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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-26) - केजरीवाल और सिसौदिया के एनजीओ कबीर की स्थापना 15 अगस्त 2005 को और फोर्ड फाउंडेशन से 44 लाख रूपए मिल गए 15 जुलाई 2005 को





अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए ने 1953 में फिलिपिंस के राष्ट्रपति क्वायरिनों की छवि बिगाडक़र नए नवेले नेता रमन मेगसेसाय को तुरत-फुरत में बनाई हुई साफ छवि के आधार पर फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया। यही कहानी अब भारत में दोहराई जा रही है अरविंद केजरीवाल केउभार के साथ। कहानी आरंभ होती है अरविंद केजरीवाल को उभरते नेतृत्व के लिए 2006 के रमन मेगसेसाय अवार्ड देने के साथ। यह अवार्ड उन्हीं लोगों को दिया जाता है जो अमेरिकी हितों को साध सकें या उनके अनुसार काम कर सकें। इसके लिए फोर्ड फाउंडेशन ने अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया के एनजीओ के कबीर के माध्यम से 3 करोड़ रूपए की सहायता भी दी। दिलचस्प बात यह है कि इसमें अनुदान की पहली किस्त एनजीओ आरंभ होने के एक साल पहले ही मिल गई थी। यानी फिक्सिंग के तहत ही सब कुछ हुआ।
इसकी शुरूआत हुई इंडिया अगेन्सट करप्पशन के आंदोलन के साथ। इसके बाद जनलोकपाल आंदोलन आरंभ किया गया। अन्ना को भी इस बात का पता नहीं था कि इस आंदोलन में विदेशी पैसा लग रहा है। सीआईए की योजना थी कि अरब देशों में चल रहे आंदोलन की तरह भारत में भी अन्ना आंदोलन के दौरान विद्रोह करवाया जाए। अन्ना आंदोलन के दौरान और बाद में एनजीओ कबीर के माध्यम से अमेरिकी एजेंट शिमिरित ली भारत में लगभग चार माह तक सक्रिय रही। केजरीवाल के आंदोलन और उनकी पार्टी को खड़ा करने और विदेश से चंदा दिलवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
फोर्ड फाउंडेशन, एनजीओ कबीर की स्थापना १५ अगस्त 2005 को होने से ठीक एक महीने पहले यानी १५ जुलाई 2005 को लगभग 44 लाख रूपए दे चुका था। इसके बाद 12 दिसंबर 2006 को लगभग 33 लाख और 2007-२००८ में 1 करोड़ 10 लाख रुपए की और मदद दी। यानी लगभग 1 करोड़ 87 लाख रुपए की मदद दी। इस मदद से भष्ट्राचार के विरूद्ध आंदोलन और जनलोकपाल आंदोलन की आड़ में देश मेंअराजकता फैलाने का ताना-बाना बुना गया। ताकि अस्थिरता के दौर में अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत के बाजा खुले रहें। इसके बाद 2011 में 1 करोड़ 15 लाख रुपए और दिए गए। इसके अलावा दिल्ल विधानसभा चुनाव से पहले लगभग दस करोड़ रूपए फोन और प्रचार पर खर्च करने के भी आरोप हैं।
फोर्ड फाउंडेशन दिल्ली के जेएनयू सहित आईआईटी, आईआईएम सहित प्रमुख कालेजों में अपनी गतिविधियां चलाती है। इसकी मदद से उसने युवाओं को केजरीवाल के साथ जोड़ा।
इसके अलावा गुजरात की मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए हालैंड का एनजीओ हिवोस भी विभिन्न एजनीओ के माध्यम से दस करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। हिवोस को भी फोर्ड फाउंडेशन की आर्थिक मदद मुहैया करवाता है।
जब अमेरिका को लगा कि मोदी इस बाद प्रधानमंत्री बनने की ओर हैं तो उसने एक ओर तो अपनी विदेश मंत्री को मोदी से मिलने गांधीनगर भेज दिया और उसके एक ही दिन बाद केजरीवाल से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिलवाकर मोदी के रथ को रोकने के लिए उतार दिया। गुप्तचर एजेंसियों के अनुसार इस्तीफा देने से पहले दिल्ली सरकार के दो प्रमुख व्यक्तियों के पर्सनल मोबाइल नंबर से अमेरिकी दूतावास से बातचीत हुई थी। ये जांच का विषय तो है ही।
(दस्तावेजों का विवरण
१. कबीर के दस्तावेज के पहले पैरे की अंतिम लाइन में लिखा है कि इसका गठन १५ अगस्त 2005 को हुआ था।
२. रिर्टन के अनुसार पहला भुगतान १५ जुलाई को हुआ था। इसमें दोऔर भुगतानों का भी जिक्र है।
३. 2011 में मिली सवा करोड़ की सहायता का खुलासा करती खुद फोर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट।
४. भारत के विश्वविद्यालयों में सीआईए की गतिविधियों को दर्शाने वाला सीआईए का पत्र।)
क्रमश:
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