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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-81) - मुस्लिमों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने का कांग्रेसी राग संविधान के सेकुलर(पंथनिरपेक्ष) ढांचे के खिलाफ


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कांग्रेस का बीच चुनाव में पिछले दरवाजे से मुस्लिमों को पिछड़ा वर्ग कोटे से साढ़े चार फीसदी प्रतिशत आरक्षण देने और एससी यानी दलित कोटे में शामिल करने का राग छेडऩा संविधान के सेकुलर(पंथनिरपेक्ष) ढांचे के खिलाफ है। यानी कांग्रेस धार्मिक आधार पर आरक्षण की वकालत कर ही है। सेकुलर होने का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और वह धार्मिक आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करेगा। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने वर्ष भर पहले मुस्लिमों को पिछड़ा वर्ग कोटे से साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी जिस पर कि सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
आपको याद होगा कि जब यूपी की अखिलेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों के पीडितों की सहायता के लिए सुप्रीम कोर्ट में सूची सौंपी तो उसमें सिर्फ मुस्लिमों के नाम थे तो सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य दंगा पीडि़तों को आर्थिक सहायता देने में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बतलाती है कि जब आर्थिक सहायता देने के मामले में राज्य भेदभाव नहीं कर सकता तो फिर यह तो आरक्षण जैसा बड़ा मुद्दा है।

जाति, वंश, उपवंश के आधार पर आरक्षण
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अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जन जाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण धार्मिक नहीं जातिगत आधार पर दिया गया था। संविधान निर्माता डा भीमराव आंबेडकर का मानना था कि इन्हें समाज में आगे बढऩे से पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाए इसलिए इन्हें आरक्षण देना आवश्यक है। इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद -340, 341, 342 के तहत  जाति, वंश, उपवंश के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की। इसका उद्देश्य यह था कि धर्मान्तरण पर लगाम लगे और दूसरे धर्म में जा चुके लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाए। कुछ राज्य सरकारें ओबीसी कोटे में मुस्लिमों को आरक्षण दे रही हैं यह संविधानसम्मत नहीं है। कुल मिलाकर इस आरक्षण का मकसद जातिवाद और छुआछूत के कारण विकास की दौड़ की दौड़ से वंचित लोगों को एक अवसर देना था।

लालच और तलवार के दम पर  धर्मान्तरण
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मुगलों के आगमन के साथ भारत में धर्मान्तरण का दौर शुरू हुआ। कही बराबरी के लालच से कहीं तलवार के डर से दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों ने धर्मान्तरण किया और मुस्लिम बन गए। उम्मीद थी कि उन्हें बराबरी का दर्जा और विकास का मौका मिलेगा लेकिन धर्मान्तरण के बाद मुस्लिम राजाओं ने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वे दलित के दलित ही रहे। मुस्लिमों ने उनसे छुआछूत आरंभ कर दी और वे जहां से आए थे वहीं पंहुच गए।

आरक्षण मिले पर आर्थिक आधार पर
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चूंकि ये अपनी जाति और मूलवंश से दूर चले गए थे इसलिए इन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिला। इन्हें आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन उसका आधार धार्मिक नहंी आर्थिक होना चाहिए। इससे न सिर्फ मुस्लिमों वरन अन्य जातियों के आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों का आरक्षण मिले, ताकि सभी को अवसरों की समानता की संविधान की भावना कायम रहे।

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