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शुक्रवार, 28 मार्च 2014

लालकिले से (भाग-42) - संघ की आडवाणी को फिर नसीहत- बदलाव जरूरी



आरएएस प्रमुख ने आडवाणी की मौजूदगी में कहा कि- यात्रा को सफल बनाने                                                            के लिए समय के अनुसार बदलाव जरूरी हैं।

सोमवार शाम लालकृष्ण आडवाणी को संघ ने एक बड़ा संकेत देकर साफ कर दिया है कि अब वे सम्मानपूर्वक राजनीति की मुख्यधारा से हटकर मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाएं। भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर पहले आडवाणी आडवाणी के रूठने-मनाने और जसवंतसिह सहित आडवाणी के कुछ नजदीकी सहयोगियों की बगावत के बाद आरएएस प्रमुख मोहन भागवत ने आडवाणी की मौजूदगी में कहा कि- यात्रा को सफल बनाने के लिए समय के अनुसार बदलाव जरूरी हैं। साथ ही उन्होंने मोदी और राजनाथ को अनुकूल परिस्थितियों में और सावधान रहने और अति आत्मविश्वास से बचने की नसीहत दे डाली। साथ ही लहर के भरोसे बैठे नेताओं को भी आइना दिखाया
सोमवार शाम नईदिल्ली में आरएसएस के हिन्दी मुखपत्र पांच्यजन्य और आर्गनाइजर के रिलांच समारोह में भागवत ने कहा- ऐसा कहा जाता है कि बदलाव जरूरी है। समय के अनुसार जो बदलाव जरूरी होते हैं उन्हें करना ही चाहिए ताकि यात्रा सफल हो। इस मौके पर आडवाणी भी मौजूद थे। बाद में उन्होंने यह भी जोड़ा कि युवावस्था में भटकने का डर होता है पर बुढ़ापे में भटकने का साहस नहीं होता है। आडवाणी आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र आर्गनाइजर को अपनी सेवाएं भी दे चुके हैं। संघ प्रमुख ने टिकटों से उपजे विवाद के बारे में सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा लेकिन साथ में उन्होंने मोदी और राजनाथ को नसीहत भी दी कि-अनुकूल परिस्थितियों में और भी सावधानी की आवश्यकता है। यानी अति आत्मविश्वास या ओवर कांफिडेन्स में न रहें।
उन्होंने लहर पर सवार होकर उडऩे वाले नेताओं को भी चेताया। उन्होंने कहा कि भले ही पतंग आसमान में स्वच्छंद होकर उड़ती है पर उसकी डोर भी किसी के हाथ में रहती है। अगर ये डोर हाथ से निकल गई तो पंतग संभल नहीं पाएगी। उन्होंने पार्टी को समझाया कि मतभेद ठीक है पर मनभेद नहीं होना चाहिए। शास्त्रार्थ यानी बहस करना हमारी परंपरा है और इससे हम विवादों का समाधान निकाल सकते हैं। लेकिन ऐसा वातावरण दिखाई नहीं दे रहा है। यानी उन्होंने स्पष्ट किया मीडिया के माध्यम से भाजपा में चल रही गुटबाजी काफी आगे जा चुकी है और समाधान के रास्ते बंद हैं। इससे वे खासे आहत भी दिखे। अंत में उन्होंने मलहम भी यह कहकर लगाया कि- लोग कांग्रेस से परेशान हैं। विकल्प को लोग स्वीकार कर रहे हैं। संघ के स्वयंसेवक जिस यात्रा में लगे हैं उसमें सफलता अवश्य मिलेगी। उन्होंने भाजपा को जीत के लक्ष्य के लिए जुटने का भी संदेश दिया।
मतलब साफ है कि आरएसएस भाजपा में अब बदलाव के लिए किसी भी कीमत पर तैयार है। इसी कड़ी में भागवत ने वरिष्ठ नेताओं खासकर आडवाणी और जोशी को राज्यसभा में जाने का सुझाव दिया था। सत्ता के लालच में कि बस एक बार और की तर्ज पर इन्होंने इसे नहीं माना और लोकसभा चुनाव लडऩे का फैसला किया। वहां जाकर इन्हें मनपसंद सीट नहीं देकर आरएसएस ने यह तो जता दिया है कि जब अध्यक्ष उनकी मरजी का है तो टिकट भी उन्हीं के अनुसार दिए जाएंगे। इससे एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि टिकट वितरण में भी संघ का हस्तक्षेप रहा है। इसका यह भी मतलब है कि आडवाणी समर्थको को संघ के कहने पर ही दरकिनार किया जा रहा है, ताकि सत्ता की नई यात्रा में विध्न डालने वाले अल्पमत में हों।
साथ ही उन्होंने यह भी संदेश देने की कोशिश की कि खाली लहर के भरोसे बैठना ठीक नहीं हैं। लहर का फायदा लेने के लिए कार्यकर्ताओं को कर्म तो करना ही होगा।
संघ के संकेतों का एक साफ मतलब यह भी है अगर लोकसभा चुनाव बाद प्लान बी की आवश्यकता पड़ती है तो वह मोदी के स्थान पर राजनाथ, गडक़री और जेटली को महत्व देगी। सी प्लान की नौबत आई तो उसके लिए शिवराज हैं। यानी आडवाणी को संघ रेस से बाहर कर चुका है। इसी योजना के तहत गडक़री नागपुर और जेटली अमृतसर से चुनाव लड़ रहे हैं।
यानी कुल मिलाकर अब भाजपा की बागडोर नई पीढी़ के हाथ में जाने की तैयारी अंतिम दौर में हो चुकी है। भाजपा की बागडोर पहले गडक़री और फिर राजनाथ के हाथ में देकर संघ पहले की साफ कर चुका है पार्टी की बागडोर उच्च वर्ग के हाथ में ही रहेगी। पार्टी का लोकप्रिय चेहरे पर मोदी यानी ओबीसी को उतार कर उसे पीढ़ी परिवर्तन के साथ सोशल इंजिनियरिंग के नए समीकरण बुने हैं। यानी भाजपा में अब अगले देा दशक की राजनीति मोदी, राजनाथ, जेटली, गडक़री और शिवराज के आस-पास ही घूमेगी। कुल मिलाकर संघ भाजपा की अंदरूनी कलह से नाराज लग रहा है पर उसे अपने स्वयंसेवकों पर पूरा भरोसा है।

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