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मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-53) - अंग्रेजी मीडिया के प्रभाव में मोदी को कम और गलत आंकना नैन्सी पावेल को महंगा पड़ा


रीजनल मीडिया के फीडबैक के बाद अमेरिका को                                                        अहसास हुआ कि गलत था फीडबैक



लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को कम और गलत आंकना भारत में अमेरिकी राजदूत नैन्सी पावेल को महंगा पड़ा। साथ ही वे अमेरिकी प्रशासन को यह भी बताने में विफल रही कि आने वाले समय में मोदी की भूमिका क्या होगी। इन तमाम मुद्दों पर अपने आकाओं की नाराजगी के चलते सोमवार को नैन्सी को ंकार्यकाल खत्म होने के लगभग दो महीने पहले इस्तीफा देना पड़ा।

इसलिए गलत आंका

दरअसल मोदी को लेकर नैन्सी भारत केअंग्रेजी मीडिया की बायस्ड रिर्पोटिंग का शिकार हुईं। अंग्रेजी चैनलों में उन्होंने सदैव मोदी के खिलाफ ही चीजें देखीं। फिर ज्यादातर अंग्रेजी पत्रकारों से उन्हें इसी प्रकार का फीडबैक मिला। मोदी के विरोधी राजनीतिक दल भी अमेरिकी दूतावास तक मोदी के विरोध में ही सूचनाएं पहुंचाते थे। इस कारण नैन्सी की मोदी के बारे में एक धारणा बन गई। इसी कारण वे मोदी के बढ़ते जनाधार को कभी देख ही नहीं पाईं। इस मीडिया ने मोदी की छवि को अंतराष्ट्रीय स्तर पर बिगाडऩे के लिए नैन्सी का यूज कर लिया। यूज इसलिए हुई कि वे कभी भी मीडिया फीडबक और धरातल की हकीकत की तुलना कर अपना ओपिनियन नहीं बना पाईं। इसका एक कारण राजनीतिक समझ की कमी होना भी सामने आ रहा है।

इसलिए कम आंका 


भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद भी वे मोदी को सही नहीं आंक पाईं। उन्हें जो जानकारियां दी जा रही थीं कि मोदी कट्टर हिन्दू नेता हैं और उन्हें देश मे समर्थन मिलना मुश्किल है। यही लाईन मीडिया के एक बड़े वर्ग ने भी अपनाई हुई है। यह मीडिया आज भी यही धारणा फैला रहा है कि भले ही एनडीए की सरकार बन जाए, मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। इसी तरह चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय को उन राज्यों के नेताओं की ज्यादा और मोदी की कम बताया गया। भाजपा में भी राजनीति गुटबाजी के कारण ऐसे बयान आते रहे हैं। ऐसे में नेन्सी समझ नहीं पाई कि आखिर मेें चल क्या रहा है। इसी कारण वे मोदी को कम आंक गईं। नैन्सी के मोदी को कम आंकने के कारण अमेरिकी प्रशासन वीजा के मामले में हमेशा मोदी के प्रति सख्त रहा है।

ऐसे एक्सपोज हुई नैन्सी

बांद्रा कुला काम्पेक्स के पास मुम्बई में हुई रैली में लोगों की भीड़ देखकर अमेरिकी प्रशासन के हौंसले पस्त हो गए। मुम्बई में बांद्रा कुला काम्पेक्स के पास ही अमेरिकी दूतावास का दफ्तर है। इस भीड़ को देखकर एकबारगी उन्हें लगा कि ये देवयानी प्रकरण के विरोध में है और यह भीड़ कभी भी उनके आफिस पर हमला कर सकती है। इसलिए बाद में अमेरिकी दूतावास ने रैली के स्थल को लेकर भी नाराजगी जताई थी। अमेरिकी प्रशासन को जब पता चला कि यह पोलिटिकल रैली है तो उसके भी होश उड़ गए। इस बीच प्री पोल सर्वे में भी मोदी को भारी बढ़त दिखाई जाने लगी। इससे अमेरिकी प्रशासन को लगा कि नैन्सी के फीडबैक सिस्टम में कहीं न कहीं कुछ गलत अवश्य है और उन्होंने हिन्दी और क्षेत्रीय मीडिया से मोदी के बारे में फीडबैक लिया। इससे साफ हो गया कि मोदी की स्थिति काफी मजबूत है इसके बाद अमेरिकी प्रशासन के मोदी के बारे में नीति बदलने का फैसला किया।

मुलाकात को बमुश्किल राजी हुए मोदी

इसके बाद अमेरिकी प्रशासन के निर्देश पर नैन्सी ने मोदी को दिल्ली में मुलाकात के लिए दो आमंत्रण दिए। दोनों ही बार मोदी ने बात टाल दी। इसके बाद मध्यस्थों की मदद से नैन्सी ने मोदी के नजदीकी लोगों से बात की तो मोदी ने भी मध्यस्थों के माध्यम से कहा कि वे तभी मिलेंगे जब प्रोटोकाल के अनुसार अमेरिकी प्रशासन उनसे लिखित में आधिकारिक तौर पर अनुरोध करे। आधिकारिक अनुरोध के बाद ही नैन्सी से गांधीनगर में मिलने के लिए मोदी तैयार हुए। अभी तक अमेरिकी राजदूतों को लगता था कि उनके एक निमंत्रण पर मंत्री और अफसर दौड़े चले आते हैं तो मोदी भी आ जाएंगे। प्रोटोकाल के अनुसार मुख्यमंत्री से मिलने के लिए राजदूत को स्वयं ही जाना चाहिए। अमेरिकी प्रशासन नैन्सी से इस बात से भी नाराज था कि उन्हें मोदी से मिलने का समय लेने में दो महीने लग गए। इससे अमेरिका को लग गया था जो गलती हो गई है उसे दूर करने के लिए प्रशासनिक पृष्ठभूमि वाले राजनैयिक की जगह राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले राजदूत की आवश्यकता है। इसलिए नैन्सी से इस्तीफा दिलवाया गया। यह तो तय है कि अमेरिका अब भारत में राजनीतिक समझ वाला राजनयिक भेजेगा।


मुलाकात को बमुश्किल राजी हुए मोदी

अमेरिकी प्रशासन का भारत में एनजीओ को माध्यम से लंबा- चौड़ा नेटवर्क है। इन्हें फोर्ड फाउंडेशन और अन्य यूरोपीयन एनजीओ के माध्यम हर साल अरबों रूपए की आर्थिक मदद करता है। यह सभी को पता है कि फोर्ड फाउंडेशन और सीआईए मिलकर काम करत हैं। भारतीय खुफिया सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि मोदी की हवा को कमजोर करने के लिए नैन्सी ने एक मुख्यमंत्री से इस्तीफा दिलवाकर उसे मैदान में उतार दिया पर वे भी कुछ नहीं कर पाए। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि अगर दो नेताओं के प्राइवेट सेल फोन नंबर की जांच कर ली जाए तो पता चल जाएगा कि इस्तीफ से पहले दिल्ली के अमेरिकी दूतावास में बातचीत की गई थी। 


अंत में राजदूत बदला

जब अमेरिका का हर दांव विफल हो गया तो उसने राजदूत बदलने में ही अपना हित समझा। कारण कि अमेरिका के लिए सदैव उसके हित की सर्वोपरि रहे हैं।

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