Translate

रविवार, 20 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-72) - वो तिलक लगाने से मना करें तो सेकुलर और #Modi टोपी लगाने से मना करे तो कम्युनल






पुष्कर जाने वाला लगभग हर हिन्दू अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह पर जाता ही है लेकिन ख्वाजा साहब की दरगाह पर जाने वाला हर मुस्लिम पुष्कर क्यों नहीं जाता
-----------------------------------------------------------------------------------------------
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना मदनी ने एक निजी चैनल से बातचीत में रविवार को कहा कि नरेन्द्र मोदी मुस्लिम टोपी नहीं पहनते तो कोई बात नहीं मैं भी तिलक नहीं लगवा सकता। मैं मदनी की  साफगोई की दाद देता हूं। मदनी का साफ-साफ इशारा अपनी-अपनी पंरपराओं को मानने से था। मोदी भी पिछले एक सप्ताह से विभिन्न चैनलों में कह रहे हैं कि वे सभी  की परंपराओं का सम्मान करते हैं लेकिन पालन सिर्फ अपनी परंपराओं का करेंगे। इसी कारण वे टोपी नहीं पहनते। लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि कोई मुस्लिमों की टोपी से खिलवाड़ करेगा तो वे उसे बख्शेंगे नहीं।
सवाल यह है कि मोदी ने एक बार टोपी पहनने से मना कर दिया तो सो काल्ड सेकुलर लोग इस पर सवाल उठाने लगे। आज मौलाना मदनी ने कहा कि वे तिलक नहीं लगवा सकते तो क्या ये सो काल्ड सेकुलर लोग उनसे सवाल करेंगे। भई गंगा-जमनी तहजीब है और मौलाना मदनीजी आप तो इसकी हिमायत करते हैं तो फिर मुस्लिम समुदाय के उन लोगों को तिलक लगाने में क्यों दिक्कत होनी चाहिए, जो कि मोदी से टोपी लगाने की उम्मीद करते हैं खासकर उमर अब्दुल्ला जैसे लोग। इसी से तो भाई-चारा बढ़ेगा। अगर उमर जैसे  लोग ऐसा नहीं कर सकते तो फिर गंगा-जमनी तहजीब का नाटक बंद करें। खैर मौलाना मदनी से टोपी पर राजनीति करने और टोपी पहनकर मुस्लिम समुदाय को टोपी पहनाने वाले लोगों को भी आड़े हाथों लिया।

वो कत्ल भी कर दें तो चर्चा नहीं होती और हम उफ भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

इसी तिलक पर से याद आया कि इंडियन क्रिकेट टीम किसी होटल में जा रही थी और रिसेप्शन पर भारतीय संस्कृति के अनुरूप टीम का तिलक लगाकर स्वागत किया जा रहा था तभी तत्कालीन कप्तान अहजरूद्दीन ने तिलक लगवाने से मना कर दिया और साथ में हिदायत भी दी कि आइंदा से उन्हें तिलक लगाने की कोशिश भी नहीं की जाए।
खैर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला की तकलीफ यह थी कि मोदी स्वामीनारायण संप्रदाय का सांफा, सिखों की पगड़ी, पूर्वोत्तर की खास टोपी पहन लेते हैं लेकिन जब मौलाना से मुस्लिम टोपी पहनने से मना कर देते हैं। उमरजी स्वामीनारायण, सिख और पूर्वोत्तर की जनजातियां सनातन हिन्दू संस्कृति का अभिन्न अंग हैं और मोदीजी इसी परंपरा को मानते हैं तो उनकी पगड़ी धारण कर ली।
चूंकि मोदीजी सतानत धर्म को पूरी तरह से मानते हैं इसलिए उन्हें टोपी से वैसे ही परहेज है जैसे कि मौलाना मदनी को तिलक से। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसके विपरीत सभी राजनीतिक दलों में सतातन धर्म के ऐसे सैंकडों लोग मिल जाएंगे तो बड़ी ही आसानी से मुस्लिम टोपी पहन लेते हैं। कारण कि सनातन हिन्दू धर्म उदार है। शिवराजसिंह चौहान और नीतिश कुमार जैसे कई लोग इसका उदाहरण हैं। पर सभी दलों में ऐसे मुस्लिम कम ही मिलेंगे जो तिलक लगवाते हों या हिन्दू मंदिरों में जाते हों। दरअसल यह उदार सोच का फर्क है इसलिए हिन्दू आसानी से टोपी पहने लेते हैं और मुस्लिम तिलक नहीं लगवाते। मुस्लिम कौम के लोग भले ही गंगा-जमनी तहजीब की कितनी ही बाते क्यों न  कर लें वे कभी भी अपनी कट्टरता को नहीं छोड़ सकते।

ये बदन से नहीं जेहन से अपाहिज हैं वहीं कहेंगे जो रहुनमा बताएगा

इसका एक दूसरा पहलू इस तरीके से समझिये। तीर्थराज पुष्कर और अजमेर पास-पास हैं। पुष्कर में ब्रहाजी का एक मात्र मंदिर और सरोवर है तो अजमेर में हजरज ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह। मेरा ऐसा अनुभव है कि पुष्कर जाने वाला लगभग हर हिन्दू अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह पर जाता ही है लेकिन ख्वाजा साहब की दरगाह पर जाने वाले गिनती के मुस्लिम ही पुष्कर जाते हैं। इनमें भी उन मुस्लिमों की संख्या ज्यादा होती है जिनके कि पुरखे हिन्दू थे और किसी पंडित ने पुरखों की आत्मा की शांति के लिए उनसे पुष्कर जाने के लिए कहा होता है।
सिर्फ सनातन हिन्दू संस्कृति ही दुनिया की एक मात्र ऐसी संस्कृति या धर्म है जिसने दुनिया की सारी संस्कृतियों और धर्मो को अपनाया है। आर्य, द्रविण, सिन्धु, ईसाई, पारसी, मुस्लिम आदि-आदि किनती संस्कृतियां हैं जो मां भारती की गोद में पुष्पित और पल्लवित हुईं। फिर भी हमें सांप्रदायिक कहा जाता है। हम सनातनी हैं कोई फरक नहीं पड़ता।
इसीलिए इकबाल ने लिखा है-
                                                                                                                                                              कुछ बात है कि हस्ती मिटनी नहीं हमारी,  सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमाना हमारा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें