजपा में जाने से रोकने और कुछ भाजपा के वोट काटने के लिए। कांग्रेस का अनुमान था कि उसे 27-28 और केेजरीवाल को 7-8 सीटे मिल जाएंगी। इस योजना में केजरीवाल को समर्थन के बदले उप मुख्यमंत्री पद देने का प्रस्ताव था। लेकिन हो गया उल्टा। केजरीवाल कांग्रेस के लिए भस्मासुर बन गए। चूंकि कांग्रेस को अपने प्रयोग को सफल करना था इसलिए उसने केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनवाकर भाजपा को सत्ता से दूर किया। पहले कांग्रेस की इस योजना का केन्द्र स्वामी अग्रिवेश थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान एक स्टिंग में उनकी कांग्रेस सरकार से नजदीकियां उजागर होने के बाद कांग्रेस ने विलासराव देशमुख की मदद से अन्ना और केजरीवाल को साधा। देशमुख की ही मदद से अन्ना ने रामलीला मैदान में अपना अनशन समाप्त किया था। इसी कारण अन्ना ने यूपीए सरकार का लोकपाल पास करवाया।

आप को भाजपा को रोकने का टार्गेट

कांग्रेस को जब चुनाव से सौ दिन पहले यह लगने लगा कि भाजपा की सीटें धीरे-धीरे बढ़ रही हैं तो उसने बढ़त रोकने और भाजपा को 200 से 210 सीटों के बीच रोकने के लिए केजरीवाल को अन्ना के जनलोकपाल के नए शस्त्र के साथ उतारा है। ताकि तीसरे मोरचे की सरकार बनने की स्थिति में केजरीवाल या ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनवाया जा सके। लोकसभा में जिसकी सीटें ज्यादा होगी उसे यह मौका मिलेगा। कांग्रेस की योजना है कि केजरीवाल खुद 20 से 25 सीटें लाए और भाजपा को दस सीटों पर नुकसान पहुंचाए। भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए यूपी, बिहार, दिल्ली, एनसीआर, कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीटें तय हैं। इसमें कांग्रेस की केजरीवाल की मदद से सपा के मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की योजना है।
दिल्ली के लिटरेचल फेस्टिवल में केजरीवाल का एक सप्ताह पहले जनलोकपाल के मुद्दे पर इस्तीफे का संकेत देना, जानबूझकर नियमों के अनुसार जनलोकपाल विधेयक उप राज्यपाल को नही भेजना, विधेयक की कापी ऐन समय पर विधायकों को देना, एलजी का स्पीकर को पत्र लिखन, अन्ना का ममता की तारीफ करना, प्रधानमंत्री पद के लिए पात्र बताना, उनके लिए चुनाव प्रचार का फैसला करना, दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस का वित्त विधेयक पास कराना पर जनलोकपाल पेश करने का विरोध करना(भाजपा को विपक्षी दल है इसलिए विरोध करेगा ही), विधानसभा में केजरीवाल का यह कहना कि यह उनका यहां अंतिम सत्र है, बाहर पहले से ही एसएमएस से बुलाए गए कार्यकर्ताओं का हुजूम और बाहर आकर मोदी को निशाना बनाना संकेत है कि सब एक पहले से लिख पटकथा के तहत ही हो रहा है और उसका एक मात्र मकसद है मोदी और भाजपा को सत्ता में आने से रोकना।

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