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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-09) -मोदी का मास्टर स्ट्रोक, खेला पिछड़े वर्ग के प्रधानमंत्री का कार्ड


ब्राह्मण, बनियों, ठाकुरों के साथ 41 फीसदी ओबीसी वोटों   

की  जुगलबंदी का फार्मूला


विरोधी सोच रहे थे कि २०१४ के लोकसभा चुनाव के लिए नरेन्द्र मोदी उत्तरप्रदेश और बिहार में हिन्दू और मुस्लिम के आधार पर वोटों का धु्रवीकरण करेंगे। लेकिन हुआ इससे ठीक उल्टा। मोदी ने सभी की सोच को चकमा देते हए आज नई दिल्ली के रामलीला मैदान से ओबीसी प्रधानमंत्री का ब्रहास्त्र चल दिया है। इससे सभी पार्टियां खासकर बसपा, सपा, जनता दल और राजद और चारों खाने चित हो गईं हैं। आज मोदी ने खुद कहा कि  वे पिछड़ी जाति में पैदा हुए हैं इसलिए उच्च वर्ग में पैदा हुए वंशवादी लोग उनके खिलाफ चुनाव लडऩा अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। मोदी मोड़ वणिक जाति के हैं। अगर मोदी प्रधानमंत्री चुने गए तो वे पिछड़ी जाति से इस पद पर पंंहुचने वाले देश पहले व्यकित होंगे। यह बड़ा विरोधाभास  है कि  पिछड़ी जाति के नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहीं जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने बनाया है। यह आरएसएस की सोश्यल इंजीनियरिंग की कार्ययोजना का ही एक हिस्सा है। इसके लिए आरएसएस की टीमें अभी भी ओबीसी वाले क्षेत्रों में जुड़ी हुई हैं। मंडल आयो की १९८० की रिपोर्ट के अनुसार देश में ५२ फीसदी ओबीसी और नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन के २००६ के आंकडों के अनुसार देश की आबादी में ४१ प्रतिशत ओबीसी है। खैर इन दोनों आंकडो को लेकर विवाद भी है। पर एक बात तो तय है है कि देश की आधी आबादी ओबीसी की है। यानी 41 प्रतिशत ओबीसी और 21 प्रतिशत सवर्ण वोटों यानी कुल आबादी के 62 फीसदी हिस्से को लेकर पर नरेन्द्र मोदी और आरएसएस की राजनीति केन्द्रित है।

नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन के २००६ के आंकडों के अनुसार देश की आबादी में ४१ प्रतिशत ओबीसी,२० प्रतिशत एससी और ९ प्रतिशत एसटी और शेष अन्य वर्ग के हैं। अन्य में 21 फीसदी सवर्ण जातियां और शेष मुस्लिम हैं। इसमें से लगभग ३०  प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या, यूपी, बिहार, उड़ीसा,झारखंड, बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में रहती है।(देखे इस पोस्ट के साथ जातियों की संख्या का प्रतिशत चार्ट)
भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को जबसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तभी से देशभर खासकर यूपी, बिहार और राजस्थान के जातिवादी समाज में अंडर कंरट है। पिछड़े वर्ग के लोग मोदी की उम्मीदवारी को लेकर वे खासे उत्साहित हैं। दो माह पूर्व हांगकांग की एक बड़ी इनवेस्ट कंपनी के चुनावी सर्वे के अनुसार यूपी में उस समय भाजपा को ४० से ४२ सीटें मिल रही थीं। अब जबकि मोदी ने खुले तौर पर ओबीसी का कार्ड खेल दिया है और वे बनारस या पूर्वी यूपी की किसी सीट से चुनाव लड़ भी सकते हैं ऐसे में ओबीसी वोट और तेजी से भाजपा की ओर आएंगे। खासकर यूपी-बिहार- महाराष्ट्र में बसपा, सपा, कांग्रेेस व आरजेडी और दक्षिण में ओबीसी के वोट अन्य पार्टियों से खिसककर भाजपा के पास आएंगे। आपको यह बता दूं कि ओबीसी वोटों के कारण ही विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है।
मोदी के इस ब्रहस्त्र से यूपी में माया, मुलायम और बिहार में नीतिश, लालू के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा टूट सकता है। भाजपा के साथ सवर्ण वर्ग के लोग तो थे ही। उसे ब्राह्मण, बनियों और ठाकुरों की पार्टी तो कहा ही जाता था। जब से ओबीसी वर्ग   भाजपा से जुड़ा हैं जनसंघ से जमाने से चल रहा सत्ता का अकाल टूट गया है। गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की लगातार सत्ता में आने के पीछे सुशासन से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक का हाथ है। मोदी को भाजपा में ही चुनौती बन रहे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी ओबीसी से ही आते हैं। यानी हिन्दुओं में बहुसंख्यक ओबीसी वर्ग का एक व्यक्ति अब प्रधानमंत्री का उम्मीदवार है। यही लोकतंत्र की विजय है।





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