गुजरात विधानसभा के 2007 के चुनावों के कवरेज के लिए मैं अमदाबाद गया था। दिव्यभास्कर के लिए विधानसभा चुनाव की कमान मेरे पास थी। तब 15 दिसंबर 2007 को मैंने अपने ब्लाग ई मिरची में लिखा था कि मोदी और इंदिरा गांधी में काफी समानताएं हैं। इसका शीर्षक था मोदी इज बीजेपी एंड बीजेपी इज मोदी। आज लगभग 6 साल बाद मोदी इस मुकाम पर पहुंच गए हैं। मोदी और इंदिरा गांधी की तुलना करने वाला यह देश में पहला लेख था।
ब्लाग ई मिरची (15दिसंबर 2007 )
मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी
गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण के मतदान को अब 24 घंटे से भी कम का समय बचा है। इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव सत्तर और अस्सी के दशक के लोकसभा चुनाव से काफी मिलते जुलते हैं। तब तानाशाह इंदिरा गांधी का वन मैन शो चलता था और इमरजेंसी के बाद तो इंदिरा वर्सेज आल का नारा बुलंद हुआ था। उस दौर में कांग्रेसी दलील दिया करते थे इंदिरा इज़ कांग्रेस एंड कांग्रेस इज़ इंदिरा। लगता है आज इतिहास खुद को दोहरा रहा है गुजरात में नरेन्द्र मोदी के रूप में। गुजरात में मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी का फार्मला चल रहा है। वही शैली, वही अदा, वही जनता से सीधा संवाद, वही तल्खी, वही भीड़ से अलग दिखने की अदा। कहीं नरेन्द्र मोदी इंदिरा गांधी को कापी तो नहीं कर रहे हैं। खबरी का उत्तर है- हां। अगर मोदी चुनाव जीत गए तो मोदी इज़ बीजेपी एंड बीजेपी इज़ मोदी का फार्मला सुपर हिट हो जाएगा ।
इंदिरा और मोदी में समानताएं
- दोनों ही जिद़दी हैं और दोनों की सैली तानाशाह सरीखी है।
- दोनों के खिलाफ विपक्षी लामबंद हो गए। तब इंदिरा वर्सेस आल और अभी मोदी वर्सेज आल।
- दोनों के खिलाफ अपनी ही पार्टी के लोगों ने बगावत की थी। तब मोराराजी देसाई, चौधरी चरणसिंह और बाबू जगजीवन राम ने पार्टी छोडी थी और अभी सुरेश मेहता, शंकरसिंह वाघेला आदि ने।
- दोनों के अल्पसंख्यकों का दमन किया। एक ने करवाया था आपरेशन ब्लू स्टार दूजे ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगे को रोकने में राजधर्म का पालन नहीं किया।
- दोनों में जनता को अपनी ओर खींचने और उनसे संवाद की अनोखी शैली है।
- अंतिम समानता इस लेख के अंत में ।
मोदी वर्सेज आल
गुजरात के राजनीति इतिहास में यह पहला मौका है जब चुनाव में दोनों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पक्षों के लिए एक ही मुद्दा है और वह है मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी। भाजपा का सारा प्रचार अभियान, केम्पेन और विज्ञापन सभी मोदी के इर्द-गिर्द ही धूम रहे हैं। यानी गुजरात में मोदी आधारित चुनाव लड़ा जा रहा है। क्या गुजरात के साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों को मोदी चाहिए अथवा नहीं चाहिए के मुद़दे पर ही मतदान करना है। इतिहास गवाह है गुजरात के चुनाव में लहर होती है। इस चुनाव में अभी तक तो कोई लहर नहीं है। इस चुनाव में लगता है लहर अंतिम समय पर ही चलेगी। मोदी चाहिए अगर यह मुद़दा चला तो सारे गुजरात में चलेगा और नहीं चला तो सारे गुजरात में नहीं चलेगा। इससे एक बात तो तय लगती है कि जिसे सत्ता मिलेगी पूर्ण बहुमत के साथ मिलेगी। अगर हम शुरआती संकेतों की बात करें तो गुजरात को मोदी चाहिए का मुद़दा चलने की संभावना सबसे ज्यादा लगती है।
असंतुष्टों के कंधे पर कांग्रेस की बंदूक
पिछले एक वर्ष से कांग्रेस मोदी विरोधियों और भाजपा के असंतुष्टों के कंधे पर बंदूक रखकर गुजरात के सिंहासन को साधने में लगी थी। भाजपा के ये लोग सरकार चलाने की मोदी की तानाशाही शैली से नाराज थे। गुटों में बंटी कांग्रेस के लिए यह कम उपलब्धि नहीं है कि तमाम संभावनाओं के विपरीत उसने भाजपा को इस चुनाव में कड़ी चुनौती दी है। अब यह बात अलग है कि इसके लिए उसे भाजपा के असंतुष्टों की बैसाखी का सहारा लेना पड़ा है। अन्यथा एक साल पहले तो यहां तक कहा जा रहा था कि मोदी बड़ी ही आसानी से अगला चुनाव जीत जाएंगे।
टिकिट वितरण को लेकर दोनों ही प्रमुख दलों में अंतिम समय तक घमासान मचा रहा। चुनाव को मोदी वर्सेज आल करने के लिए कांग्रेस ने यूपीए के घटल दलों सहित भाजपा के असंतुष्टों को अपने में मिला लिया। इस कारण टिकिट वितरण में काफी असंतोष ही हुआ और असंतुष्टों को भी ऐन वक्त पर ही टिकिट मिल पाया।
इसके ठीक विपरीत भाजपा के लिए कुछ भी अच्छा नहीं था। भाजपा के कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी, संघ परिवार, विश्व हिन्दू परिषद, किसान संघ का असहयोग, मीडिया और चुनाव आयोग के अंकुश से भाजपा काफी पस्त हो गई थी लेकिन अरूण जेटली ने दिल्ली से इलेक्शन मैनेजर्स की पूरी फौज गुजरात में लगा दी। अरूण जेटली पिछले कई सप्ताह से गुजरात में डेरा डाले हुए हैं ।
विकास का मुद़दा कहीं हेवी सेलिंग जैसा तो नहीं
गुजरात का चुनाव विकास के मुद़दे पर ही लड़ने की बारम्बार घोषणाएं भाजपा के आला नेता पिछले दो महीने से करते आए थे। इसलिए नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत भी विकास के नारे से की। उन्होंने इसमें विकसित गुजरात, महिलाओं, आदिवासियों के कल्याण सहित अपने समस्त प्रयासों को जनता के सामने रखा भी लेकिन जनता इससे कुछ प्रभावित भी हुई लेकिन कोई खास रिसपोन्स नहीं मिला और मिलना भी नहीं था। कारण कि अभी तक विकास के आधार पर इस देश में तो किसी सरकार ने चुनाव नहीं जीता है। हकीकत तो यह है भाजपा कभी भी विकास को चुनावी मुद़दा बनाना ही नहीं चाहती थी। कारण कि भाजपा को विकास ने नारे का हश्र पता है किस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव में शाइनिंग इंडिया के नारे की हवा निकल गई थी और अटलजी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
विकास से कांग्रेस को भ्रमित कर हिन्दुत्व की गोलाबारी
भाजपा का विकास का नारा कांग्रेस को भ्रमित करने की रणनीति का एक हिस्सा था। कांग्रेस इसके भ्रम में आ गई कि भाजपा इस चुनाव में विकास को मुद़दा बनागी। यह उसकी एक बड़ी रणनीतिक भूल भी है। युदध के मैदान में जब आपके लड़ाकू विमान, टैंक रेजीमेंट या पैराट्रूपर्स मूव करते हैं तो उनकी हलचल और टैंको के चलने की आवाज को छुपाने के लिए तोपखाने से भारी गोलाबारी की जाती है। इससे दुश्मन का ध्यान गोलबारी की ओर ही लगा रहता है, उसे टैंको के आने की खबर तभी मिल पाती है जब वह बिल्कुल ही सामने आ जाता है।
मोदी शुरुआत से हिन्दुत्व को ही चुनावी मुद़दा बनाना चाहते थे पर उसमें खतरा यह था कि कांग्रेस उसका काउन्टर अटैक कर देती। भाजपा ने रणनीति के मुताबिक कांग्रेस को विकास की गोलबारी में इतना उलझा दिया कि उसे लगने लगा कि कहीं विकास के मुद़दे पर मोदी कहीं चुनाव ही जीत लें। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने विकास के मुद़दे को भटकाने के लिए और मीडिया का ध्यान अपनी ओर करने के लिए सोहराबुददीन का मामला छेड़ दिया और मोदी को सोनिया के मुंह से कहलवा दिया मौत का सौदागर। कांग्रेस इस बयान से भी बार- बार अलटती-पलटती रही। भाजपा या कहें कि मोदी चाहते ही यही थे। कांग्रेस ने जैसे ही मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए जैसे ही सोहराबुददीन की एलओसी क्रास की मोदी ने अपने हिन्दुत्व के जंगी जहाज से उड़ान भरी और अपने भाषणों की बम बार्डिंग कांग्रेस पर शुरु कर दी।
गुजराती मुस्लिम तुष्टिकरण से नाराज
गुजरात से साढ़े पांच करोड़ गुजराती मोदी के भाषणों से प्रभावित हुए हैं ऐसा भी नहीं है परन्तु सोनिया की सभाओं के बाद उन्हें ऐसा लगने लगा कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकती है और इस बारे में लगाए गए भाजपा के आरोप सही हैं। गुजरात का बहुसंख्यक मतदाता यह सह नहीं सकता कि कांग्रेस उसकी उपेक्षा कर मुस्लिमों को खुश करे। चूंकि उसके पास इसके खिलाफ एक ही शस्त्र है और वह है नरेन्द्र मोदी। जब तक कांग्रेस अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए गुजरातियों की उपेक्षा करती रहेगी तब तक नरेन्द्र मोदी का हरा पाना उसके लिए मुश्किल रहेगा।
मोदी ने कांग्रेस के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद़ध भी चला रखा है। मोदी ने यह लगभग सा सिद़ध कर दिया है कि उनके खिलाफ की गई कोई भी टिप्पणी गुजरात और वहां के साढ़े पांच करोड गुजरातियों का अपमान है। इसलिए वे सभाओं में कहते हैं कि यह गुजरात का अपमान है, यह गुजरात को गाली दी गई है।
मोदी ही भाजपा है यह नारा पिछले दो साल से उछल रहा है चुनाव आते ही मोदी ने नया नारा चलाया जीतेगा गुजरात। इसमें नारे में वे अपना प्रतिबिम्ब देखते रहे। भाजपा के नेताओं की आंख में यह नारा खटका भी लेकिन मोदी ने यह कहकर सभी को चुप कर दिया जीत का रास्ता इसी नारे से होकर जाता है। इसके बाद भाजपा आलाकमान के पास भी चुप रहने के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं था।
मोदी विरोधी बातें भी सुन रही है जनता
गुजरात में मोदी की सभाओं में बड़ी भीड़ उमड़ी और मोदी की बातों से लोग काफी प्रभावित भी दिखे। जतना से सीधे बात करते हुए अपनी बातें उनके मुंह से कहलाने का मोदी ने बड़ा अच्छा प्रयोग किया लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि जनता मोदी विरोधी बातें नहीं सुनना ही चाहती। मोदी विरोधी सभाओ में भी काफी भीड़ उमड़ी है।
कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने गुजरात के चुनाव को काफी महत्व देते हुए काफी समय निकाला और कोई एक दर्जन चुनावी रैलियों को संबोधित किया। इनमें लाखों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया और सोनिया की बातों को बड़े ही गौर से सुना। इसी तरह सरदार पटेल उत्कर्ष समिति के बैनर तले भाजपा के बागी गोवर्धन झड़पिया और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सौराष्ट्र के विभिन्न जिलों में हुईं सभाएं भी प्रभावी रहीं। इसी के कारण भाजपा को सौराष्ट्र में कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती हैं। अगर दूसरे चरण में भी कुछ ऐसा ही चला तो कहा जा सकता है जनता को मोदी नहीं परिवर्तन चाहिए।
मोदी का चुनावी जुआं
मोदी ने लिए इस बार एक चुनावी जुआं भी खेला है। पार्टी, संघ,विहिप कोई भी उनके साथ नहीं हैं सिर्फ और सिर्फ मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। शहरी इलाकों में मोदी के पक्ष में माहौल दिखता है। अगर यही स्थिति गावों खासकर मध्य गुजरात के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में रही तो मोदी ही चाहिए का मुद़दा काफी प्रभावी हो जाएगा। और भाजपा को पूरे बहुमत के साथ सत्ता मिलेगी। आंखों में सत्ता सुंदरी का सपना संजोए मोदी विरोधी नेता शंकरसिंह वाघेला, भरतसिंह सोलंकी,गोवर्धन झड़पिया मानते हैं कि मोदी के विकास के मुद़दे का हश्र चंद्राबाबू नायडू और शाइनिंग इंडिया के नारे की तरह ही होगा।
मोदी का मैजिक चलेगा क्या
अब तो 23 दिसंबर को ही पता चलेगा कि गुजरात को मोदी चाहिए या नही। मोदी का मैजिक अथवा मास हिस्टेरिया चलेगा या नहीं। इल सभी के बीच एक बात तय है कि गुजरात के इतिहास में पहली बार हो रहे मुद़दा या लहर विहीन चुनाव में एक व्यक्ति ने अपने मैजिक से सरगरर्मी ला दी। अब नतीजा चाहे जो भी हो। जीते तो गुजरात का ताज, बाद में भाजपा का भी। साथ में इंदिरा गांधी जैसे एक और करिश्माई नेता का तमगा वो भी बिल्कुल मुफ़त। इस सारे सवालों के बीच दांव पर लगा है भाजपा का भविष्य। अगर ये चुनाव जीते तो अगले साल होने वाले लोकसभा ओर दस राज्यों के विधानसभा चुनाव का रास्ता काफी आसान हो जाएगा अन्यथा मोदी और भाजपा दोनों का पतन तय है ।
खबरी ने बात इंदिरा गांधी ने शुरु की थी तो समाप्त भी इंदिरा गांधी से।
इंदिरा और मोदी में अंतिम समानता
इंदिरा गांधी ने सेवादल सहित कांग्रेस के सभी संगठनों को खत्म कर दिया । इसके बाद अपने नाम से ही नई कांग्रेस खड़ी कर ली । मोदी भी इसी रास्ते पर चल चुके हैं वे संघ और विहिप को खत्म करने की ओर अग्रसर हैं । इसी वजह से भी संघ और विहिप इस चुनाव में उनके साथ नहीं दिख रहे हैं ।
सवाल - इंदिरा गांधी रूल बुक के हिसाब से मोदी का अगला कदम क्या होगा
जवाब- भाजपा मोदी का गठन------
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