Translate

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-75) - देश की दुर्दशा का ठीकरा अब मनमोहन पर नहीं सोनिया और राहुल गांधी पर फूटने लगा.



प्रधानमंत्री मनमोहन के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक " द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर — द मेकिंग एंड अनमेकिंग आफ मनमोहनसिंह" और कोयला सचिव परख की किताब " क्रुसेडर ऑर कांसपीरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ्स " से मनमोहन को बड़ी राहत राहत दी है। अब देश की दुर्दशा का ठीकरा अब मनमोहन पर नहीं सोनिया और राहुल गांधी पर फूटने लगा है। कारण कि लोगों में इस प्रकार की धारणा तो थी कि सरकार सोनिया और राहुल के रिमोट से चल रही है लेकिन सरकार से जुड़े दो लोगों ने किताब में इस बारे में लिखकर जनधारणा को पुख्ता बनाया है।
चुनाव आरंभ होने से पहले तक देश की दुदर्शा यानी महंगाई, भ्रष्टाचार, बदहाल अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, पालिसी पेरालिसिस के लिए मनमोहनसिंह के नेतृत्च वाली यूपीए सरकार और कांग्रेस को दोषी माना जाता था लेकिन अब इसमें कुल बदलाव आया है। पहले देश की दुदर्शा के लिए ज्यादातर लोग मनमोहन वाली यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराते थे लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक " द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर — द मेकिंग एंड अनमेकिंग आफ मनमोहनसिंह" और कोयला सचिव परख की किताब " क्रुसेडर ऑर कांसपीरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ्स " से जो खुलासे हुए हैं उससे अब असफलता की सुई पूरी तरह सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ओर घूम गई है। यानी मनमोहन ने आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री पद छोडऩे से पहले लगभग साबित कर दिया कि देश की बरबादी के लिए उनसे ज्यादा सोनिया और राहुल गांधी जिम्मेदार हैं। इसका संकेत साफ है कि देश में हुए तमाम घोटालों के लिए सोनिया गांधी भी बराबर की जिम्मेदार हैं। मनमोहन की सिंह राशि है और इस राशि वाले अपमान को कभी सहते नहीं हैं। इन किताबों के तथ्यों के माध्यम से अप्रत्यक्ष तौर से मनमोहन ंिसंह का पक्ष रखा गया है।

तो कौन सांसद करते थे प्रधानमंत्री का अपमान ?
---------------------------------------------------------
पूर्व कोयला सचिव पीसी परख नेअपनी किताब क्रेुसेडर ऑर कांसपीरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ्स में कहा है कि मनमोहन सिंह बहुत कम राजनीतिक अधिकार वाली सरकार के मुखिया थे और उनका मंंत्रियों पर नियंत्रण नहीं था। पूर्व कोयला सचिव के अनुसार टूजी और कोयला घोटाले से उनकी छवि को भी धक्का लगा था। परख किताब में बताते हैं कि विदाई के लिए मैं17 अगस्त 2005 को प्रधानमंत्री से मिला. मैंने उनसे अपने अपमान के बारे में बातें करना चाहता थे जो सांसद अकसर नौकरशाहों के साथ करते हैं. इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वे भी यही समस्याएं हर रोज झेलते हैं. अगर वे ऐसी हर बात पर इस्तीफा देने लगें तो फिर तो चल गया देश। पुस्तक में पूर्व कोयला सचिव ने सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से पूछा गया कि हिंडाल्को को ओडिशा की जिस तालाबीरा कोयला खदान आवंटन मामले में उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया है, उसमें पीएम के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई. उनके मुताबिक, तालाबीरा कोल ब्लॉक के आवंटन का फैसला मनमोहन सिंह ने ही बतौर कोयला मंत्री लिया था. उन्होंने सवाल किया कि उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करने से पूर्व सीबीआई ने पीएमओ की फाइलों की जांच क्यों नहीं की।

किचन केबिनेट चलाती थी सरकार
------------------------------------------
प्रधानमंत्री मनमोहन के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की पुस्तक "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर — द मेकिंग एंड अनमेकिंग आफ मनमोहनसिंह" में लिखा है कि सोनिया गांधी ने अपने एक खास आदमी पुलक चटर्जी को पीएमओ में प्रधान सचिव बनाया और उनके माध्यस मे सारी फाइलों पर निर्देश देती थीं। ने निर्देश वे अपनी किचन केबिनेट की मदद से देती थीं। वे सोनिया से हर रोज मिलते और उनसे निर्देश लेते। वे सोनिया गांधी की अध्यक्षता मेें बनी उच्च स्तरीय सलाहकार समिति एनसीए (नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ) के साथ समन्वय के लिए पीएमओ के सूत्र थे।
बकौल बारू सत्ता के दो या यों कहें कि ढाई केन्द्र (एक मनमोहन, दूसरी सोनिया और आधे राहुल) होने से प्रधानमंत्री पद की गरिमा कम हुई। जयराम रमेश और पृथ्वीराज चौहान जैसे मंत्री दस जनपथ में नंबर बढ़वाने की होड़ में मनमोहनसिंह को तवज्जों भी नहीं देते थे। यहां तक कि उन्हें सम्मानजन ढंग से संबोधित करना तक भी बंद कर दिया गया है। अर्जुनसिंह तो उनके सामने खड़े तक नहीं होते थे। राहुल गंाधी कई बार देश के सामने यह जता चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकतवर हैं। एनसीए (नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ) के गठन से भी मनमोहन नाराज थे। कारण कि यह प्रधानमंत्री पद से बड़ा एक समानांतर सत्ता केन्द्र खड़ा किया गया था। जब भी सर्वे में मनमोहनसिंह की लोकप्रियता सोनिया गांधी से ज्यादा आती थी तो वे बड़े खुश होते। आईबी और रा के असली बास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बन गएमंत्रिमंडल में किसे लें या नहीं यह प्रधानमंत्री का विशेष अधिकार है पर सोनिया गांधी ने इस पर भी अतिक्रमण कर रखा था। वित्त मंत्रालय संबंधी निुयुक्तियों में मनमोहन को मुंह की खानी पड़ी। । यही कारण है कि नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रीकाल में जो अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया वह अपने प्रधानमंत्रीकाल के दौरान ही असफल हो गया। है न आश्यर्च की बात।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें