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शनिवार, 12 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-68) -बारूबम का मतलब देश की दुदर्शा के लिए मनमोहन के साथ सोनिया और राहुल भी जिम्मेदार




प्रधानमंत्री मनमोहन के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर — द मेकिंग एंड अनमेकिंग आफ मनमोहनसिंह " ने आज साफ कर दिया कि देश की बरबादी के लिए मनमोहनसिंह के साथ सोनिया और राहुल गांधी भी जिम्मेदार हैं। इसका संकेत साफ है कि देश में हुए तमाम घोटालों के लिए सोनिया गांधी भी बराबर की जिम्मेदार हैं। इस किताब का सार यह है कि सोनिया ने प्रधानमंत्री पद का त्याग उससे भी बड़े बगैर जवाबदारी वाले पद को पाने के लिए किया। इस दौरान सबसे ज्यादा घोटाले हुए लेकिन उन पर कानूनी तौर पर कोई किसी भी प्रकार की जवाबदारी नहीं डाल सकता। इसी कारण सोनिया और राहुल टूजी, कोल स्केम और बढ़ती महंगाई पर सदैव ही चुप रहते हैं।

यान मनमोहन रबर स्टाम्प

सोनिया गांधी ने अपने एक खास आदमी पुलक चटर्जी को पीएमओ में प्रधान सचिव बनाया और उनके माध्यस मे सारी फाइलों पर निर्देश देती थीं। वे सोनिया से हर रोज मिलते और उनसे निर्देश लेते। वे सोनिया गांधी की अध्यक्षता मेें बनी उच्च स्तरीय सलाहकार समिति एनसीए (नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ) के साथ समन्वय के लिए पीएमओ के सूत्र थे।

पीएम पद की गरिमा गिरी

सत्ता के दो या यों कहें कि ढाई केन्द्र (एक मनमोहन, दूसरी सोनिया और आधे राहुल) होने से प्रधानमंत्री पद की गरिमा कम हुई। जयराम रमेश और पृथ्वीराज चौहान जैसे मंत्री दस जनपथ में नंबर बढ़वाने की होड़ में मनमोहनसिंह को तवज्जों भी नहीं देते थे। यहां तक कि उन्हें सम्मानजन ढंग से संबोधित करना तक भी बंद कर दिया गया है। अर्जुनसिंह तो उनके सामने खड़े तक नहीं होते थे। राहुल गंाधी कई बार देश के सामने यह जता चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकतवर हैं।

सोनिया अतिरिक्त संवैधानिक सत्ता केन्द्र

एनसीए (नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ) के गठन से भी मनमोहन नाराज थे। कारण कि यह प्रधानमंत्री पद से बड़ा एक समानांतर सत्ता केन्द्र खड़ा किया गया था। जब भी सर्वे में मनमोहनसिंह की लोकप्रियता सोनिया गांधी से ज्यादा आती थी तो वे बड़े खुश होते। आईबी और रा के असली बास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बन गए

अधिकारों पर भी अतिक्रमण

मंत्रिमंडल में किसे लें या नहीं यह प्रधानमंत्री का विशेष अधिकार है पर सोनिया गांधी ने इस पर भी अतिक्रमण कर रखा था। वित्त मंत्रालय संबंधी निुयुक्तियों में मनमोहन को मुंह की खानी पड़ी। यही कारण है कि नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रीकाल में जो अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया वह अपने प्रधानमंत्रीकाल के दौरान ही असफल हो गया। है न आश्यर्च की बात।

कोरी कल्पना बताया

पीएमओ के संवाद सलाहकार पंकज पचौरी ने हालांकि किताब में लिखी बातों को कोरी कल्पना बताया। कहा कि प्रधानमंत्री पहले ही संकेत कर चुके थे कि बारू की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाए।

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