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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-29) - भाजपा में यादवी संघर्ष- आडवाणी के कंधे पर कांग्रेस और जोशी के कंधे पर आडवाणी की बंदूक, सभी का निशाना मोदी



पार्टी विथ डिफरेंस के नाम से स्वयं को प्रस्तुत करने वाली भाजपा में प्रधानमंत्री बनने के लिए परदे के पीछे अभी से यादवी संघर्ष छिड़ चुका है। लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज की मंडली इस कोशिश में लगी हुई है कि किसी तरह  भाजपा की सीटें १८० से ज्यादा न आएं। इससे प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की दावेदारी खारिज की जा सकेगी। कारण कि मोदी के लिए ९० से १०० सांसदों का समर्थन जुटाना मुश्किल होगा। ये दोनों अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस की मदद कर रहे हैं या यूं कहें कि कांग्रेस ने आडवाणी के कंधे पर और आडवाणी ने जोशी के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी पर निशाना लगाया है।

यह है आडवाणी का गेम प्लान 

 आडवाणी का गेम प्लान है कि भाजपा अगर लोकसभा चुनाव में १८० और एनडीए २०० सीटों तक सिमट जाता है तो फिर मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोका जा सकता है। कारण कि मोदी को सरकार बनाने के लिए ७० से ८० सांसदों की आवश्यकता होगी। ऐसे में कोई भी सेक्यूलर पार्टी मोदी को समर्थन नहीं देगी। ऐसे में आडवाणी या सुषमा की लाटरी खुल सकती है। जरूरत पडऩे पर मध्यप्रदेश के सीएम शिवराजसिंह चौहान को भी आगे किया जा सकता है। इसके विपरीत मोदी इस कोशिश में हैं कि २० से ३० अतिरिक्त सीटें और लाई जाएं ताकि बाहर से ज्यादा समर्थन नहीं लेना पड़े। इसलिए उन्होंने यूपी और दक्षिण के राज्यों पर फोकस किया है।

जोशी के कंधे पर आडवाणी की बंदूक

अगर मोदी ने बनारस से चुनाव लड़ा तो भाजपा को यूपी-बिहार में २५ सीटों तक का फायदा हो सकता है। ऐसे में आडवाणी ने बनारस के भाजपा सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी को मोदी के खिलाफ भडक़ा दिया। मोदी और जोशी में अच्छी पटती थी। जब जोशी ने एकता यात्रा निकाली को उनके सारथी मोदी ही थे। आडवाणी और सुषमा मीडिया में खबरें लीक कर रहे हैं कि मोदी को जोशी के स्थान पर बनारस से चुनाव लड़वाया जाएगा। इससे जोशी बिदक गए। अब जोशी ने मोदी और राजनाथ के खिलाफ मोरचा खोल दिया है। संसदीय दल की बैठक में शनिवार को इसका नजारा देखने को मिला। वैसे संघ के कहने पर जोशी मान जाएंगे पर इस प्रकरण ने मादी को अपनी ही पार्टी में कमजोर करने वालों को सामने ला दिया है। वैसे जोशी के लिए कानपुर के अलावा मध्यप्रदेश की रीवां या भोपाल सीट भी है। वैसे जोशी मान जाएंगे पर मोदी से कोई डील कर। यह डील मत्रिमंडल में उपप्रधानमंत्री या गृहमंत्री पद की हो सकती है।

कांग्रेस से भी लगातार मदद कर रही स्वराज 

भाजपा की नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अपने कार्यकाल के दौरान कांग्रेस से नजदीकी के लिए काफी चर्चा में रही। फूड सिक्योरिटी बिल, भूमि अधिग्रहण बिल और तेलांगाना बिल पर सुषमा ने कांग्रेस को ऐसे समर्थन किया जैसे कांग्रेस को नहीं ये बिल पास करना भाजपा के एजेंडे में शामिल हो। संसद के सत्र के आखिरी दिन कांग्रेस और सुषमा का घरोपा सामने आ ही गया। मोदी के पीछे अगर आरएसएस का बैकिंग नहीं होता ये मोदी को कभी भी प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी नहीं बनने देते।

जेटली की पहल से मिला सीमान्ध्र को पैकेज

 अरूण जेटली ने राज्यसभा में सीमान्ध्र को विशेष पैकेज की शर्त पर ही  तेलंगाना बिल को समर्थन की शर्त लगाई, अन्यथा यह बिल ऐसे ही पास हो जाता। जेटली के फैसले से भाजपा को सीमान्ध्र में चुनाव लडऩे, तेलुगुदेशम से गठजोड़ करने और चुनाव बाद जगन रेड्डी से समर्थन लेने में परेशानी नहीं आएगी।

राजनाथ का गेमप्लान सभी पर भारी

आडवाणी, सुषमा और जोशी को साइड लाइन कर राजनाथ अपनी राह साफ कर हैं। अगर कम सीटें आने पर गठबंधन में मोदी पर सहमति किसी कारण से सहमति नहीं बनी तो वे तो हैं ही और उनके नाम पर मोदी को भी आपत्ति नहीं होगी। और अगर भाजपा को ज्यादा सीटें आती हैं तो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते इसका सेहरा उनके सर तो बंधेगा ही। यानी मोदी के बाद अब राज ही भाजपा के नाथ रहेंगे।




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