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रविवार, 30 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-51) - सेकुलरज्मि न हो गया, वैशाली की नगर वधू हो गई


सेकुलरज्मि न हो गया वैशाली की नगरवधू हो गई गोया जो चाहे, जब चाहे अपने साथ ले जाता है। फैशन हो ठहरा। आज फिर कांग्रेस ने सेकुलरज्मि के नाम पर वामपंथियों को मोदी के खिलाफ एकजुट करने का आखिरी प्रयास किया है। कांग्रेस को अब साफ-साफ लग गया है केजरीवाल के बूते मोदी को रोकना मुश्किल है। कांग्रेस जब भी संकट में होती है उसे सेकुलरज्मि की याद आ जाती है और वो राजनीति के फर्श पर सेकुलरज्मि का तेल फैलाकर अपने विरोधी खासकर भाजपा को चित करने का प्रयास करती है। अब कांग्रेस वाजपेयी की 13 दिन की सरकार की तर्ज पर सेकुलरज्मि के जाल में मोदी को फांसने का अंतिम प्रयास कर रही है। प्रयास करने में हर्ज भी क्या है। सफल हुआ, नहीं हुआ। अगर हो गया तो फिर कहने ही क्या। आज की स्थिति में सेकुलरज्मि शब्द का संविधान के अनुसार अर्थ किसी भी पार्टी के किसी भी नेता को नहीं पता है। उसमें आडवाणी, मोदी, सुषमा, जेटली, सोनिया, राहुल, मुलायम, लालू ,नीतिश सहित सभी नेता शामिल हैं। यही कारण है कि विरोधी संघ और भाजपा पर सेकुलर नहीं होने के आरोप लगते हैं पर भाजपा कभी भी इसका सही तरीके से खंडन-मंडन नहीं कर पाई। विरोधी तो पहले दिन से सेकुलरज्मि का गलत अर्थ समझाकर देश को गुमराह कर रहे हैं। सेकुलरज्मि शब्द का इस्तेमाल करना एक फैशन बन चुका है। इस शब्द का प्रयोग करने वाले 99 प्रतिशत लोगों को इसके संदर्भ और मायने पता नहीं हैं। दरअसल यह अनुवाद के उपजी समस्या है। सेकुलरज्मि की राजनीति को समझने से पहले इस शब्द की उत्पत्ति, अर्थ, देशकाल और संदर्भ को जानना बेहतर होगा।

यूरोप के संदर्भ में- सेकुलरज्मि यानी राजा और चर्च की शक्तियों में अलगाव

भारत के पूर्व राष्ट्रपति, संविधानविद् और कांग्रेसी नेता डा शंकरदयाल शर्मा के अुनसार सेकुलरज्मि शब्द यूरोप से लिया गया है। इसका पहली बार उपयोग इंग्लैंड में1534 में राज्य की सत्ता को चर्च से अलग करने के लिए बनाए गए कानून के संदर्भ में किया गया।। इंग्लैंड की संसद ने एक कानून बनाकर राज्य सत्ता में चर्च और चर्च सत्ता में धर्म के हस्तक्षेप को समाप्त कर दिया। इसके बाद 1551 में चर्च की नीतियों के खिलाफ चले आंदोलन को सेकुलर मूवमेंट कहा गया।(राजा और चर्च के टकराव की कहानी जिसके कि कारण यह कानून आया इसकी विस्तृत कहानी इस लेख के अंत में है)

भारत के संदर्भ में- भारत में प्रारंभ से ही राजसत्ता और धर्म सत्ता अगल ही रहीं 

भारत में कभी भी धार्मिक सत्ता का राज्य सत्ता में हस्तक्षेप नहीं रहा। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और संतगण राजा को मांगने पर ही सलाह देते थे और वो भी सुझाव के रूप में। वे भी अपनी ओर से कुछ नहीं कहते थे। नीति शास्त्र, वृहतसंहिता, नारद संहिता और अन्य ग्रंथों को कोट करके अपने सुझाव देते थे। मानना या नहीं मानना राजा के हाथ में था। इसके अलावा गावों में पंच परमेश्वर की व्यवस्था थी जो कि दुनिया में लोकतंत्र का सबसे प्राचीन स्वरूप माना गया है। आजादी के बाद संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को जो संविधान पारित किया उसकी प्रस्तावना में सेकुलर शब्द नहीं था। लेकिन जो लिखा उसका मतलब यही था कि राज्य अवसर, धर्म और उपासना के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं करेगा।
१९७६ में आपातकाल के दौरान इंदिरा गंाधी ने 42 वां संविधान संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में sovereign democratic republic" यानी संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गण राज की जगह्य"sovereign socialist secular democratic republic यानी सोसलिस्ट सेकुलर शब्द लोकतंत्र के पहले जोड़ दिए। सोवियत संघ से दोस्ती का उन पर इतना अधिक प्रभाव था कि उन्होंने सोशल्सिट शब्द जुड़वा दिया। सेकुलर शब्द उन्होंने अपनी छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर चमकाने के लिए जोड़ा।

पहले भारत के संविधान में सेकुलर शब्द नहीं था

भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान में सेकुलर शब्द का प्रयोग नहीं किया था। पर देश सेकुलर बना रहे इसकी सारी व्यवस्था संविधान की प्रस्तावना में कर दी थी। इसके अनुसार राज्य हर नागरिक को अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता देगा। यानी राज्य किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करेगा। यानी उसकी निगाह में सभी नागरिक समान होंगे।

26 नवंबर 1949 से 1976 तक यह थी प्रस्तावना

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्म गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्च्ति करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

1976 में जुड़े सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष (सेकुलर का अर्थ धर्मनिरपेक्ष नहीं होता) लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्च्ति करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

चर्च और राज्य की सत्ता को अलग करने का नाम है सेकुलरज्मि

15 वीं सदी में यूरोप में पोप की सत्ता थी। राजा नहीं था फिर भी राजा से बढक़र था। असीमित अधिकार थे उसके पास। राज्य सत्ता पर एक तरह से उसका सीधा नियंत्रण था। उसके पास नए राजा की नियुक्ति और किसी को भी धर्म से बायकाट करने के अधिकार थे। यहां तक की राजा को शादी करने और तलाक लेने से पहले पोप से अनुमति लेनी पड़ती थी।
1533 में इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्ठम (8 वें) ने अपनी रानी कैथरीन को तलाक देकर एन्ने नामक एक विधवा से शादी करने के लिए पोप क्लीमेंट से अनुमति मांगी । इस पर पोप ने हेनरी को अनुमति देने से इंकार किया और दंडस्वरूप हेनरी को कैथोलिक ईसाई धर्म से निकाल दया। प्रतिक्रिया में नाराज़ होकर हेनरी ने इंग्लैंड को पोप की सता से अलग कर लिया और पोप के समानांतर चर्च ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कर दी। इसके एक साल बाद यानी 1534 में राजा की पहल पर इंग्लैंड की संसद ने एक कानून पास किया। नाम था- एक्ट ऑफ़ सुप्रीमैसी । इसका शीर्षक था- सेपरेशन ऑफ़ चर्च एंड स्टेट । इसके मसौदे के अनुसार चर्च न तो राज्य के कामों में हस्तक्षेप कर सकता था और न ही राज्य चर्च के कामों में दखल दे सकता था। चर्च और राज्य के अलगाव के सिद्धांत के लिए सेकुलरिज्म शब्द का प्रयोग किया गया।
चर्च की नीतियों का विरोध करने का नाम भी है सेकुलरज्मि
इसके बाद बाद में 1851 जार्ज जकोब हालियेक ने चर्च की नीतियों के विरोध में सेकुलर मूवमेंट चलाया और सेकुलरज्मि शब्द का उपयोग किया। अमेरिका में भी सेकुलरिज्म शब्द इसी अर्थ में प्रयोग मेंलाया जाता है। इसके अलावा जो लोग समाज में रहते हुए ईसाई सन्यासियों की धर्म के काम में मदद करते
सेकुलर यानी इन द वल्र्ड
सेकुलर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सेकुलो शब्द से हुई है। इसका अंग्रेजी में अर्थ है इन द वल्र्ड ।
दरअसल कैथोलिक ईसाइयों में पुरुषों सन्यासियों को मौंक और महिलाओं को नन कहने की परंपरा थी। लेकिन जो व्यक्ति सामाजिक जीवन जीते हुए धार्मिक कार्यो में उनकी मदद करते उन्हें सेकुलर कहा जाता था। अर्थात संसार में रहते हुए सन्यासियों की मदद करने वाला।
क्रमश:

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