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शनिवार, 29 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-49) - भाजपा में सत्ता साकेत - हमें अपनों ने लूटा गैरो में कहां दम था, मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था




राजनाथसिंह इन दिनों डबल गेम खेल रहे हैं। बाहर से वे दिखा रहे हैं कि वे मोदी के साथ हैं पर भीतर ही भीतर ऐसा नहीं है। चूंकि राजनाथ का जनाधार सीमित है और 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी उन्हीं के कप्तान रहते चुनाव हारी थी। भाजपा का जनाधार भी काफी गिरा। कांग्रेस को लगभग 12 करोड़ वोट मिले वहीं भाजपा 8 करोड़ वोटों पर ही सिमट गई थी। इसलिए संघ का दबाव कहें, मोदी का जनाधार या परफारमेंस कहें कि वे मोदी का साथ देने को मजबूर हैं। इसी उम्मीद पर कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो कप्तान होने के नाते सफलता का सेहरा उनके भी सर बंधेगा। अगर किसी भी कारण से भाजपा की  सीटें कम आईं तो मोदी विरोधी खेमे से समर्थन लेना पड़ा तो वे एनडीए में प्रधानमंत्री पद के लिए आम सहमति के उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है एनडीए सबसे बड़ा दल बने पर उसकी सीटें 170 से कम हों। ऐसे में मोदी के लिए लगभग सौ सीटों का समर्थन जुटाना मुश्किल होगा।

टिकट बंटवारे में किया खेल

इसलिए राजनाथ ने टिकट बँटवारे में यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश में लगभग 30 सीटों पर गलत प्रत्याशी उतारकर मोदी का गेम बिगाडऩे की दिशा में पहला दांव चल दिया है। यूपी में अमित शाह की सूची में से आधे नाम उन्होंने उड़ा दिए। उन्हें आडवाणी, सुषमा और कांग्रेस का पूरा समर्थन प्राप्त है। आडवाणी और कांग्रेस इस मुद्दे पर एक नजर आ रहेंहै कि- मोदी को छोडक़र कोई भी प्रधानमंत्री बन जाए उन्हें मंजूर होगा। इसी खेमे के गेम प्लान के तह पहले आडवाणी रूठे और फिर जसवंत। यही खेमा भाजपा में दूसरी पार्टियों का कचरा लेकर आ रहा है। पिछले दिनों भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की गई थी इसमें सुषमा स्वराज और कांग्रेस के घालमेल पर प्रकाश डाला गया था।

इसीलिए संघ ने कहा सिर्फ मोदी

आरएसएस ने इसीलिए दो दिन पहले इन नेताओं को फिर संकेत किया कि- चुनाव बाद प्रधानमंत्री तो मोदी ही बनेंगे। उनकी देश में लहर है। बी प्लान का कोई सवाल ही नहीं उठता। अगर ऐसी नौबत आई भी तो वे फिर एक बार अपनी बारी का इंतजार करेंगे। यानी सीधे-सीधे विपक्ष में बैठने का संकेत हंै।

संघ का बी प्लाग अगर  हुआ तो 

दरअसल संघ का मानना है कि मोदी को बहुमत मिल ही जाएगा। लेकिन अगर किसी कारणवश बहुत मजबूरी में मोदी के स्थान पर किसी को लाना भी पड़ा तो वे नितिन गडक़री को प्राथमिकता देंगे। इसी कारण गडक़री इस बार नागपुर से चुनाव भी लड़ रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी का जेटली प्लान

प्रधानमंत्री पद की संभावित दौड़ के कारण ही भी अरूण जेटली अमृतसर से जीवन में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भले ही आप उन्हें अभी मोदी विरोधी खेमे में मानें पर अंदर की बात यह है कि वे मोदी के साथ हैं। गुजरात विधानसभा के पिछले तीन में दो चुनाव में ही वे मोदी के खास सिपाहासालार रहे हैं। मोदी ने ही उन्हें अमृतसर से चुनाव लडऩे की सलाह दी और सिद्धू को मनाया। अगर मोदी प्रधानमंत्री बने तो जेटली ही उनके डिप्टी होंगे। मोदी ने उन्हें सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर रखा है। जरूरत पडऩे पर अंतिम विकल्प के रूप में मोदी उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए भी आगे कर सकते हैं।

मोदी और राजनाथ में खटास का कारण

मोदी और राजनाथ के रिश्तो में खटास एक विधानसभा टिकट नहीं देने के कारण आई थी। दिसंबर 2007 की बात है। गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे का काम चल रहा था। राजनाथसिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन्होंने युवा मोर्चे के अध्यक्ष अमित ठाकुर के लिए अमदाबाद की एक सीट से टिकट मांगा था। बड़ी मिन्नतें की मोदी की। कहा युवा मोर्चे के नेता को टिकट दे दो नरेन्द्रभाई। कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश  जाएगा। मोदी ने राजनाथ को यह कहकर दो टूक जवाब दे दिया कि- राजनाथजी गुजरात के लिए बनाई गई मेरी कार्ययोजना में अमित ठाकर कहीं भी फिट नही बैठते। अंतत: मोदी ने अमित ठाकर को राजनाथसिंह के लाख कहने के बाद भी टिकट नहीं दिया।

मोदी और राजनाथ में खटास का कारण

दरअसल ये गेमप्लान है। यह सफल होगा या नहीं यह तो मतदान के बाद वोटों के प्रतिशत से पता चल ही जाएगा। एक बात तय है कि परिवर्तन के लिए संघ की ओर से लगातार दिए जा रहे संकेतों के बाद भी दिल्ली के एसी कमरों से देश की राजनीति चलाने समझ नहीं पा रहे हैं। शायद अब इन्हें जनता ही समझाएगी।

भाजपा के वर्तमान हालता पर ये शेर सटीक है-
हमें अपनों ने लूटा गैरो में कहां दम था, 
मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था।


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