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बुधवार, 9 अप्रैल 2014

लालकिले से (भाग-64 ) - भैया, 10 साल से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस उनके खिलाफ लड़ रही है चुनाव , नो उल्लू बनाविंग




तीन गुना बढ़ चुकी महंगाई और शंखों रूपए के भ्रष्टाचार से जनता का ध्यान भटकाने का कांग्रेस का गेम प्लान, या तो बीजेपी ढाई सौ पार या फिर कांग्रेस

सोलहवी लोकसभा का चुनाव प्रचार पिछले 15 दिनों से जिस लाइन पर जा रहा है उसे देखकर  तो ऐसा ही लग रहा है कि मनमोहनसिंह नहीं नरेन्द्र मोदी भारत के पिछले 10 सालों से प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस उनके दस साल के कामों का लेखा-जोख मांग रही है।  दरअसल पहले केजरीवाल, फिर कांग्रेस और अब मुलायम ने जिस तरह से मोदी को निशाना बनाया है उससे से यही लग रहा है कि यह चुनाव मोदी बनाम आल करने की आधी कोशिश हो चुकी है। दरअसल यह कांग्रेस के गेम प्लान का हिस्सा है।

महंगाई और भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने में लगी कांग्रेस

 दरअसल कांग्रेस चाहती है कि दस साल में सवा तीन गुना बढ़ चुकी महंगाई, पद्मों और शंखों रूपए के  भ्रष्टाचार, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के कार्यकाल में बदहाल होती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी, वैश्विक स्तर पर गिरती साख जैसे मुद्दों से देश का ध्यान किसी तरह से भटकाया जाए। चूंकि भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है ऐसे में भाजपा सहित कई राजनीतिक दलों के नेताओं को यह बात हजम नहीं हो पा रही है कि देश की गद्दी के लिए केन्द्र के बड़े-बड़े नेताओं के बीच एक राज्य का क्षत्रप कैसे आ गया। कारण कि कुछ बड़े नेता ही दिल्ली की गद्दी पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। पहले कांग्रेस ने ऐसा किया फिर भाजपा भी इसी राह पर चल निकली।

लोकसभा  का चुनाव है या गुजरात विधानसभा का

मैंने 2003 से 2011 तक के आठ सालों में से 6 साल गुजरात में एक  पत्रकार के तौर पर गुजारे हैं। ज्यादा गहराई में नहीं जाते पर अच्छी सडक़ों, शहरी विकास, 24 घंटे बिजली, पानी, रोजगार और महिला सुरक्षा के मामलों में गुजरात काफी आगे है। यूपी और बिहार की तो काई बिसात ही नहीं है। ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में गुजरात को ऐसे मुद्दा बनाया जा रहा है जैसे यह लोकसभा का नहीं गुजरात विधानसभा का चुनाव हो। मेरी बात के विरोध में तर्क दिए जा सकते हैं कि चूंकि मोदी ने गुजरात माडल की बात की है इसलिए इसका पोस्टमार्टम होना ही चाहिए। मेरी भी राय है कि बिल्कुल होना चाहिए। जो लोग मेरी बात से असहमत हों वे दिल्ली में बिजली और पानी के हाल देख लें। नजारा और नजरें साफ हो जाएंगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की सफलता पर कोई कुछ भी कहता हो पर े एक कड़वा सच वे जरूर देश के सामने लाने में सफल हुए हैं कि देश की राजधानी और देश की सबसे बड़ी सरकार के नीचे रहने वाले लोग भी बिजली और पानी से महरूम हैं। वैसे गुजरात की जनता तीन बार मोदी को जिताकर उनके कामों पर अपनी मोहर लगा चुकी है।

बुखारी से वोट मांगने वाले कैसे सेकुलर

यूपी में कांग्रेस खुद कमजोर है ऐसे में वह मुलायम और सो काल्ड सेकुलरिज्म ने नाम पर मोदी को घेरकर अपनी दस साल की विफलताओं को छिपाने में लगी है। भाजपा में भी मोदी और राजनाथ के साथ संघ किला लड़ा रहा है। बाकी सब बड़े कैकेयी की तरह कोप भवन में जाने, कांग्रेस से अपने रिश्ते निभानेे और चुनाव प्रचार की रस्म आदयगी में लगे हैं। हमारा संविधान सेकुलर है। लेकिन अभी कांग्रेस और मुलायम सेकुलरिज्म का मुद्दा तो उठा रहे हैं पर इससे पहले वे घोर सांप्रदायिक हो चुके हैं। मौलान बुखारी से अपने पक्ष में वोट की अपील करने वाली सोनिया कांग्रेस और मुस्लिम वोटों के लिए यूपी में सवा सौ से भी अधिक दंगे रोकने में नाकाम समाजवादी मुलायम कैसे सेकुलर हो सकते हैं। ये घोर नहीं घनघोर साम्प्रदायिक हैं। 

ये पब्लिक है सब जानती है

पर भैया, ये पब्लिक है, सब जानती है। कौन- कौन देश को  मुद्दे से भटकाने में लगा है और चुनाव के असली मुद्दे मुद्दे क्या हैं। कारण कि महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता पहले से मानस बना चुकी है कि इस बार करना क्या है। यूपी में जरूर वोट बैंक बना देश का एक वर्ग कुछ कन्फ्यूज में है। यह तय है कि उसका वोट भाजपा को नहीं पड़ेगा पर कांग्रेस, सपा, बसपा, आप या उनके समाज की पाटी में से किसे पड़ेगा फिलहाल तय नहीं है। वह वोट पडऩे के एक दिन पहले ही तय होगा। हो सकता है कि टेक्टिकल वोटिंग कर वे भाजपा के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी को वोट करें। इसमे हर जगह आप्शन अलग-अलग हो कसत हैं। पर इससे बहुसंख्यक वोटों के भी ध्रुवीकरण का बड़ा खतरा हो सकता है। इसलिए टेक्टिकल वोटिंग से परिणामों पर अधिकतम 5 सीटों का अंतर हो सकता है, ज्यादा नहीं।

बहुमत या उसके आस-पास की ही सरकार

देखते रहिए देश की जनता चौंकाने वाले परिणाम देगी। हंग पार्लियामेंट के संपने संजोये कांग्रेसियों और तीसरे मोरचे के झंडाबरदारों को झटका भी लग सकता है। इस बार बहुमत की उसके नजदीकी आंकडे की सरकार तय है। पूरा नहीं भी मिला तो ढाई से तो पार तय है। पहली संभावना भाजपा (एनडीए) की है, ढाई सौ पार। अगर संघ का मोदी प्रयोग खुदानखास्ता फेल होता है तो फिर कांग्रेस (यूपीए ) ढाई सौ पार। तीसरे मोरेचे का कोई चांस नहीं है। कारण जनता जान चुकी है कि भाजपा के अलावा किसी को भी दिया गया वोट समर्थन के रूप में कंाग्रेस के पास ही लोट आता है। इसलिए इस बार वोटी मोदी को पड़ेगा या फिर कांग्रेस को।



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