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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-28) - रूसी पंडुब्बियां हैं स्विमिंग काफिन, इन्हें नेवी से हटाओ




नेवी चीफ को क्यों, रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव को इस्तीफा देना चाहिए था।
आज हमारी सेना के एक अनुभवी सेनापति ने सेनाओं के आधुनिकीकरण में की जा रही लापरवाही के परिणामों से हताश होकर इस्तीफा दे दिया। यह चेतावनी है सरकार के लिए कि वह हमारी सेना के आधुनिकीकरण में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरते अन्यथा इतिहास उसे कभी भी माफ नहीं करेगा।

नेवी चीफ के इस्तीफे का मतलब -

पंडुब्बी आईएनएस सिंधुरत्न में मंगलवार तडक़े मुंबई के अरबी समुद्र में हुए हादसे के बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल डीकेे जोशी ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस हादसे सहित नौसेना में पिछले 6 महीने में 3 पंडुब्बी हादसों सहित हुए 13 हादसों की नैतिक जवाबदारी लेते हुए यह इस्तीफा दिया। इससे पहले 14 अगस्त को सिधुरक्षक पुडुब्बी में भी हादसा हो चुका था। सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। जोशी का अभी डेढ़ साल का कार्यकाल बाकी था। सरकार नौसेना को जरूरी तकनीकी उपकरण मुहैया करवा नहीं रही थी इससे लगातार हादसे हो रहे थे। शांतिकाल में सैनिक मर रहे थे। रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव की नाकामी के कारण जोशी अपने को लाचार पा रहे थे। इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जबकि इस्तीफा देना चाहिए था रक्षा मंत्री और रक्षा सचिव को। कारण कि हम रूस की एक्सपायर डेटेट पंंडुब्यिां इस्तेमाल कर रहे हैं। ये एक्सपायर डेटेड पंडुब्बियां अब नौसेना के लिए स्विमिंग काफिन बन चुकी हैं। नौसेना के लिए  घातक बन चुकी इन पंडुब्बियों के लिए में देश में पहली बार मैं एक नए शब्द स्विमिंग काफिन का इस्तेमाल कर रहा हूं। नेवी चीफ इसलिए परेशान थे प्लानिंग के बाद भी उपकरणों को बदला नहीं जा रहा था। सेना 15 साल पहले रक्षा मंत्रालय को बता देती है कि उससे ये ये उपकरण इस सन में सेना से बाहर हो जाएंगे। इसलिए उनके स्थान पर नए उपकरण चाहिए होंगे। पुराने उपकरण तो बाहर होते जा रहे हैं और नए  उपकरण खरीदे नहीं जा रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञ भरत वर्मा बताते हैं कि यह हालात सिर्फ नौसेना  के नहीं हैं, वायु सेना और थल सेना भी इसी परेशानी से गुजर रही हैं। वायु सेना के बेड़े से लड़ाकू विमान लगातार कम हो रहे हैं और नए विमान आ नहीं रहे हैं। यही हालात रहे तो हमें ट्रेनिंग विमानों से युद्ध लडऩा पड़ सकता है। सेना के पास पर्याप्त तोपें और एमुनेशन नहीं है। कायद से सेना के पास कम से कम 40 दिन का गोला-बारूद होना चाहिए। ताकि आपातकाल में कोई परेशानी नहीं हो। लेकिन अभी एक सप्ताह का गोला-बारूद भी हमारी सेना के पास नहीं है। यह सब पिछले दस साल में कांग्रेस की सरकार की लापरवाही के कारण हुआ है। नए सौदे सब कमीशन के लालच में अटके पड़े हैं। वायुसेना में फाइटर पायलट और सेना में अफसरों के हजारों पद खाली पड़े हैं।

सारी घटिया पंडुब्बियां रूस की-

भारतीय नौसेना में ज्यादातर पंडुब्बियां रूस से ली गई हैं। ज्यादतर एक्सपायर डेटेड हैं। इन्हें अपडेट करके काम चलाया जा रहा है। जिस आईएनएस सिंधुरत्न में मंगलवार को हादसा हुआ वह भी दो महीने पहले अपग्रेड होकर आई थी। इससे पहले जिस पंडुब्बी सिंधुरक्षक में पिछले 14 अगस्त को हादसा हुआ था वह भी रूस से खरीदी हुई थी। दरअसल रूस का जब विघटन हुआ तो उसने भारत को कई किलो क्लास की पंडुब्बियां रिपेयर कर बेचीं। हमारे साहब बहादुरों ने भी अरबों के कमीशन के लालच में कबाड़ का माल रंग पोतकर खरीद लिया। इस तरह पिछले छह महीने में 3 पंडुब्बी सहित कुल 13 हादसे हो चुके हैं। अभी जर्मनी ने अपनी बहुत अच्छी पंडुब्बियों को कास्ट कटिंग के नाम पर बाहर कर दिया है। वे रूस की पंडुब्बियों की तुलना में हजार गुना बेहतर हैं। हमें उन्हें कम कीमत पर अच्छी डील के तहत क्यों नहीं खरीद सकते।

एअरफोर्स के भी हालात खराब

इसी तरह वायुसेना में रूसी मिग-21 विमान भी घटिया कल-पुर्जों की वजह से बेवजह ही फ्लाईंग काफिन बन गए। यानी घटिया पंडुब्बियां इसलिए स्विमिंग काफिन बनीं क्योंकि वे तो थी ही घटिया पर मिग विमान जो कि दुनिया के अच्छे फाइटर प्लेन थे को एंटी रूस लाबी ने घटिया कलपुर्जों से निपटा दिया। एक समय भारतीय वायुसेना में ज्यादातर विमान रूसी थे। पहली बार 80 के दशक में मिराज की एंट्री हुई। यूएस, यूके और फ्रासं भारतीय वायुसेना अपने फाइटर प्लेनों की एंट्री करवाना चाहते थे। इसलिए ये आवश्यक था कि पहले मिग श्रृंखला के विमानों को हटाया जाए। इसलिए इस लाबी ने रक्षा मंत्रालय के अफसरों से मिलकर मिग विमानों को घटिया कल पुर्जों की लगातार आपूर्ति करवाई। इससे लगातार हादसे होते गए और हमारे पास विमानों की कमी होती गई। स्वदेशी तेजस के निमार्ण में भी इसी अफसरशाही के कारण लगभग 8 साल का विलंब हुआ है।

आईएनएस विक्रांत का बायलर खराब

- रूस से खरीदे और हाल ही  में अपडेट होकर आए 800 मिलियन डालर मूल्य के विमानवाहक पोत का बायलर खराब हो गया था। मजे की बात यह है कि इतने महंगे इस विमानवाहक पोत पर वायु रक्षा प्रणाली नहीं है।

सेना के पास गोला-बारूद नहीं

सेना के पास बोफोर्स जैसी तोपे, उनके गोला-बारूद और रायफल्स के गोलियों का तक पर्याप्त स्टाफ नहीं है। आम तौर पर सेना के पास कम से कम 40 दिनों का गोला बारूद स्टाक में होना चाहिए, ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में परेशानी नही ंहै पर अभी हमारे पास एक सप्ताह के गोला-बारूद का भी स्टाक नहीं है।

हम कारतूस तक देश में नहीं बनाते- 

देश में एके छप्पन और सैंतालीस टाइप की राइफलों के कारतूस तक नहंी बनते सब विदेशों से आते हैं। क्या भारत जैसा देश अपनी सेनाओं की बंदूक के लिए कारतूस तक नहीं बना सकता। लेकिन कमीशनबाजी के लालच में सारा एमुनेशन विदेशों से आता है।
बोफोर्स जैसी तोपें देश में क्यों नही बन सकतीं- टाटा, बिडला, अंबानी और एलएंडटी जैसी कंपनियां आसानी से बोफोर्स जैसी तोपे न केवल बना सकती हैं वरन विदेशों को बेच भी सकती हैं। लेकिन हम विदेशी घटिया हथियारों पर तो भरोसा कर सकते हैं लेकिन अपने देश की कंपनियोंपर भरोसा नहीं कर सकते। अब समय आ गया है कि हम रक्षा क्षेत्र को अपने देश की कंपनियों के लिए खोल दें। इससे हमारी रक्षा जरूरतें समय पर पूरी होंगी। विदेशी मुद्रा बचेगी और हम भविष्य में हम हथियार बेचकर विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं।
पर क्या एडमिरल जोशी के इस्तीफे से हम सबक लेंगे। यदि सबक ले लेते हैं तो उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। जरो सोचें।







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