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सोमवार, 5 मई 2014

लालकिले से (भाग-92) - स्नूपगेट कांड में राष्ट्रपति भवन के संकेत के बाद कांग्रेस बैकफुट पर, जज की नियुक्ति का फैसला नई सरकार पर छोड़ा


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इन दस कारणों से स्नूपगेट कांड में कांग्रेस का पक्ष हुआ कमजोर
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राष्ट्रपति भवन के संकेतों के बाद केन्द्र की यूपीए- 2 सरकार ने नई सरकार के गठन के मात्र 2 सप्ताह पहले स्नूपगेट कांड की जांच के लिए जज की नियुक्ति का इरादा छोड़ दिया है। कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि अब नई सरकार ही इसंपर फैसला करेगी। यूपीए के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और नेशनल कान्फ्रेंस ने भी सरकार के इस कदम को गलत बताया था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने बाकायदा इसके लिए प्रधानमंत्री डा मनमोहनसिंह से टेलीफोन पर बात भी की थी। चुनाव आयोग भी जज की नियुक्ति के बारे में हरी झंडी दे चुका है।
इससे पहले चुनाव की घोषणा से पहले 6 बिलों को अध्यादेश की शक्ल में लाने और सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने के कांग्रेस के अरमानों पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पहले दो बार भी पानी फेर चुके हैं। दरअसल स्नूपगेट कांड में कांग्रेस को इन राजनीतिक और कानूनी पेचों के कारण पीछे हटना पड़ा।

राजनीतिक कारण : अल्पमत सरकार फैसले नहीं ले सकती
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१. चुनाव घोषित होने के बाद केन्द्र सरकार सिर्फ रोजमर्रा के साधारण काम-काज ही कर सकती है। उसे बड़े या नीतिगत फैसले लेने का अधिकार नहीं है। अगर अल्पमत और गठबंधन की सरकार हो तो उसके अधिकार तो और भी कम हो जाते हैं।
२. राष्ट्रपति भवन से भी इसी आशय के संकेत मिलने के बाद कांग्रेस के पास कोई और रास्ता शेष नहीं बचा था।
३. चूंकि यूपीए के दो घटक दल ही इसका विरोध कर चुके थे। इसलिए भी कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा। ये दोनों दलों ने अगली सरकार (संभवत: एनडीए ) में अपनी संभावनाओं को बनाए रखने के मोदी के खिलाफ जज की नियुक्ति का विरोध किया।
४. लोकतंत्र में स्थापित परंपराओं के अनुसार चुनाव प्रक्रिया के दौरान सरकार नीतिगत फैसले नहीं करती है।
५. अगर अगली सरकार एनडीए की बनी तो कैबिनेट के पास उसी तरह से इस आयोग को भंग करने का अधिकार था जैसे कि इसे बनाया गया था।

कानूनी उलझनें : फिर से कैबिनेट की बैठक नहीं बुला सकते थे
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निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा ने प्रशांतभूषण के माध्यम से स्नूपगेट कांड की सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाते हुए कहा कि इसमें से मोदी पर किसी लडक़ी की जासूसी के आरोप को हटायें अन्यथा वे इस याचिका की सुनवाई नहीं करेंगे।
१. इसी कारण स्नूपगेट कांड की जांच करने से पहले केन्द्र सरकार को भी मोदी के नाम के आरोप जांच से हटाने पड़ते और मात्र जासूसी की जांच होती। यानी मोदी को घेरने की कांग्रेस की कोशिश नाकाम हो        जाती।
२. चूंकि कांग्रेस जांच किसी रिटायर्ड जज से करवाना चाहती थी और किसी रिटायर्ड जज ने इस राजनीतिक मामले में रूचि नहीं ली इसलिए कांग्रेस ने इसकी जांच किसी मौजूदा जज से कराने का फैसला                किया।
३. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मोदी का नाम हटाने और मौजूदा जज से जांच कराने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाकर आयोग स्थापना की शर्तों और उददेश्यों में परिवर्तन करना होता। आचार संहिता लगी होने के कारण केन्द्र सरकार ऐसा नहीं कर सकती थी। विशेष परिस्थितियों में चुनाव आयोग की अनुमति से फैसले लिए जाते हैं।
४. चूंकि कांग्रेस राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा कर रही थी इसलिए भी चुनाव आयोग कैबिनेट के नए फैसले को किसी भी हालत में मंजूरी नहंी देता। 
५. आयोग गठन के फैसले के पांच महीने बाद तक रिटायर्ड जज की नियुक्ति नहीं कर पाना।

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