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रविवार, 4 मई 2014

लालकिले से (भाग-88/3) - धारा-370 : पहली बार अपने सेकुलरिजम के हथियार से पर खुद घायल हो गए फारूख अबदुल्ला

 

धारा-370 पर पहली बार कश्मीर की हुकूमत तिलमिलाई है। इस बार उन पर उन्हीं के हथियार से जो वार किया गया है। यह हथियार है सेकुलरिज्म का। जनसंघ, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के जमाने से लेकर भाजपा तक इस मुद्दे को कानूनी नजरिये और समानता के आधार पर ही देखती रही है। श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भी धारा-370के खिलाफ दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे का नारा दिया था।

1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई।
नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।
दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।


धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।
1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई। नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।


1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों से पलायन के बाद भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल इसकी निंदा करते रहे और उनकी घर वापसी की बातें करते रहे हैं। पर इसे जो मोड़ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने दिया है वो इससे पहले किसी और ने नहीं दिया। भाजपा के कुछ नेताओं को अब लग रहा है कि यह बात उनके दिमाग में क्यों नहीं आई। नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों और संविधान की प्रस्तावना में लिखे सेकुलर शब्द के बहाने धारा-370 और कश्मीर की राज्य सरकारों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि वे सरकारें कैसे सेकुलर हो सकती हैं जो घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाने के समय मौन थी। कुल मिलाकर उनका इशारा इस बात की ओर था कि कश्मीरी पंडितों को भगाने में राज्य प्रायोजित हिंसा का हाथ था। कश्मीर में 80के बाद से मोटे तौर पर अबदुल्ला परिवार का ही राज रहा है। शेख अबदुल्ला, फारूख अबदुल्ला और अब उमर अबदुल्ला। घाटी से पंडितों का पलायन 1989 में फारूख अबदुल्ला के शासनकाल में आरंभ हुआ था।

दरअसल सेकुलरिज्म के हथियार से अभी तक भाजपा और आरएसएस को घेरने वाली अबदुल्ला फेमिली इस बार कश्मीरी पंडितों के घाटी छोडऩे के मुद्दे पर खुद ही सांप्रदायिक साबित हो चुकी है। सांप्रदायिक तो थी ही पर कोई बोला नहीं। यहां तक भाजपा के नेता भी नहीं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर कश्मीर की तमाम सरकारों को संविधान के अनुसार सांप्रदायिक घोषित कर दिया है। संविधान में सेकुलर शब्द का मतलब है राज्य किसी से धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहंी करेगा। इसके विपरीत कश्मीर सरकार ने पंडितों से भेदभाव किया। अभी पुनर्वास की कीमतें उंट के मुंह में जीरे के समान है।धारा-370 कहती है कि इस संविधान में किसी और बात के होते हुए भी अनुच्छेद- 238 के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर में लागू नहंी होंगे। यानी केन्द्र राज्य के विषयों पर कानून नहंी बना सकता। इसकी कारण, आरक्षण, पंचायती राज, आरटीआई जैसे कानून जम्मू अकश्मीर में लागू नहीं है। पंचायतों को केन्द्र से मिलने वाली सहायता नहीं मिल पा रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारा-370 का शीर्षक है जम्मू और कश्मीर के संबध में अस्थाई उपबंध। यानी यह अस्थाई है और इसे हटाना ही है।

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